कलेक्टर हुए पुरस्कृत, नांदगांव हुआ अनाथ
रायपुर/राजनांदगांव।
37 आईपीएस के स्थानांतरण सूची में दुर्ग संभाग के उन सभी जिलों के कलेक्टर शामिल थे जो कि चुनावी वर्ष में कांग्रेस के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो जाते हैं। इसी सूची में नांदगांव कलेक्टर तारण प्रकाश सिन्हा का भी नाम शामिल था जिसे लेकर संस्कारधानी की जनता निराशा महसूस कर रही है।
मुख्यमंत्री के भेंट मुलाकात कार्यक्रम के दरम्यान ही प्रदेश में बड़ी प्रशासनिक सर्जरी की गई। बीते दिनों प्रदेश के 37 आईपीएस के तबादले हुए हैं जिनमें 19 जिलों के कलेक्टर भी शामिल हैं। तबादले की इस सूची में राजनांदगांव कलेक्टर तारण प्रकाश सिन्हा का भी नाम शामिल था।
कांग्रेस सरकार में राजनांदगांव जिला अपनी वीवीआईपी पहचान खो चुका है। ऐसे समय में बीते साल जून के महिने में तारण प्रकाश सिन्हा अपनी कलेक्टरी की पारी की शुरुआत करने राजनांदगांव पहुंचे थे। एक साल के कार्यकाल में उन्होंने राजनांदगांव को कई बेहतरील उपलब्धियां दिलवाई।
हालही में आईएएस तारणप्रकाश सिन्हा के नांदगांव कलेक्टर रहते हुए यह जिला आकांक्षी जिलों में प्रथम आया था। नांदगांव की इस उपलब्धि पर केंद्र की ओर से तीन करोड़ का अतिरिक्त आबंटन जिले को मिलने की खबर आई थी। सिन्हा के कार्यों की सराहना केंद्र सरकार ने भी की थी।
इस बारे में केंद्र की ओर से राज्य के मुख्य सचिव को पत्र भी लिखा गया था। अब कलेक्टर सिन्हा की इस उपलब्धि पर उन्हें जांजगीर चांपा का कलेक्टर बना कर राज्य सरकार ने भी उन्हें अघोषित तौर पर पुरस्कृत कर दिया है।
जांजगीर प्रदेश के उन गिने चुने जिलों में आता है जहां राज्य सरकार के बेहद विश्वसनीय आईएएस आईपीएस की पदस्थापना हो पाती है। सिन्हा तो एक तरह से पुरस्कृत हो गए लेकिन अब नांदगांव अनाथ हो गया ऐसा लग रहा है।
ऐसा लिखने का भी कारण है।
मध्यप्रदेश से अलग होकर राज्य गठन के बाद जोगी सरकार के समय भी नांदगांव का प्रशासनिक व राजनीतिक वजन था। तब यहां स्व उदय मुदलियार व स्व इंदरचंद जैन जैसे धाकड कांग्रेसी थे जिनके सामने जोगी भी किसी निर्णय को लेकर सोचते समझते थे।
उस वक्त इमरान मेमन जैसे पूर्व विधायक की भी पूछपरख होती थी। तब पवन देव, जीपी सिंह जैसे अधिकारी होते थे जिनकी डायरेक्टर एंट्री सीएम हाउस में मानी जाती थी।
फिर आया भाजपा का शासन जिसकी कमान डा रमन सिंह के हाथों में थी। तीन बार प्रदेश के मुखिया का निर्वाचन जिला होने के कारण नांदगांव की गिनती दुर्ग-रायपुर जैसे बडे़ जिलों से भी आगे मानी जाती थी। यह दौर पंद्रह सालों तक जारी रहा।
उसके बाद कांग्रेस का शासन आया जिसमें नांदगांव की उपेक्षा शुरुआत से अब तक होती रही है। जिले का प्रशासनिक और राजनीतिक रुतबा शनै-शनै खत्म किए जाने का सिलसिला शुरु हुआ। यहां के कई शासकीय दफ्तर स्थानांतरित कर दिए गए। नांदगांव के साथ बहुत सा अन्याय हुआ यह यहां की जनता मानती रही है।
प्रशासनिक व राजनैतिक दबदबा नांदगांव का अब वैसा नहीं रहा है जैसा जोगी व रमन सरकार के समय हुआ करता था। इसी दौरान सिन्हा का वह छोटा सा कार्यकाल जिसमें नांदगांव की बातों को, कामों को रायपुर से लेकर दिल्ली तक ने तवज्जो दी। लेकिन आईएएस सिन्हा के जांजगीर स्थानान्तरित होते ही यह माना जाने लगा है कि वो तो पुरस्कृत हो गए किंतु यह अनाथ हो गया।
सिन्हा के नांदगांव जिलाधीश रहते हुए ही इस जिले का दो मर्तबा भूगोल बदल गया। पहले मोहला-मानपुर- चौकी पृथक हुए और फिर खैरागढ़ अलग ब्लाक से जिले का अस्तित्व धारण करने जा रहा है। मतलब अब नांदगांव वैसे भी औंधी से लेकर साल्हेवारा तक फैलता फूलता नहीं रहेगा। जब भूगोल बदलेगा तो आने वाला नया इतिहास भी बदल ही जाएगा।
नए इतिहास की नींव जिस वर्तमान की जमीन पर रखी जाती है वह नांदगांव के अभी के मामले में कोई साफ सुथरा नजर नहीं आता है। इस कारण माना जा सकता है कि नांदगांव की पहुंच सिन्हा के स्थानांतरित होने के बाद फिर से कोई उज्ज्वल नजर नहीं आती है।