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असंख्य यादों की श्रृंखलाएं जब करवट लेती है तो कुछ व्यक्तित्व सहज ही उभर कर सामने आ जाते है। उन चेहरों को भूलाना असंभव है। असंभव इसलिये नहीं होता कि वो चेहरा सुदंरता का प्रतिमान हो, असंभव इसलिये भी नहीं होता कि वो चेहरा सुदंरता का प्रतिमान हो, असंभव इसलिये भी नहीं होता कि उसके पास कोई बहुत बड़ा पद हो।
असंभव इसलिये भी नहीं होता कि वह बहुत धनवान हो। चेहरों को भूलाना तभी असंभव होता है जब उस चेहरे ने आपके जीवन को संवारने में, आमूल चूल परिवर्तन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई हो और ऐसे व्यक्तित्व को ढूढंना लगभग असंभव सा कार्य लगता है । परन्तु असंभव सा लगने वाला यह कार्य कुछ लोगों में ईश्वरीय सत्ता द्वारा प्रदत्त वह अद्भूत गुण होता है जो प्राय: सभी के प्रति समर्पित भाव से कार्य करते हुये अपना जीवन व्यक्तित्व करते हैं।
आज ऐसे ही व्यक्तित्व की स्वामिनी की याद मेरी लेखनी को बेवस कर रही है कि मैं उसके बारे में लिखूं। अपने विचार व्यक्त करू परंतु मन इतना व्यथित है कि मेरी लेखनी को उस व्यक्तित्व के लिये श्रद्धांजलि लिखनी पड़ रही है। काश ऐसा होता कि मैं उसके लिये अपने मनोभाव उसके जीवित अवस्था में ही व्यक्त कर पाता। परंतु अक्सर हम सब के साथ यही होता है कि हम किसी भी कर्मशील व्यक्ति के गुणों को तभी समझ पाते है जब वह हमें छोड़ कर चला जाता है ?
स्मृति पटल में आज भी वह चेहरा अंकित है। एक दुबली, पतली, थोड़ी सी सहमी सी, युवावस्था में प्रवेश करती सी युवती हमारे घर आई थी और मेरे पिताजी से आग्रह पूर्वक कह रही थी कि चाचा जी मैं आपके वार्ड से पार्षद पद पर चुनाव लड़ रही हूं और आप सभी से आग्रह है कि मुझे अपना अमूल्य मत प्रदान करे। पिताजी ने उस लडक़ी से बातचीत आरंभ की तो ज्ञात हुआ कि चितलाँग्या मार्ग स्थित लक्ष्मी मंदिर के पीछे कहीं उसका निवास स्थान है।
उसके पिताजी कि छोटी सी दुकान है। परिस्थितियां साधारण सी है। लड़की घर का काम-काज करती, सार्वजनिक नल से पानी भरती, लोगों के फटे-पुराने कपड़े सिलती और परिवार को सहयोग करती। पर ना जाने क्यो पिताजी (जयकिशन जी चितलाँग्या) को उस लडक़ी में क्या दिखा कि उन्होंने उसे ना केवल अपने परिवार के मतों के प्रति आश्वस्त किया अपितु उसे राजनीति के गुण ज्ञान से भी परिचित कराते गये।
भारतीय जनता पार्टी कि महिला आरक्षित सीट पर उसे टिकट प्राप्त हुई थी। पिताजी क्योंकि जनसंघ के समय के कार्यकर्ता थे । युवा अवस्था में ‘‘दिया छाप’’ के समय पर उन्होने जनसंघ के लिये उन्होंने तन-मन-धन से अपना सहयोग दिया था। इसलिये उन्होंने उस सहमी हुई लडक़ी के सिर पर हाथ रख दिया।
पर जब वोटिंग का दिन आया तो हमारे परिवार में परिजन कि मृत्यु होने से शोक आ गया परंतु पिताजी ने राष्ट्र हित में अपने मतदान का दृढ़ संकल्प लेते हुए पूरे परिजनों को मतदान करने भेजा। वह लड़की प्रचंड मतों से जीतकर पार्षद बन गई। पार्षद बनने के बाद वह मेरे निवास स्थान के सामने किराये के मकान में आ गई।
पिताजी को वह अपनी राजनीति का प्रथम गुरू कहती और फिर अपने सहज सरल स्वभाव और अपने कर्तव्यों का पालन करते हुये वह ऊँचाईयों के सोपान चढ़ती रही। पार्षद, महापौर, छत्तीसगढ़ महिला प्रकोष्ठ की अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पदों को उसने सुशोभित किया और उस पद के साथ पूरा न्याय किया।
मोहल्ले का कोई व्यक्ति हो या शहर का, हर किसी के लिये 24 घंटे उपलब्ध रहने वाली वह लड़की ना जाने कितने ही नगरवासियों के आंखो में अश्रु प्रदान कर हमेशा के लिये स्वर्गलोक को प्रस्थान कर गई। छोटी से छोटी बात के लिये भी उसके दरवाजे सबके लिये खुले रहते। ना जाने कितने गरीब लोगों का इलाज करवाना, नौकरी लगवाना जैसे कार्य उसने निर्लिप्त भाव के साथ संपन्न किया। मेरी श्रीमती कि अनन्य प्रंशसक, उसके हर कार्य को, त्वरित संपन्न करने वाली लड़की, श्रीमती जी की आँखो में असंख्य अश्रुओं की धार प्रदान कर इस लोक से प्रस्थान कर गई। भाभीजी शीतला माता का ठंडा खाने बुलाना कहने वाली उस लडक़ी को हर पर्व में हमारी आँखे ढूढ़ती है।
मेरे दादाजी स्वतंत्रता सेनानी नरसिंग दास जी चितलाँग्या की मूर्ति स्थापित करने में तात्कालिक महापौर श्री मधुसूदन यादव जी का जितना योगदान है उतना ही योगदान उस लड़की का भी है जिसके अथक प्रयासों को भूलाया नही जा सकता। बल्कि हमारे पूर्वजों के ऋण से हमें अऋण करने में जो सहयोग उसने प्रदान किया उसके प्रयास से हम सब उसके ऋणी हो गये।
नियति के क्रूर पंजों ने हमसे, हमारे मुहल्ले से, हमारे नगर से, हमारी शोभा छीन ली और सबको शोभाहिन कर दिया । परंतु उस शोभा ने अपने कार्यो से जन-जन के हृदय में जो शोभा स्थापित की है उसे कोई छीन नहीं सकता। पार्षद पद से महापौर पद पर आसीन होकर उसने जो नगर की शोभा बढ़ाई थी उस शोभा सोनी को विस्मृत करना असंभव है।
जब तक मेरा, मेरी पत्नी का और मेरे आने वाली पीढि़यों का जीवन रहेगा और जब तक नरसिंग दास जी चितलाँग्या के कार्यो को न्याय दिला कर उनकी प्रतिष्ठा को स्थापित करने की बात होगी तब तब शोभा सोनी के योगदान को याद किया जावेगा। शोभा ने अपने कर्तव्य पंथ पर चलते हुए नगर की शोभा को द्विगुणित किया था उस शोभा की असख्य समृतियों को विस्तृत करना असंभव है ।
(आशीष शांता जयकिशन चितलांग्या ने श्रीमति शोभा सोनी की तृतीय पुण्यतिथि पर यह लेख लिखा है)