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रायपुर.
प्रधानमंत्री द्वारा नवंबर तक 5 किलो अनाज मुफ्त में दिए जाने की घोषणा को “जले पर नमक छिड़कने” जैसा बताया जा रहा है. इसे स्वास्थ्य मानकों के आधार पर यह किसी व्यक्ति के लिए आवश्यक न्यूनतम 2100 कैलोरी पोषण-आहार की जरूरत को भी पूरा नहीं करती ऐसा बताया गया है.
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री ने हाल ही में उक्त घोषणा की थी. कोरोना महामारी के चलते उन्होंने आम जनमानस को राहत प्रदान करने मुफ्त अनाज वितरण की अवधि बढा़ने की बात कही थी.
घोषणा के मुताबिक देश की तकरीबन 80 करोड़ आबादी लाभान्वित होगी बताया गया था. फिलहाल यह योजना नवंबर माह तक चालू रहने की बात प्रधानमंत्री ने कही थी.
प्रधानमंत्री द्वारा की गई घोषणा अगले ही दिन विवादों में आ गई. विपक्षी दल इस पर अपने अपने नजरिए से आपत्ति जता रहे हैं. धार्मिक से लेकर सामाजिक पहलू बताए जा रहे हैं.
प्रधानमंत्री ने योजना का विस्तार करते हुए त्योहारी सीजन का उल्लेख किया था. इसमें उन्होंने दीपावली व छठ पर्व का तो उल्लेख किया लेकिन ईद का नाम लेना वह भूल गए.
अब ऐसा क्यूं व कैसे हुआ यह तो नहीं जानते लेकिन इस पर कुछ मुस्लिम नेताओं ने आपत्ति की है. उन्होंने पीएम पर तंज कसते हुए अपनी तरफ से ईद की बधाई भी दी है.
इधर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने भी पीएम की घोषणा को अव्यवारिक बताया है. कोरोना महामारी के बीच अनियोजित व अविचारपूर्ण लॉक डाऊन के चलते पैदा हुए संकट के मद्देनजर हो रही परेशानी की ओर उसने ध्यान आकृष्ट किया है.
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने एक बार पुनः अगले छह महीनों तक देश के सभी लोगों को हर माह 10 किलो अनाज, टैक्स दायरे से बाहर के सभी परिवारों को 7500 रुपए नगद सहायता राशि देने की जरुरत जताई है.
इसी तरह घर लौटे सभी प्रवासी मजदूरों को मनरेगा में 200 दिनों का काम देने, बेरोजगारों को भत्ता देने और कोरोना टेस्ट सहित स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार करने की मांग की है. पार्टी ने कहा है कि आम जनता को राहत देने के लिए प्रधानमंत्री केयर्स फंड में जमा हजारों करोड़ रुपयों की राशि का उपयोग किया जाए.
सरकारी गोदामों में 11 करोड़ टन अनाज
आज यहां जारी एक बयान में माकपा राज्य सचिवमंडल ने देश के गरीबों को सिर्फ 5 किलो अनाज देने की घोषणा को अपर्याप्त और जले पर नमक छिड़कने के समान बताया है.
कहा गया है कि स्वास्थ्य मानकों के आधार पर यह किसी व्यक्ति के लिए आवश्यक न्यूनतम 2100 कैलोरी पोषण-आहार की जरूरत को भी पूरा नहीं करता. इस पेशकश से सिर्फ 2 करोड़ टन अनाज की ही निकासी होगी, जबकि सरकारी गोदामों में 11 करोड़ टन अनाज भरा पड़ा है. फिर भी करोड़ों लोग भुखमरी का शिकार हो रहे हैं.
माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने कहा कि ऐसी स्थिति में जबकि 14 करोड़ लोगों को रोजी-रोटी का नुकसान हुआ है और 8 करोड़ प्रवासी मजदूर अभी भी घर वापसी का प्रयास कर रहे हैं, जनधन खातों में महज 500 रुपये देने की बात कहना उनके कष्टों का मजाक उड़ाना ही है.
इसी प्रकार पूर्व में घोषित 14 करोड़ किसानों को प्रधानमंत्री किसान योजना का लाभ दिए जाने का दावा नौ करोड़ किसानों तक सीमित होकर राह गया है. पांच करोड़ किसानों को इस योजना के दायरे से बाहर कर दिया गया है लेकिन किसानों के लिए इस योजना का पैसा देना कोई अतिरिक्त राहत नहीं है, क्योंकि यह योजना बजट प्रावधान का ही हिस्सा है.
उन्होंने कहा कि घर वापस हुए मजदूरों को मनरेगा में काम दिए जाने का केंद्र सरकार का दावा भी झूठा ही है. यदि अतिरिक्त एक करोड़ लोगों को भी 100 दिनों का काम देना है, तो उसके लिए 2.5 लाख करोड़ रुपयों की जरूरत होगी, जबकि सरकार ने इतनी राशि का इंतज़ाम ही नहीं किया है.
माकपा नेता ने प्रधानमंत्री के इस दावे को भी हवा-हवाई बताया है कि उनकी सरकार कोरोना महामारी का प्रभावी ढंग से मुकाबला कर रही है. उन्होंने कहा कि विश्व में कोरोना टेस्ट की सबसे नीची जांच दर होने के बावजूद आज विश्व में कोरोना पॉजिटिव मामलों में तीसरे स्थान पर होना और कोरोना से होने वाली मौतों में तेजी से वृद्धि होना ही उनके दावे की असलियत उजागर कर देता है.
माकपा ने कोरोना टेस्ट सहित स्वास्थ्य सुविधाओं का तेजी से विस्तार करने, सभी स्वास्थ्यकर्मियों को पीपीई उपलब्ध कराने और स्वास्थ्य सुविधाओं को सार्वभौमिक बनाने की मांग भी की है.