. . . मतलब उनके कनेक्शन तगडे़ हैं!

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नज़रिया : संजय कुमार सिंह

हिन्डनबर्ग की दूसरी रिपोर्ट बताती है कि पहली रिपोर्ट के बाद अगर मुद्दा यह बना कि अदाणी के यहां निवेशित 20,000 करोड़ रुपये किसके हैं। राहुल गांधी और महुआ मोइत्रा ने इस पर सवाल किये तो दोनों की सदस्यता गई।

हालांकि दोनों और मजबूत होकर लौट आये हैं। महुआ कह चुके हैं कि उनकी सदस्यता लेने वाले ज्यादातर हार गये। पर वह अलग मुद्दा है। 20,000 करोड़ रुपये किसके हैं यह जानने की कोशिश ना सरकार ने की और ना अदानी ने बताने की जरूरत समझी।

सरकारी एजेंसियां तो वही करती हैं जो सरकार चाहती है। एक तरफ कुछ सौ के कथित घोटाले के लिए आम आदमी पार्टी के कई नेता (और दूसरे भी) जेल में हैं दूसरी तरफ सरकार को 20,000 करोड़ रुपये की चिन्ता ही नहीं है जबकि यह पैसा रिशवत, दलाली या नशे के सौदे का भी हो सकता है।

हिन्डनबर्ग की पहली रिपोर्ट के बाद पता चला था कि सेबी के तत्काली डायरेक्टर अदाणी की नौकरी कर रहे हैं और एनडीटीवी संभाल रहे थे। उन्हें शिकायत भेजी गई थी उसपर उनने कोई कार्रवाई नहीं की और ना कार्रवाई नहीं करने के लिए उनके खिलाफ कोई कार्रवाई की गई।

उन्होंने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि याद नहीं है। जांच के बारे में बताया गया कि डेट एंड हैष बहुत ही उलझा हुआ है आदि आदि। पर इतना ही नहीं हुआ। हिन्डनबर्ग पर आरोप लगाये गये, बदनाम किया गया और उसे भी कारण बताओ नोटिस भेजा गया।

अब इस दूसरी रिपोर्ट से जाहिर है कि जांच नहीं हुई क्योंकि सेबी प्रमुख के रिश्ते अदाणी से हैं। अब भले हर कोई इनकार कहे, झूठ बताये ये झूठ बोले पर रिपोर्ट के अनुसार माधवी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच ने 1 जून 2015 को निवेश किया था।

माधवी पुरी बुच अप्रैल 2017 में पूर्ण कालिक निदेशक बनीं। इससे कुछ ही पहले दंपत्ति ने तय किया कि निवेश से संबंधित खाते धवल ही ऑपरेट करेंगे।

फरवरी 2018 में धवल को 872000 डॉलर का भुगतान मिला है। अब यह पैसा कहीं ना कहीं निवेशित होगा ही पर वह अलग मुद्दा है।

इतने से यह साबित होता है कि माधवी के अडानी से संबंध थे। दूसरी रिपोर्ट के अनुसार, (विदेशी कंपनियों के जरिये) विनोद अडानी ने अदाणी समूह में जो पैसे लगाये उसमें समझौता हुआ क्योंकि सेबी प्रमुख इससे जुड़ी थीं।

इसीलिए सेबी ने जांच नहीं की, नियमों का पालन नहीं किया, ट्रेल को फॉलो नहीं किया गया और पता नहीं चला कि 20,000 करोड़ किसके हैं। यही नहीं, सेबी के सदस्य के रूप में माधवी पुरी के कार्यकाल के दौरान उनके पति को ब्लैकस्टोन का सीनियर एडवाइजर नियुक्त किया गया।

इससे पहले उन्होंने किसी फंड के लिए ऐसा काम नहीं किया था। उनके लिंक्डइन प्रोफाइल के आधार पर कहा गया है कि उन्होंने रीयल इस्टेट या पूंजी बाजार में किसी फंड के लिए काम नहीं किया था फिर भी उन्हें ब्लैकस्टोन का सीनियर एडवाइजर बना दिया गया।

इससे पता चलता है कि सेबी में माधवी पुरी बुच की स्थिति मजबूत थी। इसका फायदा उन्होंने पति को सेट करने में लिया और उन्हें लेने दिया गया मतलब उनके कनेक्शन तगड़े हैं। सवाल है कि यह अदाणी तक ही है या उससे भी आगे।
( लेखक के निजी विचार हैं. यह लेख लेखक की फेसबुक प्रोफाइल से लिया गया है.)

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