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रायपुर। छत्तीसगढ़ की प्रशासनिक लॉबी के लिए सिरदर्द बन चुकी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की नजर अब जिला खनिज निधि(डीएमएफ) पर बारिकी से टिकी हुई है। डीएमएफ के मामले में उसने 33 जिलों के संदर्भ में जानकारी मांगी है। तकरीबन 5 जिले ईडी की तिरछी निगाहों में बताए जाते हैं।
दरअसल, मामला राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद शुरू हुआ था। पहले ईडी ने कोल परिवहन को अपनी जांच के दायरे में लिया। इसके बाद उसकी दस्तक आबकारी विभाग में दर्ज की गई। दोनों ही मामलों में दो आईएएस अधिकारी ईडी की गिरफ्त में आ चुके हैं।
पहले बिश्नोई फिर रानू हुईं अंदर
पिछले साल 13 अक्टूबर को आईएएस समीर बिश्नोई गिरफ्तार किए गए थे। 14 दिनों तक ईडी की कस्टडी में रहने के बाद उन्हें 27 अक्टूबर को न्यायालय के आदेश पर जेल भेज दिया गया था।
आईएएस बिश्नोई से होते हुए मामला आईएएस रानू साहू के घर तक पहुंचा। रानू साहू जब रायगढ़ कलेक्टर हुआ करती थी तब भी उनके शासकीय बंगले पर ईडी ने छापा मारा था।
रायगढ़ में मारे गए छापे के बाद लग रहा था कि ईडी कभी भी आईएएस साहू को गिरफ्तार कर सकती है लेकिन उसने आश्चर्यजनक रूप से चुप्पी साध ली थी।
इस साल 22 जुलाई को देवेंद्र नगर स्थित आईएएस रानू साहू व उनके पति आईएएस जेपी मौर्य के बंगले पर छापा डाला। किंतु परंतु के मध्य अंतत: आईएएस रानू साहू भी गिरफ्तार कर ली गईं।
जिलाधीश रहे अधिकारी निशाने पर
उक्त दोनों मामले कोल परिवहन व शराब से जुड़े हुए बताए गए हैं। अब लेकिन ईडी की निगाह में डीएमएफ मद भी आ चुकी है। दरअसल यह मद सीधे तौर पर जिलाधीश के अधीन ही रहती है।
कलेक्टर डीएमएफ का अपनी मर्जी से उपयोग करते रहते हैं। इसी कड़ी में ईडी ने सरकार से जानकारी मांगी है कि डीएमएफ से कुल कितना खर्च किया गया है ? साथ ही साथ किस पर खर्च किया गया है यह भी बताने लिखा गया था।
ईडी जानना चाहती है कि अलग अलग जिलों में डीएमएफ की क्या स्थिति है। जनचर्चा इस बात की भी है कि दंतेवाड़ा, रायगढ़, कोरबा, राजनांदगांव व चांपा जांजगीर जिले में इस सरकार के कार्यकाल में कौन कौन आईएएस बतौर कलेक्टर पदस्थ रहा इस पर भी ईडी कार्य कर रही है।
प्रशासनिक लॉबी में चल रही चर्चा के मुताबिक उक्त जिलों में 2019 से अब तक कौन कौन आईएएस बतौर कलेक्टर पदस्थ था उन्हें पूछताछ के लिए बुलाने की तैयारी में ईडी की टीम इन दिनों लगी हुई है।
साथ ही साथ आदिम जाति विभाग, खनिज विभाग के अलावा जिला प्रशासन से जुड़े अन्य कुछेक विभागों के अधिकारी भी पूछताछ के लिए बुलाए जा सकते हैं। यदि ऐसा होता है तो मामला फर्नीचर खरीदी तक पहुंचेगा और कई परतें खुलेंगी।