कथित मुठभेड़ के खिलाफ पीयूसीएल ने खोला मोर्चा
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जगदलपुर.
13 सितंबर को हुई कथित मुठभेड़ के खिलाफ पीयूसीएल ने मोर्चा खोल दिया है. उसने राज्य सरकार से मांग की है कि उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश से मुठभेड़ की जांच कराने का आदेश दे.
उल्लेखनीय है कि उक्त मुठभेड़ में पोडिय़ा सोरी व लच्छू मंडावी नामक आदिवासी युवक मारे गए थे. इस पर मानव अधिकार के संरक्षकों यथा बेला भाटिया, सोनी सोरी, मड़कंप हिड़मे व लिंगाराम कोड़ेपी के द्वारा एक रपट तैयार की गई थी.
उक्त रपट के आधार पर पीयूसीएल ने अब न्यायिक जांच कराने की मांग की है. उसका कहना है कि पोडिय़ा व लच्छू गुमियापाल (दंतेवाड़ा) के सम्मानित युवा थे. दोनों किरंदूल के नंदराज पर्वत में लौह अयस्क खनन शुरू करने का विरोध कर रहे थे.
पीयूसीएल का यह भी मानना है कि नंदराज पर्वत को आदिवासी पवित्र देव स्थल मानते हैं. प्रभावित गांव की ग्राम सभा से प्राप्त अनापत्ति प्रमाण पत्र को लेकर न्यायिक जांच शुरू कराई गई है. दरअसल अनापत्ति प्रमाणपत्र फर्जी बताया जाता है.
इसके बावजूद 13 सितंबर को सोरी और मंडावी को गांव में सुरक्षा बलों ने मार डाला. पांच लाख का ईनामी नक्सली कमांडर घोषित किया गया. आरोप है कि सुरक्षा बलों के साथ गोलीबारी में दोनों नहीं मारे गए थे.
पीयूसीएल के मुताबिक फैक्ट फाइंडिंग टीम ने ग्रामीणों से चर्चा की थी. ग्रामीणों ने उन्हें बताया था कि पांच ग्रामीणों को जिनमें सोरी और मंडावी भी शामिल थे को सुरक्षा बल के जवान ले गए थे.
पीयूसीएल का कहना है कि रास्ते में दो ग्रामीण सुरक्षा बल को चकमा देकर भाग गए थे. अगली सुबह पोडिय़ा और लच्छू के मारे जाने की खबर सुनाई दी. पांचवा युवक अजय तेलम तब तक पुलिस की हिरासत में था.
16 सितंबर को इसी मुद्दे पर किरंदूल थाने ग्रामीण पहुंचे थे. वहां थाने में प्रवेश नहीं करने दिया गया. आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप उल्टे लगाते हुए बेला भाटिया, सोनी सोरी, सरपंच नंदा व उसके पति भीमा सहित तकरीबन दो सौ लोगों पर अपराध क्रमांक 62/2019 दर्ज कर लिया गया.
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा पुलिस की इस हरकत से स्वयं पीयूसीएल हैरान है. वह इस तरह की कार्यवाही का पूरजोर विरोध करता है. इसलिए उसने अब राज्य सरकार से मांग की है कि इसकी न्यायिक जांच कराई जाए.
इसके अलावा वह यह भी मांग करती है कि अपराध क्रमांक 62/2019 का खात्मा कर पुलिस द्वारा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के उत्पीडऩ को बंद कराया जाए. पुलिस की जवाबदेही तय की जाए.