नेशन अलर्ट/रायपुर.
बस्तर के सुकमा में आज से एक पदयात्रा शुरू हो गई है। पूर्व विधायक मनीष कुंजाम के नेतृत्व में तकरीबन 400 आदिवासी महिला-पुरूष इस पदयात्रा में शामिल हैं। पदयात्रा विभिन्न विषयों को लेकर की जा रही है लेकिन मुख्य विषय सिलगेर में हुआ वह गोलीकांड है जिसमें 4 आदिवासियों की मौत हो गई थी और दर्जनों घायल हुए थे। मनीष पूछते हैं कि सरकार इस गोलीकांड की रपट क्यूंकर दबाए बैठे हुए है।
पूर्व विधायक मनीष कुंजाम ने मंगलवार शाम ‘नेशन अलर्ट’ से बातचीत की। मनीष ने बताया कि कल सोमवार को वह और उनके सभी साथी सिलगेर में एकत्र हुए थे। सिलगेर से आज वह पदयात्रा करते हुए निकले। पदयात्रा शाम तक जगरगुंडा पहुंच गई थी। 16 किमी के इस सफर के बाद आज का रात्रि विश्राम जगरगुंडा में ही रखा गया है।
पुलिस और प्रशासन का रवैया ठीक नहीं
मनीष ने कल सुबह चाय नाश्ते के बाद पदयात्रा के पुन: प्रारंभ होने की जानकारी देते हुए बताया कि इसका बुधवार को रात्रि विश्राम 12 किमी की यात्रा के बाद चिंतानार में रखा गया है। पुलिस व प्रशासन के रवैये को अनुचित बताते हुए मनीष कहते हैं कि न जाने क्यों प्रशासन पदयात्रा की अनुमति नहीं दे रहा है। पुलिस सुरक्षा देने में यह कहते हुए आनाकानी करती है कि गहन नक्सलप्रभावी क्षेत्र है।
पूर्व विधायक कुंजाम बस्तर में हजारों हजार की संख्या में तैनात फोर्स का हवाला देते हुए पूछते हैं कि क्या कारण है पुलिस इसके बावजूद उन्हें सुरक्षा नहीं दे पाएगी। पदयात्रा के विषय पर अनुमति लेने वह हाईकोर्ट तक गए हुए थे। हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के फैसले के खिलाफ उन्होंने जब डबल बेंच में याचिका दायर की तो वहां से उन्हें डीएम के पास यह निर्देश देते हुए भेजा गया कि वह स्थानीय परिस्थति के अनुरूप इस पर फैसला लेंगे।
26 सितंबर को सुकमा में इस पदयात्रा का समापन होना है। पदयात्रा को मौलिक अधिकार बताने वाले कुंजाम कहते हैं कि धरना प्रदर्शन करना हम सबका संवैधानिक अधिकार है। दरअसल, 16 माह पूर्व हुए सिलगेर के गोलीकांड में जिन चार आदिवासियों की मौत हुई थी उसकी मजिस्ट्रियल जांच रपट सरकार दबाए बैठी हुई है। पहले भी इस तरह के हादसों की न्यायिक जांच रपट सरकार के खिलाफ आ चुकी है।
बस्तर के विषयों पर मुखर रहने वाले मनीष कुंजाम कहते हैं कि ऐसे सवाल पब्लिक डोमेन में नहीं उठते रहने चाहिए यही सोचकर शायद सरकार अनुमति नहीं दे रही है। पेसा कानून का उल्लेख करते हुए वे कहते हैं कि यह कानून गांवों को अधिकार देता है कि वह स्वायत हो। सरकार को व्यवस्था करनी है कि अधिकतम गांव स्वाशासी बने। इसके बावजूद ट्रायबल एरिया के लिए बने ये सारे कानून सरकार इसलिए लागू नहीं करना चाहती है क्योंकि उसकी मंशा आदिवासी क्षेत्र की जमीन पर काबिज जंगल और जल को बेचने की रही है।
(तस्वीर सांकेतिक)