निर्मला के आत्मसमर्पण से फिर उठेगा झीरम काँड
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वारँगल.
दँडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी की सदस्य बताई जा रही निर्मला उर्फ मँजुला नामक नक्सली ने शुक्रवार को यहाँ पुलिस आयुक्त के समझ आत्मसमर्पण कर दिया. चूँकि वह पडोसी प्रांत छत्तीसगढ़ में हुए झीरम काँड में शामिल रही थी इसलिए उम्मीद की जा रही है कि इस पर और रोशनी डालेगी.
उल्लेखनीय है कि तेलंगाना पुलिस के लिए शुक्रवार का दिन बेहद महत्वपूर्ण रहा. दरअसल, उस महिला नक्सली ने आत्मसमर्पण किया जिस पर एक या दो नहीं बल्कि पूरे 20 लाख रूपए का इनाम घोषित था.
वारँगल के पुलिस आयुक्त आईपीएस अँबरकिशोर झा इस आत्मसमर्पण से बेहद खुश हैं. झा, 2009 बैच के आईपीएस अफसर बताए जाते हैं.
बताया जाता है कि वह बीते कुछ समय से ऐसे किसी आत्मसमर्पण के लिए तैयारी में लगे हुए थे. अंततः कार्तिक पूर्णिमा के दिन यह सँभव भी हो पाया.
कौन है निर्मला, क्या थी झीरम में भूमिका . . ?
अधिकारिक जानकारी के अनुसार निर्मला वर्ष 1994 में माओवादी संगठन में शामिल हुई थी. फिलहाल उसे साउथ सब डिवीजन ब्यूरो की मेंबर बताया जा रहा है.
उसके बारे में पुलिस अधिकारी बताते हैं कि वह छत्तीसगढ़ के बस्तर सँभाग में स्थित झीरम घाटी में हुए नक्सली हमले में शामिल रही थी. यह अब तक बेहद बडा़ नक्सली हमला माना जाता रहा है.
वर्ष 2013 में छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के महज छह माह पहले यह हमला हुआ था. तब छत्तीसगढ़ प्रदेश काँग्रेस के आला नेता परिवर्तन यात्रा पर निकले हुए थे.
25 मई 2013 को जब छत्तीसगढ़ काँग्रेस के तमाम बडे़ नेता परिवर्तन यात्रा की सभा कर वहाँ की राजधानी रायपुर लौट रहे थे तब नक्सलियों ने उनका काफिला रोककर हमला कर दिया था. यह हमला जिस जगह पर हुआ था वह झीरम घाटी का इलाका था.
इस कारण इसे झीरम घाटी काँड़ के नाम से भी जाना जाता है. तब के नक्सली हमले में छत्तीसगढ़ प्रदेश काँग्रेस अध्यक्ष नँदकुमार पटेल अपने सुपुत्र सहित मारे गए थे.
पटेल के अतिरिक्त छत्तीसगढ़ विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा, काँग्रेस के बस्तर प्रभारी व राजनांदगाँव के पूर्व विधायक उदय मुदलियार मौके पर ही शहीद हो गए थे.
छत्तीसगढ़ प्रदेश काँग्रेस के धाकड़ वयोवृद्ध नेता विद्याचरण शुक्ल इस हमले में गँभीर रूप से घायल हुए थे. उन्हें उपचार के लिए दिल्ली के मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन बचाया नहीं जा सका.
झीरम काँड़ में छत्तीसगढ़ के कुलजमा 30 काँग्रेसी नेताओं कार्यकर्ताओं की जान नक्सली हमले में चले गई थी. इसे अब तक सबसे बडा़ राजनैतिक हत्याकांड छत्तीसगढ़ में माना गया है.
पहले वहाँ की पुलिस ने प्रारँभिक जाँच की. हमले के दो दिन के बाद ही तत्कालीन केंद्र सरकार ने 27 मई 2013 को नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) को जाँच सौंप दी थी.
जब झीरम काँड़ हुआ था तब छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार हुआ करती थी. उस समय केंद्र में काँग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार हुआ करती थी.
बाद में स्थित पलटी. 2014 में नरेंद्र भाई मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा और उसके सहयोगी दलों की सरकार केंद्र की कुर्सी पर बैठी. 2013 में इतने बडे़ नक्सली हमले के बावजूद भाजपा उसी साल हुए छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में अपनी राज्य सरकार बचाने में सफल रही थी.
लेकिन अभी काँग्रेस ने हार नहीं मानी थी. वह विभिन्न मँचों से झीरम काँड़ को उठाते रही. तब छत्तीसगढ़ प्रदेश काँग्रेस अध्यक्ष रहे भूपेश बघेल इस मामले में बेहद आक्रामक रहे.
इसी आक्रामकता का सुखद परिणाम काँग्रेस को 2018 में मिला. उस वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में बघेल के नेतृत्व वाली काँग्रेस के हाथों राज्य सरकार में बैठी भाजपा को जबर्दस्त हार झेलनी पडी़.
बघेल मुख्यमंत्री बनें तो उन्होंने एक बार फिर से झीरम काँड़ की जाँच कराने का प्रयास किया. केंद्र और राज्य सरकारों की खींचतान में लेकिन अब तक छग के झीरम मामले को सुलझाया नहीं जा सका.
अब जबकि इस हमले में शामिल बताई जा रही महिला नक्सली निर्मला ने आत्मसमर्पण किया है तो उससे उम्मीद की जा रही है कि एक बार फिर से झीरम काँड़ उठ सकता है. निर्मला से अभी विस्तृत पूछताछ होनी है.
चूँकि उसने कल ही आत्मसमर्पण किया है इस कारण उससे पूर्व के जीवन के सँबँध चर्चा नहीं हो पाई है. आने वाले दिनों में वह झीरम हमले में नई रोशनी डाल सकती है.
बहरहाल, तेलंगाना के वारँगल की पुलिस फिलहाल प्रसन्न है. पुलिस बताती है कि निर्मला का भाई भी कुख्यात नक्सली लीडर है. कोडी कुमार स्वामी उर्फ आनंद एवं कोडी वेंकन्ना उर्फ गोपन्ना की बहन के सहारे अब वारँगल पुलिस नक्सलियों को घेरने में जुट सकती है.