शादी का प्रथम निमंत्रण रियासतकालीन गणेश मंदिर में दिया जाता है
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हफीज खान / राजनांदगांव.
रियासत काल का नंदग्राम जिसे आज नांदगाँव अथवा राजनांदगाँव के नाम से जाना जाता है, में एक ऐसा गणेश मँदिर भी है जहाँ पर शादी का प्रथम निमंत्रण देने की परंपरा है. इसी गणेश मँदिर में मनोकामना पूरी होने पर चाँदी के छत्तर चढा़ए जाने की भी परंपरा है.
दरअसल, नांदगाँव के पुराने वाशिंदों की अपने पूर्ववर्ती राजाओं के प्रति गहरी आस्था रही है. हो भी क्यूं न . . . क्योंकि यहाँ के सर्वांगीण विकास के लिए नांदगाँव के महँत राजाओं ने खुले हाथ से अपना सबकुछ दान किया था. महाविद्यालय से लेकर रेल लाइन और पानी आपूर्ति का सिस्टम इसके छोटे से उदाहरण भी हैं.
जब राजा का महल (जोकि आज दिग्विजय महाविद्यालय के नाम से जाना जाता है) बन रहा था तब यहाँ पर गणेश मँदिर की स्थापना हुई थी. इस बात को तकरीबन 158 बरस बीत चुके हैं.
शहर के रियासतकालीन इसी गणेश मंदिर के प्रति लोगों की गहरी आस्था है. महल निर्माण के दौरान ही इसका निर्माण किया गया था.
राजमहल के द्वार के समीप भगवान गणेश का यह मँदिर निर्मित है. अपनी प्रजा की सुख-समृद्धि सहित नगर कल्याण के दृष्टिकोण से राजाओं ने न केवल यह मँदिर बनवाया बल्कि यहाँ पूजापाठ की व्यवस्था भी कराई.
इतिहास के जानकार बताते हैं कि राजमहल में वर्ष 1866 में श्रीगणेश मँदिर की स्थापना हुई थी. 158 बरस पुराने रियासतकालीन इसी मँदिर में अपने सुखदुख की प्रार्थना लेकर भक्त आज भी पहुँचते हैं.
गणेश जी के इस मँदिर से मूर्धन्य कवि गजानन माधव मुक्तिबोध, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी और डाॅ. बल्देवप्रसाद मिश्र की भी आस्था जुडी़ रही थी. मुक्तिबोध के बारे में तो यहाँ तक कहा जाता है कि उन्हें जग प्रसिद्ध करने वाली रचनाएँ उन्होंने इसी मँदिर के इर्दगिर्द रहते हुए रची थी.
रियासतकालीन इस गणेश मँदिर में शादी का निमंत्रण देने की शुरूआत होती थी. पहले जब कार्ड नहीं छपते थे तब मौखिक और फिर जब कार्ड छपने लगे तो कार्ड अर्पित करने की परंपरा का निर्वहन नांदगाँववासी करते आ रहे हैं.
उस दौर में नांदगाँव में मूर्तिकार नहीं होने के चलते प्रतिमा नागपुर क्षेत्र से मंगाई जाती थी. यहाँ पर अलग से मिट्टी की प्रतिमा 10 दिनों के लिए स्थापित की जाती थी.
वर्ष 1931 में राजनांदगांव के मूर्तिकार पांडुरंग कालेश्वर द्वारा बनाई गई मूर्ति राजमहल में स्थापित की गई थी. आज भी गणेश मंदिर में प्राचीन प्रतिमा स्थल पर ही भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित की जाती है, जिसे विधि-विधान के साथ विसर्जित कर दिया जाता है.
राजपुरोहित के पुत्र पंडित जितेंद्र झा ने बताया कि इस गणेश मँदिर में लोग अपनी मनोकामना लेकर आज भी आते हैं. मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालुओं द्वारा चाँदी का छत्र चढ़ाना एक तरह से परंपरा बन चुका है.
उन्होंने कहा कि जब इस मँदिर की जिम्मेदारी उन्हें मिली थी, तब चाँदी के 16 छत्र हुआ करते थे. आज इनकी सँख्या बढ़कर 124 हो गई है. मतलब इतने लोगों की मनोकामना पूरी हो चुकी है.