एमएमसी जोन में हाक फोर्स और माओवादियों की मुठभेड़, फायरिंग की आड़ लेकर डेरा छोड़ भाग खड़े हुए माओवादी
राजनांदगांव। मध्यप्रदेश-महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ (एमएमसी) जोन के माओवादियों के सरेंडर की अपील के बीच छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश की सीमा पर फिर एक बार हाक फोर्स और माओवादियों का आमना-सामना हुआ है। सर्चिंग आपरेशन के दौरान शनिवार की दोपहर एमपी की फोर्स और माओवादियों के बीच एक्सचेंज आफ फायर हुआ। इसमें कोई हताहत तो नहीं हुआ, लेकिन माओवादियों को अपना सारा सामान छोड़कर भागना पड़ा। बालाघाट एसपी ने मुठभेड़ की पुष्टि की है।
यह मुठभेड़ सरहदी क्षेत्र में मातघाट के पास हुई है जो कि मध्यप्रदेश की सीमा में आता है। यह क्षेत्र खैरागढ़-गंडई-छुईखदान जिले से लगा हुआ है। बीते 19 नवंबर को भी इसके ही करीब माओवादियों से मुठभेड़ में हाक फोर्स के निरीक्षक आशीष शर्मा का बलिदान हुआ था। माओवादी यहां डेरा डाले हुए थे। फोर्स को आगे बढ़ता देख फायरिंग की आड़े लेकर वे डेरा छोड़ भाग खड़े हुए। फोर्स ने मौके से माओवादियों के रोजमर्रा के सामान, साहित्य, दवाईयां और अन्य वस्तुएं बरामद की है। दूसरी ओर छत्तीसगढ़ की ओर से किसी तरह का आपरेशन शुरु किए जाने की पुलिस अधिकारियों ने पुष्टि नहीं की है।
बालाघाट के पुलिस अधीक्षक आदित्य मिश्रा ने मुठभेड़ की पुष्टि की है। एसपी के अनुसार दोपहर करीब 12.30 बजे माताघाट इलाके में यह मुठभेड़ हुई, जो बालाघाट सीमा के भीतर आता है। माओवादियों की संख्या स्पष्ट नहीं हो सकी। फायरिंग रुकने के बाद माओवादी अपना डेरा छोड़कर भाग निकले। मौके से सुरक्षाबलों ने बड़ी मात्रा में दैनिक उपयोग की सामग्री, विस्फोटक, वायर, मेडिकल किट और अन्य सामान बरामद किया।
गौरतलब है कि शुक्रवार को ही राजनांदगांव पुलिस ने एमएमसी जोन के नक्सलियों से सरेंडर की अपील की है। इससे पहले 26 नवंबर को स्पेशल जोनल कमेटी मेंबर और एमएमसी जोन के प्रवक्ता इनामी नक्सली विकास नागपुरे ने अपने 10 साथियों के साथ गोंदिया में महाराष्ट्र पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया था।
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि सुरक्षाबलों के मजबूत दबाव के कारण माओवादी लगातार ठिकाने बदलने पर मजबूर हैं। वे एक स्थान पर टिक नहीं पा रहे हैं और लगातार डेरे खाली कर भाग रहे हैं। उन्होंने कहा कि अब माओवादियों को स्थानीय ग्रामीणों से सहयोग भी नहीं मिल रहा है। ग्रामीणों ने उन्हें किसी भी प्रकार से सहायता नहीं देने का संकल्प लिया है। यही कारण है कि माओवादी राशन, दवाइयों और अन्य आवश्यक वस्तुओं के लिए मोहताज होते जा रहे हैं। कई क्षेत्रों में उनकी खाद्य सामग्री भी खत्म होने की स्थिति में है।

