नेशन अलर्ट/नई दिल्ली.
कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से इस कदर नाराज बताया जा रहा है कि वह इन दिनों उनका नाम सुनना भी नहीं चाहती हैं। कभी गांधी परिवार के खासमखास रहे गहलोत को लेकर कांग्रेस की रणनीति चाहे जैसी भी रही हो लेकिन सोनिया गांधी की गुडबुक से वह बाहर हो चले हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का चुनाव भी गहलोत खेमे के विधायकों की चुनौती के चलते निर्विवाद नहीं रह गया है।
कांग्रेस इन दिनों अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर चर्चा में बनी हुई है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद इस्तीफा दे दिया था। किंतु परंतु के मध्य कांग्रेस ने तब वर्षों तक अध्यक्ष पद का दायित्व संभाल चुकी सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बनाकर काम चलाने का प्रयास किया। इस बीच न तो राहुल फिर अध्यक्ष बनने तैयार हुए और न ही बागी गुट के सुर में कोई बदलाव नजर आया। थक हारकर अंतत: कांग्रेस को अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने चुनाव कार्यक्रम घोषित करना पड़ा।
क्यूं गहलोत नहीं बन पाएंगे अध्यक्ष ?
एक समय अशोक गहलोत को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की संभावना जताई जा रही थी। गहलोत थे भी इस काबिल… वह गांधी परिवार के नजदीकी रहे थे। उन्होंने इंदिरा गांधी, राजीव गांधी के बाद सोनिया गांधी के नेतृत्व में न केवल काम किया था बल्कि धीरे धीरे अपनी स्थितिगांधी खेमे में इतनी मजबूत कर ली थी कि गांधी खेमा उनसे पूछे बगैर उनसे जुड़े मसले पर कोई भी निर्णय नहीं करता था।
3 मई 1951 में जन्में गहलोत क्या वाकई सठिया गए हैं ? यह सवाल इसलिए पूछा जा रहा है क्योंकि जब कांग्रेस की अंतरिम राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी उन्हें देश में कांग्रेस का दायित्व सौंपने की महती जिम्मेदारी का निर्वहन कर रही थी तब महज एक राज्य के मुख्यमंत्री बने रहने और विरोधी खेमे के सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनने देने की जिद में गहलोत अपनी भद पिटवा चुके हैं। अब उन पर कोई कांग्रेसी भरोसा नहीं कर पा रहा है।
वह सोनिया गांधी के बेहद करीबी कल तक रहे होंगे लेकिन आज उतनी ही दूरी दोनों के बीच पैदा हो गई है। जब राजस्थान के मुख्यमंत्री चुनने का सवाल था तब सोनिया की ही पसंद पर तब राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे राहुल गांधी ले देकर अशोक गहलोत के नाम पर सहमत हुए थे। यदि राहुल की एकतरफा चलती तो उसी समय सचिन पायलट जैसा युवा राजस्थान को संभाल रहा होता। चूंकि मां की पसंद गहलोत के नाम पर थी इसकारण राहुल खुलकर कुछ नहीं कर पाए। यही हाल मध्यप्रदेश में हुआ।
जिस तरह राजस्थान में सचिन पायलट राहुल की पसंद थे ठीक उसी तरह मध्यप्रदेश में राहुल की पसंद के व्यक्ति ज्योतिरादित्य सिंधिया थे। लेकिन यहां पर भी सोनिया की पसंद कमलनाथ पर टिकी हुई थी। अंतत: राहुल ने कमलनाथ को मध्यप्रदेश और अशोक गहलोत को राजस्थान का मुख्यमंत्री घोषित कर दिया। अब तक लोगों को लगता था कि यह राहुल की पसंद का मामला था। राहुल से ज्यादा पसंद के लोग गहलोत और कमननाथ सोनिया खेमे के थे। पहले मध्यप्रदेश में कांग्रेस का भविष्य बर्बाद हुआ और अब राजस्थान का क्रम है।
यदि उसी समय मध्यप्रदेश से ज्योतिरादित्य सिंधिया को और राजस्थान से सचिन पायलट को मुख्यमंत्री चुन लिया जाता तो आज कांग्रेस इस स्थिति का सामना नहीं कर रही होती। चूंकि सोनिया की पसंद पहले कमलनाथ और अब अशोक गहलोत फेल हो गए हैं इसकारण कांग्रेस वापस चौराहे पर खड़ी हुई नजर आती है।
भले ही कांग्रेस ने अशोक गहलोत को दिखाने के लिए ही सही अपनी ओर से कांग्रेस विधायक दल की बैठक के बहिष्कार के मामले में क्लीन चीट दे दी हो लेकिन उनके खासमखास रहे संसदीय कार्यमंत्री शांति धारीवाल, मुख्य सचेतक महेश जोशी व आरटीडीसी चेयरमैन धर्मेंद्र सिंह राठौर को कारण बताओ नोटिस जारी कर दी है। दस दिनों में इसके जवाब आ जाएंगे अथवा नहीं भी आ पाए तो कांग्रेस ने अपना एक्शन तय कर रखा है। इन पर जो गाज गिरेगी वह आने वाले दिनों में कांग्रेसियों को बगावत से पहले सोचने समझने मजबूर कर देगी।
अब सवाल अशोक गहलोत का है। फिलहाल कांग्रेस उनके मुद्दे पर मौन साधे हुए है। इस रहस्यमयी चुप्पी के कई अर्थ निकाले जा रहे हैं। कांग्रेस का सारा जोर इन दिनों अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव के शांतिपूर्वक लोकतांत्रिक तरीके से संपन्न हो जाने पर है लेकिन इसके बाद अशोक गहलोत शायद मुख्यमंत्री भी नहीं रह पाएं। वैसे इसका फैसला आज कल में ही हो जाएगा लेकिन इतना तय है कि अशोक गहलोत और सोनिया के बीच जो दूरी पनपी है वह आने वाले कई वर्षों तक नहीं मिट पाएगी। सोनिया गांधी चाह कर भी अशोक गहलोत को शायद ही कभी माफ कर पाए।