शरद पूर्णिमा में पायें अमृत फल..जाने शुभ मुहूर्त का समय

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रायपुर.

शरद पूर्णिमा का अमृत फल – शरद पूर्णिमा, जिसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहते हैं, हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता हैं। ज्योतिष के अनुसार, पूरे साल में केवल इसी दिन चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। हिन्दू धर्म में इस दिन कोजागर व्रत माना गया है। इसी को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। मान्यता है इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है। तभी इस दिन खीर बनाकर रात भर चाँदनी में रखने का विधान है।
नारद पुराण के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को प्रात: स्नान कर उपवास रखना चाहिए। इस दिन तांबे या सोने से बनी लक्ष्मी प्रतिमा को कपड़े से ढंक कर विभिन्न विधियों द्वारा देवी लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। इसके पश्चात रात्रि को चंद्र उदय होने पर घी के सौ दीपक जलाने चाहिए। घी से बनी हुई खीर को बर्तन में रखकर चांदनी रात में रख देना चाहिए।
उसके बाद चांद की रोशनी में रखी हुई खीर का देवी लक्ष्मी को भोग लगाए तथा उसमें से ही ब्राह्मणों को भी प्रसाद स्वरूप दान देना चाहिए। अगले दिन माता लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए और व्रत का पारण करना चाहिए।

शरद पूर्णिमा की तिथि और शुभ मुहूर्त
चंद्रोदय का समय- 23 अक्टूबर 2018 की शाम 05 बजकर 20 मिनट
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ – 23 अक्टूबर 2018 की रात 10 बजकर 36 मिनट
पूर्णिमा तिथि समाप्त – 24 अक्टूबर की रात 10 बजकर

शरद पूर्णिमा की पूजा विधि
शरद पूर्णिमा के दिन सुबह उठकर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लें. घर के मंदिर में घी का दीपक जलाएं. इसके बाद ईष्ट देवता की पूजा करें. फिर भगवान इंद्र और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है. अब धूप-बत्ती से आरती उतारें. संध्या के समय लक्ष्मी जी की पूजा करें और आरती उतारें. अब चंद्रमा को अर्घ्य देकर प्रसाद चढ़ाएं और आारती करें. अब उपवास खोल लें. रात 12 बजे के बाद अपने परिजनों में खीर का प्रसाद बांटें.

शरद पूर्णिमा के दिन खीर कैसे बनाएं?
शरद पूर्णिमा के दिन खीर का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं ये युक्त होकर रात 12 बजे धरती पर अमृत की वर्षा करता है. शरद पूर्णिमा के दिन श्रद्धा भाव से खीर बनाकर चांद की रोशनी में रखी जाती है और फिर उसका प्रसाद वितरण किया जाता है. इस दिन चंद्रोदय के समय आकाश के नीचे खीर बनाकर रखी जाती है. इस खीर को 12 बजे के बाद खाया जाता है. आश्विन और कार्तिक को शास्त्रों में पुण्य मास कहा गया है.

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