क्‍या भाजपा के लिए चिंता का विषय हैं किसान मुख्‍यमंत्री ?

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मृत्‍युंजय
नेशन अलर्ट/रायपुर

छत्‍तीसगढ़ के मुख्‍यमंत्री का किसान होना पूरे प्रदेश के लिए भले ही गर्व की बात हो लेकिन भाजपा के लिए चिंताजनक विषय है। संभवत: इसी के मद्देनजर भाजपा ने अब तय किया है कि किसानों से जुड़े मुद्दे वह गंभीरतापूर्वक पूरी आक्रामकता के साथ उठाएगी।

दरअसल, यह बात इसलिए की जा रही है क्‍यूंकि छत्‍तीसगढ़ के कांग्रेसी मुख्‍यमंत्री एक तो अन्‍य पिछड़ा वर्ग से आते हैं और दूसरी ओर वह पेशे से किसान हैं। भूपेश बघेल ने आज खुद इस बात को एक बार फिर हवा दी। मुख्‍यमंत्री (स्‍वयं) के ओबीसी वर्ग के साथ किसान होने को भाजपा की प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्‍वरी ने भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती माना था। बघेल कहते हैं कि इसकारण भाजपा ने उन्‍हें यहां से हटा दिया।

शिवप्रकाश भी कह चुके हैं यही बात

मुख्‍यमंत्री ने आज रायपुर पुलिस लाइन स्थित हैलीपैड पर पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि पुरंदेश्‍वरी इसकारण हटा दी गई क्‍योंकि उन्‍होंने सच स्‍वीकार किया था। इसके अलावा उनका कोई दोष नहीं था। राष्‍ट्रीय महासचिव पुरंदेश्‍वरी को तकरीबन दो वर्ष पहले छत्‍तीसगढ़ का प्रदेश प्रभारी बनाकर भेजा गया था।

9 सितंबर को उन्‍हें तब हटा दिया गया जब वह भाजपा के उस कोर ग्रुप की बैठक में शामिल थीं जिसमें भाजपा के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष जयप्रकाश नड्डा बतौर अध्‍यक्ष शामिल थे… और तो और बैठक हो भी रही थी तो कहां… राजधानी रायपुर में… ऐसा नहीं है कि पुरंदेश्‍वरी जिन्‍हें अपने आक्रामक तेवर के लिए जाना जाता है भाजपा की इकलौती नेता हों जिन्‍होंने मुख्‍यमंत्री के ओबीसी व किसान होने को चुनौती माना हो।

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पुरंदेश्‍वरी के पहले भी राष्‍ट्रीय सह संगठन महामंत्री इस तरह की बात कह चुके हैं। गत वर्ष जब मोर्चा प्रकोष्‍टों के प्रभारियों और उनके अध्‍यक्षों के साथ राष्‍ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश बैठक कर रहे थे तब उन्‍होंने मुख्‍यमंत्री भूपेश बघेल का किसान होना सबसे बड़ी चुनौती माना था। अब उन्‍हीं के इशारे पर भाजपा किसानों से जुड़े मसले पूरी धीर गंभीरता के साथ आक्रामक तेवरों के बीच उठा रही है अथवा उठाने की कोशिश कर रही है।

… तो क्‍या आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा बतौर मुख्‍यमंत्री ऐसे किसी चेहरे पर दांव लगाएगी जो कि अन्‍य पिछड़ा वर्ग अथवा ऐसे किसी जाति वर्ग का हो और पेशे से किसान हो? पन्‍द्रह साल तक प्रदेश में भाजपा की सरकार का चेहरा रहे डॉ.रमन सिंह पेशे से चिकित्‍सा वर्ग के थे। वह पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल थे। वहां से अपनी कुर्सी छोड़कर प्रदेश भाजपा अध्‍यक्ष बनने की जिम्‍मेदारी उन्‍होंने उठाई थी।

डॉ.रमन सिंह ने जब प्रदेश भाजपा अध्‍यक्ष का दायित्‍व संभाला था तब छत्‍तीसगढ़ में कांग्रेसी मुख्‍यमंत्री रहे अजीत प्रमोद कुमार जोगी की तुती बोला करती थी। क्‍या प्रशासन और क्‍या जनता से जुड़ा कोई विषय… किसी में भी एक पत्‍ता जोगी की इच्‍छा के विरूद्ध नहीं हिलता था। नए नवेले छत्‍तीसगढ़ के उन भाजपाईयों से जो अपने खुद के शब्‍दों में अपने आप को बड़ा मानते थे उनके (जोगी) सामने बतौर अध्‍यक्ष आने में संकोच कर रहे थे।

चूंकि डॉ.सिंह ने भाजपा के आला नेतृत्‍व के निर्देश को माना और जोगी के सामने भाजपा के प्रदेश अध्‍यक्ष का दायित्‍व संभाला तो भाजपा ने राज्‍य में बहुमत प्राप्‍त होने के बाद उन्‍हें प्रदेश का मुख्‍यमंत्री नियुक्‍त कर एक तरह से पुरस्‍कृत किया था। अगले दो टर्म भी डॉ.रमन के चेहरे को ही आगे रखकर भाजपा  ने विधानसभा चुनाव लड़े थे। इसमें भी उसे रमन सिंह की सकारात्‍मक सोच के चलते विजयश्री मिली थी।

चूक तो तब हुई जब प्रदेश में भाजपा अपनी सरकार के खिलाफ चल रहे एंटीइंकमबेंसी फैक्‍टर को समझ नहीं पाई और उसने डॉ.रमन सिंह के चेहरे को सामने रखकर चौथा चुनाव लड़ा। तब तक एक तरफ भाजपा के ज्‍यादातर उन बड़े नेताओं से प्रदेश की जनता ऊब चुकी थी जिनकी तस्‍वीरें तकरीबन रोजाना किसी न किसी बड़े अखबर में छपती थी। दूसरी तरफ कांग्रेस के पास भूपेश बघेल जैसा नहले पर दहला मारने वाला प्रदेश अध्‍यक्ष था जो कि पेशे से किसान है।

भूपेश बघेल ने तब प्रदेश में घोषणा पत्र बनाने वाले टीएस सिंहदेव के साथ मिलकर ऐसी राजनीति की थी कि भाजपा और उसके हथकंडे चारों खाने चित हो गए। 65+ का लक्ष्‍य लेकर चल रही भाजपा नतीजों में गिरकर 15 पर आ गई। कांग्रेस ने 65+ को बगैर लक्ष्‍य के न केवल पूरा किया बल्कि ऐसी ऐतिहासिक जीत दर्ज की कि आगे आने वाले कई चुनावों तक इतनी अधिक सीट कोई शायद ही जीत पाएगा… इस पर संशय बना हुआ है।

बहरहाल, कांग्रेस ने तब प्रदेश अध्‍यक्ष रहे भूपेश बघेल को मुख्‍यमंत्री बनाकर जो दांव खेला था वह दांव अब सही होता नजर आ रहा है। गाहे बेगाहे, सार्वजनिक मंचों से नहीं लेकिन भाजपाई आपस की बातचीत में यह स्‍वीकार करने लगे हैं कि भूपेश बघेल उनके लिए बहुत बड़ा खतरा साबित हो रहे हैं। यह अलग बात है कि इसी बात को स्‍वीकारने के एवज में डी पुरंदेश्‍वरी यहां के प्रभारी पद से उस तरह हटाई गईं जिस तरह हटाने का उल्‍लेख भूपेश बघेल स्‍वयं कर रहे हैं।

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