प्रोजेक्ट टाइगर : करोड़ों खर्च फिर भी छग में कम हो रहे बाघ
नेशन अलर्ट/www.nationalert.in
रायपुर/कवर्धा। वनों से अच्छादित माने जाने वाले छत्तीसगढ़ जैसे प्रांत में भी बाघ संकट का सामना कर रहे हैं। पड़ोसी प्रांत मध्यप्रदेश बाघों के मामले में जहां देशभर में प्रथम स्थान रखता है वहीं छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है जहां बाघ बढ़ने के स्थान पर कम हुए जा रहे हैं।
कबीरधाम जिले में भोरमदेव नामक एक स्थान है। इस स्थान पर ऐतिहासिक शिव मंदिर भी है जो कि इसे राष्ट्रीय स्तर पर पहचान देता है। भोरमदेव में ही वनजीव अभ्यारण्य को टाइगर रिजर्व घोषित करने की याचिका अभी हाल ही में हाईकोर्ट ने खारिज की है।
राज्य वन जीव बोर्ड ने आदिवासियों को विस्थापित करने में आने वाली परेशानियों का हवाला देते हुए भोरमदेव को टाइगर रिजर्व घोषित नहीं करने को लेकर अपने तर्क दिए थे। यह वही बोर्ड है जिसने अविभाजित मध्यप्रदेश के समय भोरमदेव को टाइगर रिजर्व घोषित करने की स्वीकृति भी दी थी। लेकिन राज्य बदला और नीति बदल गई।
39 गांव होते विस्थापित
मामला दरअसल विस्थापन से जुड़ा हुआ है। राज्य सरकार इसके लिए सहमत नहीं थी। इलाके में अमूमन बैगा जनजाति के लोग रहते आए हैं। विस्थापन से संस्कृति और वनों के साथ उनके संबंध प्रभावित होने की आशंका जताई जा रही है। 39 गांव का विस्थापन होना था। इन 39 गांवों में 17566 आदिवासी निवास करते हैं।
राज्य के वन मंत्री मोहम्मद अकबर भी विस्थापन की परेशानियों के मद्देनजर भोरमदेव वन अभ्यारण्य को टाइगर रिजर्व बनाने के फैसले के विरूद्घ थे। मोहम्मद अकबर का निर्वाचन क्षेत्र भी कवर्धा ही है। वह भाजपा सरकार के समय से टाइगर रिजर्व बनाने के फैसले के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे।
राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी तो मोहम्मद को ही प्रदेश का वन मंत्री बनाया गया। वन मंत्री बनते ही अकबर ने बीते 2019 में 24/11 को एक बैठक बुलाई थी जिसमें टाइगर रिजर्व घोषित करने के खिलाफ निर्णय हुआ था। बोर्ड के इस फैसले को राज्य के पर्यावरणविद नितिन सिंघवी ने बिलासपुर हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
अंतत: जनहित याचिका wppil17/2019 की सुनवाई के दौरान बीते दिनों जो फैसला आया वह टाइगर रिजर्व घोषित करने के खिलाफ था। हाईकोर्ट ने आदिवासी विकास को महत्व देते हुए टाइगर रिजर्व घोषित न करने के राज्य शासन के निर्णय पर मोहर लगा दी।
हालांकि अब किंतु परंतु के बीच दावा किया जा रहा है कि छत्तीसगढ़ उन गिने चुने राज्यों में शामिल है जहां बाघ धीरे धीरे कम हो रहे हैं। छत्तीसगढ़ के अलावा गोवा, नागालैंड, मिजोरम और पड़ोसी प्रदेश झारखंड में बाघों की संख्या साल दर साल घट रही है।
छत्तीसगढ़ में सीता नदी उदंती, अचानकमार सहित इंद्रावती टाइगर रिजर्व उपलब्ध हैं। तीनों टाइगर रिजर्व का क्षेत्रफल 55555 वर्ग किमी से थोड़ा ज्यादा होगा। नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) की रपट की माने तो छत्तीसगढ़ में बाघ घट रहे हैं। कभी यहां 19 बाघ बताए गए थे जबकि फिलहाल 17 बाघ ही बताए जाते हैं।
3 साल में 183 करोड़ खर्च
छत्तीसगढ़ इकलौता ऐसा राज्य है जहां करोड़ों खर्च करने के बाद भी बाघ बढ़ने के स्थान पर घट रहे हैं। एनटीसीए की रपट के मुताबिक 2014 में छत्तीसगढ़ में जहां 46 बाघ हुआ करते थे वहीं 2018 में इनकी संख्या घटकर सिर्फ 19 रह गई है। आने वाले 3-4 वर्षों में इस संख्या में और गिरावट हुई और 17 बाघ ही अब छत्तीसगढ़ में विचरण कर रहे हैं।
बीते तीन सालों के दौरान छत्तीसगढ़ में बाघ संरक्षण के नाम पर 183 करोड़ रूपए फूंके जा चुके हैं। यह आंकड़ा भाजपा के 2013-2018 के कार्यकाल से हालांकि कम है जब 4 साल में 229 करोड़ रूपए खर्च हुए थे। एक अनुमान के मुताबिक हर साल 60 करोड़ रूपए के खर्च के हिसाब से एक माह में 5 करोड़ रूपए का खर्च आता है।
देश में उपलब्ध अन्य टाइगर रिजर्व में हर साल औसतन एक बाघ के पीछे एक करोड़ रूपए के खर्च अनुमानित हैं। इस हिसाब से छत्तीसगढ़ में फिलहाल 60 बाघ होने चाहिए थे जबकि संख्या इनसे काफी कम 17-19 ही बताई जाती है। ऊपर से भोरमदेव अभ्यारण्य को टाइगर रिजर्व घोषित नहीं करने के सरकारी आदेश पर मुहर से बाघों पर संकट और गहरा गया है।