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रायपुर। छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार को किसान हितैषी बताने के क्रम में यह सवाल लाजमी है कि फिर क्यूं कृषक यहां आत्महत्या कर रहे हैं ? राजनीतिक दलों के अपने अपने दावे और वायदे के बीच किसानों की अकास्मिक मौत अपनी ओर ध्यान खींचती है।
राज्य में विधानसभा चुनाव होने को है। छत्तीसगढ़ धान की पैदावरी वाला राज्य माना जाता है। यहां बहुतायत में धान और चावल उत्पादित होता है। बीता चुनाव किसानी मुद्दे को लेकर ही लड़ा गया था जिसमें तत्कालीन भाजपा सरकार कहीं न कहीं कमजोर साबित हुई थी।
उस समय कांग्रेस के उठाए गए मुद्दे छत्तीसगढ़ के आम मतदाताओं जिनमें से बहुसंख्यक मतदाता किसानी कार्य से जुड़े हुए हैं, को अपनी ओर आकर्षित कर ले गए थे। तब से किसान, धान, चावल, कृषि के मसले के इर्द गिर्द छत्तीसगढ़ की राजनीति घूमती फिरती रही है।
क्या कहते हैं आंकड़े
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) हर साल देश में होने वाली प्रमुख घटनाओं-दुर्घटनाओं के आंकड़े एकत्र करता है। एनसीआरबी का आंकड़ा बताता है कि छत्तीसगढ़ 2019 और 2020 में किसानों की आत्महत्या के मामले में देश में छठा स्थान रखता था।
राज्य के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू खुद विधानसभा में एक सवाल के जवाब में यह स्वीकार कर चुके हैं कि 431 किसानों ने आत्महत्या की थी। यह आंकड़ा 1 अप्रैल 2019 से लेकर 31 जनवरी 2022 के बीच का था। सवाल पेशे से कृषक बताए जाने वाले भाजपा विधायक अजय चंद्राकर ने पूछा था।
2021 की एनसीआरबी द्वारा तैयार की गई रपट के मुताबिक तब किसानी आत्महत्या के मामले में महाराष्ट्र प्रथम स्थान पर रहा था। इसके बाद कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ का क्रम आता है। महाराष्ट्र में उस समय 4006 किसान देह त्याग चुके थे।
कर्नाटक में 2016, आंध्रप्रदेश में 889, मध्यप्रदेश में 735 के बाद छत्तीसगढ़ का नंबर आया था उस समय तक 537 किसानों ने आत्महत्या की थी। वित्तीय वर्ष 2019-20 में 166 और 2020-21 में 186 किसानों की आत्महत्या के आंकड़े आए थे।
छत्तीसगढ़ सरकार स्वयं के किसान हितैषी होने का दावा करती रही है। वह किसान और किसानी से जुड़ी कई योजनाएं भी संचालित कर रही है। निसंदेह इसका फायदा किसानों तक पहुंच भी रहा है लेकिन फिर भी किसान आत्महत्या थमने का नाम नहीं ले रही है। किसानों की आत्महत्या के मामले में पूर्व में छत्तीसगढ़ में प्रतिशत 4.9 बैठता था।
किसान सभा से जुड़े संजय पराते बताते हैं कि पहले छत्तीसगढ़ के किसानों की आत्महत्या के मामले में देश में पांचवा स्थान था। जबकि वास्तविक किसान आत्महत्या की दर के आधार पर यह चौथे स्थान पर था। एनसीआरबी के आंकड़ों को वह आधा अधूरा बताते हैं।
भाजपा आज भले ही विपक्ष में रहते हुए किसान आत्महत्या के प्रकरण पर शोर शराबा मचाए हुए हैं लेकिन उसके समय भी बड़ी संख्या में किसान देह त्याग रहे थे। आज जो काम कांग्रेस कर रही है पहले वही काम भाजपा करती रही थी। भाजपा-कांग्रेस पर आरोप लगता है कि वह सरकार में आते ही आंकड़ों से खेलने लगती है।
तब कांग्रेस के विधायक रहे धनेंद्र साहू के एक सवाल के जवाब में तत्कालीन गृहमंत्री रामसेवक पैकरा ने विधानसभा में बताया था कि वर्ष 2015-16 में आत्महत्या करने वाले 1271 किसानों में से मात्र 17 व्यक्ति ऐसे रहे थे जिन्हें आर्थिक परेशानी के चलते यानि कि किसान कर्ज के कारण देह त्यागनी पड़ी थी।
बहरहाल, किसान और उससे जुड़े मद्दे राजनीतिक दलों के लिए चुनावी भले हो लेकिन इतना तय है कि किसानों की स्थिति कल जो थी वही आज है। तभी तो छत्तीसगढ़ में किसान खुद का पालन पोषण करने वाली सरकार होने का दावा कर रही कांग्रेसीराज में भी आत्महत्या करने से पीछे नहीं हट रहे हैं।