जगदलपुर।
लौह अयस्क और नक्सली बस्तर की खास पहचान माने जाते हैं. एक ओर जहां लौह अयस्क बस्तर से निकलकर जापान तक जाता है वहीं दूसरी ओर नक्सली उसी लौह अयस्क से पैसे कमाते हैं. अब आप सोच रहे होंगे कि किस तरह लौह अयस्क को नक्सलियों ने कमाई का जरिया बना रखा है तो इसके लिए आपको बस्तर पर ध्यान देने की जरुरत है.
घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र के लिए बस्तर कुख्यात है. बस्तर के लौह अयस्क की भी दुनिया में अलग पहचान है. जगदलपुर से कुछ दूर किरंदूल की एनएमडीसी खदान से लौह अयस्क जापान तक भेजा जाता है. इससे सरकार को तो आमदनी होती ही है, वहीं नक्सली भी इस लौह अयस्क से पैसा कमाते हैं. ये सच है नक्सली लौह अयस्क से भरे वैगन को पलटाकर करोड़ों रुपए कमाते हैं.
क्यूं बार बार तोड़ी जाती है ट्रेक
किंरदूल से हर दिन औसतन वैगन विशाखापट्टनम के लिए रवाना होती है, जिसमें करोड़ों रुपए का लौह अयस्क होता है. नक्सली औसतन हर महीने एक बार ट्रैक तोड़कर वैगन को पलटा देते हैं और लौह अयस्क पटरी के दोनों तरफ फैल जाता है. रेलवे ट्रैक को सुधार कर फिर परिवहन शुरू करती है.
रेलवे पटरी के दोनों तरफ पड़े लौह अयस्क वहीं पड़ा रहने देती है और सिम्पेथाइजर लौह अयस्क को माफिया उठाकर बाजार में बेच देते हैं, जिसका पैसा नक्सलियों के पास भी जाता है. इस बात को बस्तर के आईजी रहे एसआरपी कल्लुरी भी कह चुके हैं. एक सेमिनार में कल्लुरी ने खनन माफियाओं की ओर से नक्सली को फंडिंग करने की बात कही थी. उनका इशारा इस ओर भी था.
17 बार पलटाए वैगन
रेलवे के रिकॉर्ड के मुताबिक जनवरी 2016 से फरवरी 2017 तक नक्सलियों ने 17 बार वैगन को पलटाया है. एक वैगन में करीब 40 लाख रुपए का लौह अयस्क रहता है. अगर 40 लाख रुपए वैगन की कीमत है तो 17 वैगन की कीमत 6 करोड़ रुपए से ज्यादा होती है.