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रायपुर.
केंद्र सरकार द्वारा कोल ब्लाक की नीलामी के मुद्दे
ने अब राजनीतिक रंग लेना शुरु कर दिया है. झारखंड सरकार इस विषय पर जिस तरह कोर्ट गई है ठीक उसी तरह छत्तीसगढ़ सरकार को भी न्यायालय का दरवाजा खटखटाना चाहिए. ऐसी मांग किसान सभा ने की है.
भूमि अधिकार आंदोलन और इससे जुडी अखिल भारतीय किसान सभा, आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच के आह्वान पर छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा खुलकर इस विषय पर सामने आ गए हैं.
41 कोल ब्लॉकों को कारपोरेटों को नीलाम करने, इसके व्यवसायिक खनन की अनुमति देने के खिलाफ कोयला श्रमिकों की 2-4 जुलाई को आहूत तीन दिवसीय राष्ट्रव्यापी हड़ताल के समर्थन में पूरे प्रदेश में एकजुटता कार्रवाई की जाएगी.
किसान सभा ने कोयला के व्यवसायिक खनन का प्रदेश के आदिवासी समुदायों पर पड़ने वाले सामाजिक और पर्यावरणीय दुष्प्रभाव, जैव विविधता और समृद्ध वन्य जीवों के विनाश को लेकर चिंता जताई है.
राज्यों के अधिकारों और संविधान की संघीय भावना के अतिक्रमण, अंतर्राष्ट्रीय पेरिस समझौते की भावना के उल्लंघन को देखते हुए इसके कानूनी पहलुओं पर झारखंड सरकार की तरह छत्तीसगढ़ सरकार को भी कोर्ट में चुनौती देने की अपील की है.
एक बयान में किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते व महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा कि छत्तीसगढ़ में कई कोल ब्लॉक पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों में है.
हाथी संरक्षण और विभिन्न कारणों से इसे खनन के लिए ‘नो-गो एरिया’ घोषित किया गया है. वर्ष 2015 में ही हसदेव अरण्य की 20 ग्राम पंचायतों ने इस क्षेत्र में पेसा, वनाधिकार कानून व पांचवी अनुसूची के प्रावधानों का उपयोग करते हुए कोयला खनन के विरोध में प्रस्ताव पारित किए हैं.
गैर कानूनी निर्णय
उनके अनुसार आदिवासी समुदायों को हमारे देश के संविधान से मिले इन अधिकारों के मद्देनजर केंद्र सरकार का यह निर्णय गैर-कानूनी है.
उन्होंने बताया कि मोदी सरकार का यह कदम सुप्रीम कोर्ट द्वारा कोलगेट मामले में दिए गए निर्णय के भी खिलाफ है.
इस निर्णय में कहा गया है कि राष्ट्रीय संपदा का उपयोग सार्वजनिक हित में देश की जरूरतों को पूरा करने के लिए ही किया जा सकता है.
उन्होंने कहा कि कोयला जैसी प्राकृतिक संपदा पर किसी सरकार का नहीं, देश की जनता और उसकी आगामी पीढ़ियों का अधिकार है.
इसे जैव विविधता और वन्य जीवन का विनाश कर के कारपोरेट मुनाफे के लिए खोदने-बेचने की इजाजत नहीं दी जा सकती है.
किसान सभा नेताओं ने कहा कि कोरोना की आड़ में अर्थव्यवस्था सुधारने के नाम पर जो कदम उठाए जा रहे हैं, वह ‘आत्मनिर्भर भारत’ नहीं, ‘अमेरिका पर निर्भर भारत’ का ही निर्माण करेगा.
निर्यात के लिए कोयले के व्यावसायिक खनन की अनुमति देने से घरेलू बाजार में भी इसकी कीमत बढ़ेगी और सीमेंट, इस्पात, खाद व ऊर्जा उत्पादन भी प्रभावित होगा.
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के दस्तावेजों के ही अनुसार, देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए नए कोयला खदानों के खनन की जरूरत नहीं है, क्योंकि सरकार के नियंत्रण में वर्तमान में हो रहा कोयला उत्पादन भविष्य में ऊर्जा की जरूरत भी पूरा करने में सक्षम हैं.
मोदी सरकार की विनाशकारी जनविरोधी नीतियों के खिलाफ कोयला मजदूरों की प्रस्तावित देशव्यापी हड़ताल का समर्थन करते हुए किसान सभा ने पूरे प्रदेश में 2-4 जुलाई को एकजुटता कार्यवाही आयोजित करने की घोषणा की है.