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रायपुर। “एक राष्ट्र, एक उर्वरक’ योजना को भारतीय कृषि के लिए विनाशकारी और पूरे देश पर उर्वरकों का एक ही ब्रांड थोपने के इरादे से संचालित योजना बताया गया है। किसान सभा का मानना है कि पूरी योजना सरकारी खजाने का दुरूपयोग करके राजनैतिक प्रचार करने के लिए है, जिसमें उर्वरक की हर बोरी पर प्रधानमंत्री की फोटो चस्पा की जाएगी। एक प्रकार से यह चुनावी वर्ष में राजनैतिक प्रचार के इरादे से संचालित हथकंडा है।
छत्तीसगढ़ किसान सभा के मुताबिक केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्रालय द्वारा “प्रधानमंत्री भारतीय जन उर्वरक परियोजना” के माध्यम से इस योजना को लागू किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा कि उदारीकरण और निजीकरण की नीतियों के कारण आज देश एक भयावह खाद संकट से गुजर रहा है।
उनके अनुसार अब अधिकांश उर्वरक निजी कंपनियों द्वारा उत्पादित या आयात किए जाते हैं। इन कंपनियों का जोर केवल यूरिया पर है। इस परियोजना के माध्यम से मोदी सरकार का स्पष्ट इरादा अपने पसंदीदा कॉर्पोरेट घरानों के हाथों उर्वरक आपूर्ति के एकाधिकार को प्रोत्साहित करना ही है।
सब्सिडी प्रणाली ध्वस्त होगी
पराते और गुप्ता के मुताबिक यह योजना 1970 के दशक से उर्वरकों के लिए जारी सब्सिडी की प्रणाली को ध्वस्त कर देगी। निजी कॉरपोरेट क्षेत्र और दक्षिणपंथी सरकारों के बीच इस तरह की राजनीतिक सांठगांठ परजीवी (क्रोनी) पूंजीवाद की पहचान है।
किसान सभा नेताओं ने कहा है कि हमारे देश में विभिन्न क्षेत्रों की मिट्टी और विभिन्न फसलों की आवश्यकताओं के आधार पर विभिन्न उर्वरकों और सूक्ष्म पोषक तत्वों का उपयोग किया जाता है। इसलिए “एक राष्ट्र, एक उर्वरक” की अवधारणा विशेष रूप से बेतुकी है, क्योंकि यह अवधारणा पूरे देश में आपूर्ति के लिए उर्वरकों का एक ही ब्रांड बनाने के प्रयास की ओर इशारा करती है।
उन्होंने कहा कि उर्वरक क्षेत्र में मोदी सरकार का एकमात्र योगदान अवैज्ञानिक प्रथाओं को बढ़ावा देना, उर्वरकों के घरेलू उत्पादन को कमजोर करना, बड़े पैमाने पर कालाबाजारी की अनुमति देना और गैर-यूरिया उर्वरकों को अप्राप्य बनाना है, जिसके परिणामस्वरूप उर्वरकों के उपयोग में असंतुलन बिगड़ गया है।
उर्वरक के उपयोग में असंतुलन गैर-यूरिया उर्वरकों की कीमतों को नियंत्रण-मुक्त करने का परिणाम है। अतः जब तक गैर-यूरिया उर्वरकों को किसानों के लिए अधिक किफायती नहीं बनाया जाता, तब तक किसी भी तरह के जुमलों से संतुलित उपयोग को हासिल करने में मदद नहीं मिलेगी।
किसान सभा नेताओं ने कहा है कि इस तरह के हथकंडे अपनाने के बजाय, सरकार सख्त मूल्य नियंत्रण लागू करें और कॉर्पोरेट कंपनियों के शोषण से किसानों को बचाएं।