जोगीदासधाम : गाँव की एक बेटी जो अब भुआजी के नाम से पूजी जाती है
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जैसलमेर.
यहाँ से तकरीबन 85 किलोमीटर दूर जोगीदास का गाँव नाम से एक गाँव स्थित है जिसे अब देश विदेश में जोगीदासधाम के नाम से जाना जाता है. इसी गाँव की एक बेटी है जिसे भुआजी (बुआजी) के नाम से भी लोग जानते हैं. वैसे इनका मूल नाम स्वरूपकँवर था जिसे लोगों की आस्था ने, विश्वास ने रानी भटियानी, मोतियाँ वाली माँ जैसे अनेक नाम दिए हैं.
जोगीदास का गाँव का इतिहास जानने हमें थोडा़ पीछे लौटना पडे़गा. बात जैसलमेर के 21वें राजा महारावल मालदेवजी से जुडी़ हुई है. इतिहास के जानकारों से मिली जानकारी बताती है कि उनके वँश में राजश्री खेतसिंह हुए थे.
आगे चलकर राजश्री खेतसिंह के सुपुत्र का नाम पँचावण दास रखा गया था. पँचावण दास के सुपुत्र का नाम पृथ्वीराज जी रखा गया. पृथ्वीराज के पाँच सुपुत्र हुए, जिनमें जोगीदास जी पहले थे.
पृथ्वीराज के दूसरे सुपुत्र का नाम जीवन दास था. तीसरे सुपुत्र का नाम माधुसिंह था. चौथे सुपुत्र का नाम भोजराज था. पाँचवें सुपुत्र का नाम भीवसिंह था. पृथ्वीराज को भाटीसरा क्षेत्र की जागीर मिली थी.
जैसलमेर के दक्षिण में है भाटीसरा क्षेत्र. यही इलाका आज दक्षिणी बसीया कहलाता है. पृथ्वीराज के बडे़ सुपुत्र जोगीदास ने विक्रम सँवत 1741 में जोगीदास का गाँव स्थापित किया. उन्हीं के नाम से आज यह गाँव जोगीदास का गाँव है.
यहाँ के वह पहले जागीरदार हुए. उन्होंने गोगासर कुँआ, राणासर तालाब खुदवाए. जोगीदास के दो विवाह हुए थे. पहली शादी राजकँवर के साथ हुई थी. वह बाड़मेरा परिवार की थीं. वह राठौड़ रतनसिंह की सुपौत्री थीं. राजकँवर के पिता का नाम दलपत सिंह था.
दूसरा विवाह उन्होंने बदनकँवर खींवसर के साथ रचाया. करमसोत राठौड़ गौपालसिंह उनके दादाश्री थे. उनके पिताश्री का नाम अर्जुन सिंह था. जोगीदास को लँबे समय तक सँतान सुख नहीं मिला था.
गुरू की आज्ञा अनुसार कुलदेवी माँ स्वाँगीया जी की विशेष पूजा अर्चना की. माँ स्वाँगीयाजी को आईंनाथजी के नाम से भी जाना जाता है. माँ के आशीर्वाद से घर पर कुमकुम की बारिश हुई.
विक्रम सँवत 1745 के भादवा सुदी सातम को माँ (स्वरूपकँवर) का अवतरण हुआ. जन्म के नवमें दिन नाम रखा गया स्वरूप कँवर. बाईसा के बाद जोगीदास को तीन सुपुत्र प्राप्त हुए. हरनाथ, रायसिंह और लालसिंह इनके भाई थे.
स्वरूपकँवर के बडी़ होने पर विवाह की चिंता सताने लगी. यह वह समय था जब मालानी राज्य के जसोल के रावल कल्याण सिंह के नाम की चर्चा हर तरफ हुआ करती थी. वैसे कल्याण सिंह का विवाह देवडी़ अणँदकँवर से हो चुका था.
दुर्भाग्य से कल्याण सिंह – अणँदकँवर की कोई सँतान नहीं हुई थी. जोगीदास के गाँव से दूसरे विवाह का प्रस्ताव कल्याणसिंह को भेजा गया. प्रस्ताव कल्याणसिंह ने स्वीकार्य भी कर लिया. कालांतर में
कल्याणसिंह – स्वरूपकँवर विवाह बँधन में बँध गए.
स्वरूप कँवर से कल्याणसिंह को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. जसोल रावला गुरू ने पुत्र का नाम लालसिंह रखा. आगे चलकर माँ स्वाँगीया जी के आशीर्वाद से रानी देवडी़ को भी पुत्र हुआ. कल्याणसिंह के दूसरे पुत्र का नाम प्रतापसिंह रखा गया.
दोनों रानियों में बडा़ प्रेम हुआ करता था. रानी देवडी़ को रानी स्वरूप कँवर की सलाह पर ही माँ स्वाँगीया जी
की पूजा अर्चना करने के बाद पुत्र प्राप्त हुआ था. लेकिन छोटी रानी का सुपुत्र लालसिंह बडी़ रानी के सुपुत्र से बडा़ था.
बडी़ रानी देवडी़ की एक दासी हुआ करती थी जिसका नाम धापु था. सुपुत्रों के भविष्य को लेकर धापु ने धीरे धीरे रानी देवडी़ के कान भरने शुरू कर दिए. बडे़ सुपुत्र लालसिंह के नाम से कान भरे जाते रहे.
श्रावणी तीज का पर्व जसोल में धूमधाम से मनाया जा रहा था. बाग में लगे झूले में राज परिवार से जुडी़ महिलाएं झूला झूल रही थी. इनमें रानी स्वरूप कँवर भी शामिल थी. स्वरूप कँवर कह कर आईं थी कि लालसिंह यदि उठ जाए तो उसे दूध पिला दिया जाए.
पीछे देवडी़ रानी की दासी धापु के इशारे पर लालसिंह को जहरीला दूध पिला दिया गया. इधर बगीचे में रानी स्वरूप कँवर को किसी अनिष्ट की आशँका भी हुई तो वह दौडे़ दौडे़ रानीवास पहुँची लेकिन वहाँ लालसिंह को मूर्छित पाया.
श्रावणी तीज को यह हादसा हुआ था. लालसिंह की मौत के बाद स्वरूप कँवर ने भी अन्न जल त्याग दिया. अँततः अपने पुत्र को गोद में लेकर वह सती हो गईं. जसोल की खुशियाँ मातम में बदल चुकी थी.
इधर मँगणियार रामा नाम का दमामी कुछ समय बाद जोगीदास के गाँव से जसोल पहुँचा था. बाईसा स्वरूप कँवर व जँवाई सा कल्याण सिंह से भेंट लेने की वह इच्छा रखता था. राज महल में लेकिन उन्हें स्वरूप कँवर कहीं नहीं दिखी.
इस पर उसने रावला में पूछताछ की तो रानी स्वरूप कँवर के सती होने का समाचार उसे मिला. दमामी रामा यह सुनकर रोने लगे. रोते बिलखते वह कागा श्मशान घाट पहुंचे. रानी स्वरूप कँवर की उन्होंने आराधना की.
रोते बिलखते रामा को स्वरूप कँवर ने साक्षात दर्शन दिए. सोने की पायल, चूडियाँ और पोशाक भेंट स्वरूप दिए. मिश्री देकर अपने पीहर के लिए सँदेश भी दिया. कहा कि उन्होंने दुनियाँ छोड़ दी है और देवलोक को प्राप्त हो गई हूँ यह खबर मायके में दे दे. सँसार के दुखों का निराकरण करूँगी ऐसा बोलकर रानी स्वरूप कँवर अँतर्ध्यान हो गईं.
उन्होंने अँधे सुनार भगवान दास के मिश्री भिजवाई थी. रावला परंपरा अनुसार तेड़कर ( बुलाकर ) जोगीदास का गाँव ले जाने की बात कही थी. भेंट लेकर मँगणियार रामा अपने गाँव लौट गए. घटना की जानकारी गाँव पहुँचने पर जोगीदास जी को दी.
मिश्री लेकर रामा के साथ स्वयँ जोगीदास जी अँधे सुनार के घर गए. मिश्री खाते ही भगवान दास को दिखाई देने लगा. यह बात जगत में फैल गई. जसोल भी पहुँची. जसोल रावला को आश्चर्य हुआ. भेंट में जेवरात की बात उन्होंने सुनी तो खजाना देखा.
खजाने में वह सोने की चूडियाँ, पायल आदि नहीं थे जोकि रानी स्वरूप कँवर इस्तेमाल में लेती थी. इसी समय कागा श्मशान में रात्रि के समय दीपक जलने लगे. इसके बाद एक दिन रानी देवडी़ अणँदकँवर की तबियत बुरी तरह से बिगड़ गई.
कल्याणसिंह ने श्मशान में खेजडी़ का एक तिनका रोपा. देवडी़ के स्वस्थ्य होने, खेजडी़ के हरेभरे होने की कामना की. कहा कि यदि ऐसा हो जाता है तो स्वरूपकँवर को देवरूप में मानूँगा. उनकी पूजा अर्चना करूँगा.
फिर रानी देवडी़ पूरी तरह से ठीक भी हो गईं. इस पर कल्याणसिंह ने श्मशान में माँ स्वरूपकँवर का मँदिर भी बनवाया. यह श्मशान लूणी नदी किनारे स्थित है जहाँ आज माँ स्वरूप कँवर का भव्य मँदिर है.
आगे चलकर रानी देवडी़ के सुपुत्र प्रतापसिंह का विवाह हुआ. प्रतापसिंह के दो पुत्र हुए. पहले पुत्र का नाम बखत सिंह द्वितीय रखा गया जबकि छोटे सुपुत्र का नाम कुँवर सँवाई सिंह है. गायों की रक्षा में इन्होंने अपने प्राण न्योछावर किए हैं.
इधर जोगीदास गाँव में भी माँ स्वरूपकँवर पूजी जाने लगी थी. घर पर ही छोटा सा थान था. इसी थान पर जोगीदास गाँव के मूल निवासी वडेरा परिवार द्वारा रातीजोगा दिया जा रहा था. शाम के समय उस वक्त बारिश हुई. इसे शुभ सँकेत माना गया.
उस वक्त दमामी नेमी के मुख से माँ स्वरूपकँवर बोली कि यहाँ पर एक मँदिर बनवाओ. वँशज भाटी परिवार, वडेरा परिवार व दक्षिणी बसिया क्षेत्र वासियों के सहयोग से यह मँदिर बन गया. विक्रम सँवत 2056, आसोज सूदी तेरस, शनिवार 23 अक्तूबर 1999 को नवनिर्मित मँदिर में माँ स्वरूपकँवर और बेटे लालसिंह की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई है.
जबकि सँवाईसिंह की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा विक्रम सँवत 2065, आसोज सूदी चौदस, सोमवार 13 अक्तूबर 2008 को की गई. तब तक क्षेत्र के जो कुँए खारा पानी देते थे अब अचानक मीठा पानी देने लगे हैं. क्षेत्रवासियों के कहे मुताबिक जल स्तर में भी बढोत्तरी हो गई है. इसी दक्षिणी बसिया क्षेत्र में रानी स्वरूपकँवर को भुआजी सा के नाम से ही पूजा जाता है.