वक्फ बोर्ड के नाम पर भ्रम फैलाने का काम कर रही है बीजेपी : अब्दुल कलाम खान नईमी
राजनांदगांव। एआईआईसी प्रभारी राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग प्रभारी ओड़िशा प्रदेश कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग प्रभारी अब्दुल कलाम नईमी ने एक विज्ञप्ति जारी कर वक्फ बोर्ड को लेकर देशभर में फैलाए जा रहे भ्रम को बीजेपी की चाल कहीं है। उन्होंने आरोप लगाया है कि, बीजेपी वक्फ बोर्ड की आड़ में देश के महत्वपूर्ण मुद्दों से नागरिकों का ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है।
अब्दुल कलाम खान नईमी ने सवाल पूछा है कि, क्या वक्फ बिल उन शहीदों का अपमान नहीं जिन्होंने इस देश की मिट्टी को अपना लहू दिया था, जब 1995 में वक्फ बिल और 2013 में वक्फ बिल संशोधन आया, तब बीजेपी ने इसका बाकायदा समर्थन किया था और उनके समर्थन से ये बिल पास हुआ था। आज वही बीजेपी इसका खात्मा करने में आमादा है। तुष्टिकरण की राजनीति क्या-क्या नहीं कराती,ख् इसका जीता जागता उदाहरण आज देखने को मिल रहा है। 1995 में बण्डारू दत्तात्रेय ने लोकसभा में और सिकंदर बख्त ने राज्यसभा में इस बिल से जुड़ी अपनी बात रखी थी और दोनों ने बिल का समर्थन किया था। वहीं, जब 2013 में संशोधन आया, तब उस वक्त बीजेपी की तरफ से लोकसभा में शाहनवाज हुसैन और राज्य सभा में मुख्तार अब्बास नकवी ने अपनी बात रखी और इस संशोधन का समर्थन किया था। अगर यह संविधान के खिलाफ था, तो बीजेपी ने तब इसका समर्थन क्यों किया था। इसके बाद 2024 में बीजेपी को याद आया कि, वक्फ बोर्ड संविधान के खिलाफ है, और तुष्टिकरण की राजनीति से एक कम्युनिटी को खुश करने के लिए लाया गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि बीजेपी इसके बहाने 400 पार का आंकड़ा पार करना चाहती थी। 2024 में जब बीजेपी का 400 का नारा धरा का धरा रह गया और जनता ने जब इन्हें 240 पर पटक दिया, तब बीजेपी फिर से एक नया शिगूफा छोड़ने में लगी हुई है और तुष्टिकरण की राजनीति को हावी करने में एक और पैंतरा चल रही है। बीजेपी के सामने जब यह यक्ष प्रश्न सामने आया कि, आखिर वोट बैंक कैसे बढ़ाया जाए और ऐसा कौन सा मुद्दा उठाया जाए कि, जनता की नजरों में फिर से एक बार चढ़ सके तो उन्होंने वक्फ विधेयक के बहाने मुख्य धारा से सभी का ध्यान भटकाकर एक और जुमला सामने रख दिया। बीजेपी इस बिल के जरिए समाज को बांटने का काम कर रही है और देश के विकास से जुड़े ज्वलंत मुद्दों से इतर ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है। आज बीजेपी का दोहरा चरित्र सामने आ चुका है। एक ओर तो ये मुसलमानों का रहनुमा बनने की कोशिश करते हैं और दूसरी तरफ बीजेपी शासित राज्यों में वक्फ बोर्ड का नाम तक नहीं लेते और कहते हैं कि, गरीब मुसलमानों की मदद करेंगे। बीजेपी ने हमेशा ही देश को गुमराह करने का काम किया है। आज बीजेपी यह कह रही है कि, वो जेपीसी की रिकमेंडेशन लाई है, लेकिन सच्चाई यह है कि, वहां नियम के हिसाब से चर्चा ही नहीं की गई। सदन के इतिहास में पहली बार जेपीसी पर नियमों के हिसाब से चर्चा ही नहीं हुई। जेपीसी को लेकर न तो हमसे कोई सुझाव मांगा गया और न ही हमारा कोई सुझाव ही माना गया। वक्फ का मतलब होता स्वेच्छा से दान, और दान कोई भी किसी को भी कर सकता है। दान की यह मूलभूत अवधारणा हर मजहब में रही है। दान की इस मूलभूत अवधारणा को व्यवस्थित और नियमित करने के लिए वक्फ बोर्ड बनाए गए हैं, लेकिन सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर इसका खूब गलत और भ्रामक प्रचार किया गया। जबकि देश में कई धार्मिक संस्थानों से जुड़े बोर्ड पहले से ही मौजूद हैं। 1995 और 2013 के एक्ट में वक्फ बोर्ड को मजबूत करने के लिए, वक्फ की संपत्ति को बचाने के लिए, अतिक्रमण करने वालों को हटाने के लिए, उसमें पारदर्शिता लाने के लिए हम संशोधन लेकर आए थे और उस समय हमें बीजेपी का भरपूर समर्थन मिला था। सत्तासीन सरकार बार-बार कह रही है कि, वक्फ बोर्ड किसी भी जमीन को अपनी जमीन घोषित कर सकता है। ये वक्फ बोर्ड के खिलाफ सबसे बड़ा आरोप है, और सबसे बड़ा झूठ भी है। वक्फ को जो शक्ति दी गई थी, वो ये थी कि, अगर वक्फ बोर्ड के सामने कोई शिकायत आती है तो, वक्फ बोर्ड उसकी जांच करती है और उसके लिए तय नियम हैं। हर राज्य में जांच कराने के लिए अलग-अलग नियम हैं। अगर उसके बावजूद भी कोई संतुष्ट नहीं है, तो वो प्राधिकरण में जा सकता है। अगर वहां भी उसके खिलाफ फैसला आता है तो, वो कोर्ट भी जा सकता है। सरकार आज कह रही है कि, कोर्ट में प्राधिकरण के फैसले को रिव्यू नहीं कर सकते। कोर्ट में बिलकुल रिव्यू कर सकते हैं। अगर कोर्ट में रिव्यू नहीं कर पाते तो फिर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वक्फ के इतने मामले कैसे लंबित हैं। मिथ्या भ्रम फैलाया जा रहा है कि, वक्फ के प्राधिकरण को वक्फ बोर्ड बनाता है, जबकि सच्चाई ये है कि, राज्य सरकार प्राधिकरण गठित करती है। अगर आज 600 साल पुरानी इमारतों के कागज पूछेंगे तो कहां से लाएंगे, उसका प्रुफ सिर्फ ये है कि वो धर्मस्थल आज भी अपनी जगह पर बने हुए हैं। अगर सरकार को इतनी ही चिंता है तो सरकार बताए कि, क्या हिंदू रिलीजन एक्ट के तहत जो संस्थाएं बनीं, क्या उसमें एक मुस्लिम, एक सिख, एक बौद्ध और एक जैन को रखेंगे? ये हमारे संवैधानिक अधिकार के खिलाफ है। इसको लेकर कोर्ट के कई जजमेंट भी हैं। बिहार हिंदू रिलीजस ट्रस्ट एक्ट, मद्रास हिंदू रिलीजस एंड एंडोमेन एक्ट, उड़ीसा, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश जैसी सभी जगहों के एक्ट में लिखा है कि सिर्फ हिंदू धर्म के लोग ही उसके बोर्ड में रहेंगे, दूसरे धर्म के लोग नहीं रहेंगे। जब इन एक्ट में साफ-साफ ये बात लिखी है तो फिर वक्फ बोर्ड में कैसे दूसरे धर्म के लोगों को शामिल कर रहे हैं। सरकार क्या प्रुफ करना चाह रही है। क्या सरकार को हमारे ऊपर भरोसा नहीं है, क्या हम अपने संस्थानों को चलाने के काबिल नहीं हैं। सरकार हम लोगों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाना चाह रही है। हमारे ऊपर जासूसी करना चाह रही है। जिन 123 प्रॉपर्टी को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है। ये 123 प्रॉपर्टी या तो दरगाह हैं, मस्जिद हैं, कब्रिस्तान हैं या फिर ईदगाह हैं। ये सभी प्रॉपर्टी धर्मस्थल हैं। 1910 में जब लुटियन दिल्ली बना रहे थे, नई दिल्ली बना रहे थे तो अंग्रेजी हुकूमत ने पूरा एरिया अधिग्रहित किया था। जब मुस्लिम उनसे जाकर मिले तो उन्होंने कहा कि ये 123 प्रॉपर्टी वक्फ के पास ही रहेगी। जब तक ये शहर नहीं बन जाता तब तक नाम सरकार का रहेगा। बनने के बाद उन्होंने सारी संपत्तियां वक्फ को वापस कर दी थीं। तब से लेकर आज तक ये 123 प्रॉपर्टी वक्फ के पास हैं। 2013 में जब इसे डिनोटिफाई करने की बात आई तो हाईकोर्ट ने सरकार को बोला था कि इसका हल जल्द से जल्द निकालो। इसी चक्कर में उस समय उन्हें डिनोटिफाई किया गया। इस प्रकार से बीजेपी वक्फ विधेयक के नाम पर देश के नागरिकों को सिर्फ और सिर्फ गुमराह करने और असल मुद्दों से ध्यान भटकाने का काम कर रही है।