अब तो “रामराज” ही लाना, नहीं चलेगा कोई बहाना !
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रायपुर.
भारतीय जनता पार्टी यानिकि भाजपा . . . छोटे बडे़ हर चुनाव जीतते चली आ रही है. लेकिन यही जीत उसके लिए परेशानी खडी़ करने वाली है. आने वाले समय में उसे मतदाताओं की हर अपेक्षा पर हर हाल में खरा उतरना पडे़गा. इसमें कोई बहाना नहीं चलेगा क्यूं कि विकास की रेल को सरपट दौडा़ने लोगों ने भाजपा को ट्रिपल इंजन की सरकार दी है.
पहले बात छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव की कर ली जाए. 2018 में मिली जबरदस्त जीत से जहाँ सरकार में बैठी काँग्रेस का उत्साह चरम पर था वहीं भाजपा 15 साल सरकार में रहने के बाद महज 15 सीटों पर सिमटने से अपने कार्यकर्ताओं की निराशा के साथ 2023 के चुनाव में उतर रही थी.
लेकिन 2023 में चुनाव हुए तो स्थिति एकदम से पलट गई. जिस काँग्रेस की सरकार के लौट आने की सँभावनाएँ बताई जा रही थी उसे उक्त चुनाव में सबसे बडी़ हार झेलनी पडी़.
फिर आया 2024 . . . इस साल लोकसभा के चुनाव हुए. प्रदेश के भीतर किंतु परँतु के बीच सिर्फ़ कोरबा लोकसभा क्षेत्र को छोड़कर प्रदेश की 11 में से 10 सीटों पर भाजपा के साँसद जीतकर आए.
इसके बाद इस साल नगरीय निकायों के चुनाव भाजपा के लिए एक बडी़ जीत लेकर आए. जिन दस नगर निगमों में चुनाव हुए वहाँ सभी में भाजपा के महापौर निर्वाचित घोषित हुए हैं. अधिकाँश पार्षद भी भाजपा के ही निर्वाचित घोषित हुए हैं.
क्यूं है खतरे की घँटी . . ?
बहरहाल, इन चुनावी नतीजों को भाजपा के लिए खतरे की घँटी क्यूं माना जा रहा है ? दरअसल, लोगों की अपेक्षाएँ अब अपने चरम पर होंगी. भाजपा यह नहीं कह पाएगी कि उसे ऊपर से सहयोग नहीं मिल रहा है.
क्यूं कि नीचे से ऊपर अथवा ऊपर से नीचे . . . कहीं से भी पकडिए . . . प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री अथवा महापौर . . . सब के सब भाजपाई हैं. भाजपा यहाँ आकर आने वाले दिनों में परेशानी का सामना करने जा रही है.
आम आदमी की आज की जरूरत रोटी, कपडा़ और मकान ही है. ऊपर से बिजली, सड़क, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा उसकी मूलभूत जरूरतों में शामिल है. इन सबकी स्थिति कैसी है, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है.
शहर ओवरलोड हैं. ऊपर से यातायात की समस्या है. पानी कहीं पर भी स्वच्छ नहीं रह गया है. उद्योग नहीं होने से जहाँ राजनांदगाँव निगम के युवाओं की बेरोजगारी समझी जा सकती है वहीं उद्योगों के होने से पर्यावरण प्रदूषण की दिक्कत झेल रहे कोरबा – रायगढ़ निगम के वाँशिंदों की साफ हवा की चाहत क्या पूरी हो पाएगी ?
चुनाव पर कडी़ नज़र रखने वाले सँजय पराते इससे इत्तेफाक नहीं रखते हैं. वह किसान सभा से जुडे़ हुए हैं. पराते कहते हैं कि डबल अथवा ट्रिपल इंजन पर कोई भरोसा नहीं है.
पराते इसे स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि सँविधान के मुताबिक निकाय किसी सरकार के बँधक नहीं हैं लेकिन जिस तरीके से जिन नीतियों के साथ सरकार चल रही है उस अनुसार निकायों को सरकार के समझ झोली फैलानी ही पडे़गी क्यूं कि उसके खजाने खाली हैं.
वह स्मार्ट मीटर का उदाहरण देते हैं. पराते कहते हैं कि इस पर अभी सरकारी खजाने से 5 हजार करोड़ रूपए खर्च किए जा रहे हैं. स्मार्ट मीटर की औसत उपयोगिता 7 वर्ष ही है.
पराते के कहे मुताबिक 7 साल के बाद जब स्मार्ट मीटर बदलवाना पडे़गी तब सरकार नहीं बल्कि आम उपभोक्ता को ही खर्च करना पडे़गा. प्रदेश के लाखों लोग गरीब हैं, मजदूर हैं, किसान हैं. वह कहाँ से कर पाएँगे ? जबकि बिजली आम आदमी की जरूरत है.
सँपत्तिकर का विषय उठाते हुए वह कहते हैं कि भाजपा का वायदा रहा है कि इसे सुधारा जाएगा लेकिन यही सरकारें अधिरोपित करती रही हैं. उदाहरण बतौर वह कोरबा निगम का नाम लेते हैं.
सँजय बताते हैं कि कोरबा में पिछली शहर सरकार वामपंथियों के भरोसे थी. हमारी माँग थी कि सँपत्तिकर खत्म किया जाए जिस पर तब के मँत्री जयसिंह अग्रवाल अपनी काँग्रेस सरकार से फैसला नहीं करा पाए.
सड़क, बिजली, पानी जैसे मूलभूत विषयों पर भी निकायों को काम करने सरकार से अपेक्षा करनी ही पडे़गी. सौभाग्य बोलिए, दुर्भाग्य बोलिए लेकिन प्रदेश में भाजपा की ही सरकार है. केंद्र में भी उनकी ही सरकार है.
पराते कहते हैं कि अब हर हाल में काम होने ही चाहिए. इसमें कोई बहानेबाजी नहीं चलेगी. यदि लोगों की अपेक्षा अनुरूप काम नहीं हुए तो माना जाएगा कि रामराज न था, न है और न रहेगा.
आँकड़ों में चुनाव . . .
विधानसभा 2023 2018
भाजपा 54 15
काँग्रेस 35 68
लोकसभा 2024 2019
भाजपा 10 09
काँग्रेस 01 02
स्थानीय 2025 2020
भाजपा 10 00
काँग्रेस 00 14 (पार्षदों ने महापौर चुना था)
( ऊपर दिए स्थानीय निकायों के परिणाम सिर्फ़ निगम क्षेत्र के हैं. इस बार 49 पालिकाओं में से 35 भाजपा, 08 काँग्रेस ने जीती हैं. जबकि 114 नगर पँचायतों में से 81 पर भाजपा और 22 पर काँग्रेस जीतीं हैं. शेष सीटें बसपा, आप व निर्दलियों को गई हैं.)

