नेशल अलर्ट/www.nationalert.in
जगदलपुर। क्या किसी गांव से यह उम्मीद की जा सकती है कि वहां के ग्रामीणों ने प्रशासन के मुखिया को 76 साल बाद देखा हो ? जी हां… बिल्कुल… दरअसल संभाग का एक गांव है कलेपाल… कलेपाल तक पहुंचने प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों को एक, दो नहीं बल्कि पूरे 76 साल लग गए। इस लंबी अवधि के चक्र को तोड़ने के लिए कलेक्टर विजय दयाराम और उनकी टीम को बधाई तो देनी ही चाहिए।
संभाग के तीन जिलों सुकमा, दंतेवाड़ा और बस्तर की सीमा पर बसा हुआ गांव है कलेपाल… वैसे यह गांव बस्तर जिले का है लेकिन कलेपाल निवासी ग्रामीण जीवन यापन के लिए जरूरी सामान के क्रय विक्रय करने दंतेवाड़ा जिला पर निर्भर रहते हैं।
जगदलपुर से कलेपाल की दूरी और दंतेवाड़ा से वहां तक का सफर कैसे क्या होता होगा यह जानने अभी तक प्रशासन की ओर से कोई मुहिम नहीं चली थी। वह तो भला हो कलेक्टर के का जिन्होंने यहां कार्यभार ग्रहण करने के बाद दूरस्थ इलाकों में जाना प्रारंभ किया।
इसी कड़ी में कलेक्टर दयाराम कलेपाल पहुंचे थे। यहां तक पहुंचने उन्हें अपने शासकीय वाहन के अलावा बाइक पर और फिर पैदल सफर भी करना पड़ा। लेकिन जिलाधीश दयाराम ने हिम्मत नहीं हारी और कलेपाल पहुंचकर ही दम लिया।
सड़क का है अभाव
दरअसल कलेपाल तक पहुंचना बहुत कठिन काम है। यहां पहुंचने के लिए आपको गाडि़यों से ज्यादा दम अपने पैरों पर डालना पड़ेगा। ऐसा क्यूं ? ऐसा इसलिए कि कलेपाल के ठीक पहले पांच किमी का सफर आपको पैदल ही पूरा करना पड़ेगा। कलेक्टर दयाराम सहित प्रशासनिक अघिकारियों को भी यह करना पड़ा।
बीहड़ में बसा होने के चलते कलेपाल तक सीधी कोई सड़क नहीं है। जब कच्ची सड़क ही नहीं है तो पक्की सड़क की चिंता बेमानी है। कच्ची सड़क भी ऐसी कि जिसे जगह जगह नक्सलियों ने काट दिया हो। नक्सलियों का सामना कहीं पर भी कभी भी हो सकता है।
कलेक्टर विजय दयाराम के अपने अधीनस्थ अधिकारियों के साथ कलेपाल पहुंचने बस्तर से रवाना हुए थे। बस्तर से दंतेवाड़ा के रास्ते व अपने अधीन आने वाले कलेपाल गांव पहुंचे। यहां तक पहुंचने में 76 साल का लंबा समय किसी भी कलेक्टर को लग गया।
आजादी के इतने वर्षों के बाद कलेपाल वासियों ने जिलाधीश अथवा इतने बड़े अधिकारी को अपने बीच देखा था। कलेक्टर दयाराम पहले अपनी कार से दंतेवाड़ा होते हुए आगे बढ़े थे। आगे सफर पूरा करने उन्हें बाइक का सहारा लेना पड़ा।
बाइक भी कलेपाल गांव के ठीक पांच किमी पहले उन्हें रोक देनी पड़ी क्योंकि आगे दुपहिया जाने लायक भी सड़क नहीं थी। यहां से उन्हें लाव लश्कर के साथ आगे बढ़ना पड़ा। जगदलपुर से करीब 60 किमी दूर वह दंतेवाड़ा के कटेकल्याण कार से आए थे।
कटेकल्याण से 10 किमी दूर उन्हें बाइक के सफर का आनंद लेना पड़ा। 10 किमी के बाद बाइक जो छुटी कि फिर 5 किमी का सफर अपने पैरों के दम पर उन्हें पूरा करना पड़ा। कलेक्टर के गांव पहुंचते ही 400 मतदाताओं वाले कलेपाल के लोग खुशी से झूम उठे।
5 फीसदी हुआ था मतदान
उल्लेखनीय है कि कलेपाल गांव में तकरीबन 400 मतदाता हैं। इस गांव के मतदाता जनप्रतिनिधियों की बेरूखी से भी नाराज हैं। दरअसल कोई जनप्रतिनिधि वोट मांगने के नाम पर भी कलेपाल गांव नहीं पहुंच पाता है।
संभवत: इसी के मद्देनजर वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान कलेपाल गांव के सिर्फ 5 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया था। अब कलेक्टर दयाराम ने कलेपाल वासियों से कहा है कि गांव का विकास तभी होगा जब वह मतदान करेंगे।
कलेक्टर दयाराम ने मतदान करने ग्रामीणों को यह कह कर शपथ भी दिलाई कि अगर मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे तो जन प्रतिनिधि भी विकास कार्यों को गांव तक पहुंचाने के लिए तत्पर होंगे। कलेपाल वासियों ने कलेक्टर को बताया था कि कोई उनकी समस्या सुनने नहीं आता इसकारण वह मतदान करने से पीछे रहते हैं।
इस पर कलेक्टर दयाराम ने प्रशासन की प्राथमिकता गिनाते हुए सड़क बनाने का आश्वासन दिया। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में बनने वाली सड़क सहित पुल-पुलिया बनाने के लिए रूपरेखा तैयार करने के निर्देश कलेक्टर ने अधीनस्थ अधिकारियों को दिए। ग्रामीणों से वह वादा कर आए हैं कि सड़क सहित जो भी विकास कार्य होंगे उनका लाभ वह कलेपाल गांव के लोगों तक पहुंचाने का भरपूर प्रयास करेंगे।