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जगदलपुर। शनिवार से बस्तर का प्रसिद्ध गोंचा पर्व शुरू हो गया है। चंदन जात्रा विधान से शुरू हुए पर्व के दौरान 26 दिनों तक रथ परिक्रमा करने के अलावा अलग-अलग विधान किए जाएंगे। जिस दिन रथ परिक्रमा होगी उस दिन बस्तर में रथ को तुपकी से सलामी देने का विधान है। इस अनोखी बस्तरिया परंपरा को देखने के लिए विदेशों से भी पर्यटक बड़ी संख्या में बस्तर पहुंचते हैं।
गोचा पर्व के साथ ही बस्तर में तुपकी को भी बड़ा महत्वपूर्ण स्थान मिला हुआ है। इस पर जिस पेंग का इस्तेमाल किया जाता है वह एक तरह से औषधी मानी जाती है। इसकी खुशबू जहां लोगों का मन मोह लेती है वहीं पेंग की सब्जियां भी बनाई जाती है।
किस दिन कौन सा विधान
22 जून को देव स्नान के साथ पूर्णिमा चंदन जात्रा विधान किया गया। 23 जून को जगन्नाथ भगवान का अनसरकाल शुरू हो जाएगा। 6 जुलाई को नेत्रोत्सव विधान की परम्परा निभाई जाएगी। 7 जुलाई को गोंचा रथ यात्रा निकलेगी।
अखंड रामायण पाठ 10 जुलाई को किया जाएगा। हेरा पंचमी का पर्व 11 जुलाई को होगा। अगले दिन 56 भोग अर्पित किए जाएंगे। सामूहिक उपनयन संस्कार 14 जुलाई को होगा। 15 जुलाई को बहुड़ा गोंचा जबकि 17 जुलाई को देवशयनी एकादशी विधान की परंपरा निभाई जाएगी। ऐसा पर्व सिर्फ बस्तर में ही मनाया जाता है।
जगदलपुर के जगन्नाथ मंदिर मंे 26 दिनों तक चलने वाले इस पर्व की शुरूआत शनिवार को चंदन जात्रा से प्रारंभ हो गई। अब 26 दिनों तक रथ परिक्रमा करने के साथ ही अलग-अलग विधान निभाए जाएंगे। मुक्ति मंडप में देव विग्रहों को अनसरकाल के दौरान रखा जाएगा। जगन्नाथ भगवान सहित सुभद्रा और बदभद्र के 22 विग्रह रखे जाएंगे।
617 साल पुरानी परंपरा
बस्तरवासियों के मुताबिक गोंचा पर्व की परंपरा 617 साल पुरानी है। जगन्नाथपुरी मंदिर से जुड़े हुए बस्तर के गोंचा पर्व के इतिहास पर रौशनी डाली जाए तो वर्षों पहले बस्तर के तत्कालीन महाराजा पुरूषोत्तम देव पदयात्रा करते हुए जगन्नाथपुरी गए थे।
उस समय पुरी के महाराजा गजपति हुआ करते थे। उन्होंने बस्तर के राजा को तब रथपति की उपाधि दी थी। पुरूषोत्तम देव को उनकी भक्ति के फलस्वरूप देवी सुभद्रा का विशालकाय रथ दिया गया था। तब रथयात्रा के दौरान इसी रथ पर बस्तर के राजा सवार होते थे।
तब से हर साल इस पर्व को बस्तर में धूमधाम से मनाने की परंपरा चली आ रही है। जगन्नाथपुरी से भगवान जगन्नाथ की मूर्तिया लेकन महाराज पुरूषोत्तम देव ने इन्हें बस्तर लाकर जगन्नाथ मंदिर में स्थापित किया था। तब से प्रतिवर्ष प्रभु जगन्नाथ सहित देवी सुभद्रा और बलभद्र रथ पर भ्रमण पर निकलते हैं।
राज परिवार से जुड़े हुए कमलचंद भंजदेव के मुताबिक जगन्नाथपुरी में सोने की झाडू़ से छेरापोरा रस अदा होने के बाद ही इस रस्म को बस्तर में पूरा किया जाता है। रथपति की उपाधि प्राप्त करने के दौरान तत्कालीन महाराजा पुरूषोत्तम देव को 16 पहियों वाला रथ मिला था।
उस समय चूंकि सड़के बेहतर नहीं हुआ करती थी इस कारण इस 16 पहियों वाले रथ को आसानी से खींच सकने लायक बनाने सुविधा अनुसार 16 पहिये के रथ को 3 हिस्सों में बांटा गया। 4 पहियों वाला पहला रथ गोंचा के अवसर पर खींचा जाता है।
जानकारों के मुताबिक बस्तर दशहरा में फूलरथ के नाम से चार पहियों वाले रथ को खींचने का विधान है। फूलरथ के नाम से इस रथ को 6 दिनों तक बस्तर दशहरा के दौरान खींचा जाता है। 8 पहियों वाले तीसरे रथ को रैली के दिन खींचा जाता है।