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रायपुर.
राज्य का लोक सेवा आयोग यानिकि पीएससी एक बार फिर विवादों में आ गया है. इस मर्तबा इसके अध्यक्ष के खिलाफ अखिल भारतीय सेवा ( आईएएस ) के राज्य के दो वरिष्ठ अधिकारियों ने मुखर रुख अपना लिया है. सारे फसाद की जड़ में एक स्टेनो है जोकि अध्यक्ष का चहेता बताया जाता है.
उल्लेखनीय है कि राज्य निर्माण के बाद से ही पीएससी के तौर तरीकों पर सवाल उठते रहे हैं. हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में राज्य की बदनामी इसलिए हुई क्यूं कि यहां पीएससी ने कथित तौर पर गड़बडि़यां की थी.
लगता है पीएससी अभी भी नहीं सुधरा है. इस बार इसके अध्यक्ष जोकि एक पूर्व आईएएस अफसर हैं के चलते इस पर आरोप लगाए जा रहे हैं. मामले में दो आईएएस ऐसे भी हैं जो नियमों के पालन पर जोर दे रहे हैं.
क्या है मामला, पीएससी चेयरमैन पर क्यूं उठ रही उंगली ?
दरअसल, सारे झगड़े की जड़ में नियम विरुद्ध तरीके से पदोन्नत किए जाने को कारण बताया जा रहा है. इसमें कोई और नहीं बल्कि सोनवानी का भी नाम आ रहा है जोकि सौभाग्य से, दुर्भाग्य से पीएससी के चेयरमैन हैं.
मामला तब और गंभीर हो जाता है जब चेयरमैन साहब के साथ बहुत पहले से स्टेनो का काम कर रहे गिलहरे का नाम आता है. बताया जाता है जिस स्टेनो ( गोविंद गिलहरे ) को चेयरमैन सर सहायक संचालक कृषि लेखा स्थापना बनाना चाह रहे हैं वह उनका पुराना साथी कर्मचारी अथवा मातहत जो चाहिए कहिए, वह है.
गोविंद गिलहरे नामक स्टेनो को सोनवानी जैसे ही पीएससी के चेयरमैन बने, सहायक संचालक कृषि लेखा स्थापना बनाने की कोशिश करते बताए जाते हैं. हालांकि अबतक सोनवानी अथवा गिलहरे से बात नहीं हो पाई इस कारण इनका पक्ष पता नहीं चल पाया लेकिन लिपिक संघ के सूत्र दाल काली है कह रहे हैं.
उन सूत्रों का यह भी कहना है कि गिलहरे इसके पात्र ही नही हैं. चूंकि गिलहरे कृषि संचालनालय में स्टेनो के पद पर हैं इस कारण उन्हें पहले अधीक्षक बनना होगा. अधीक्षक बनने के बाद ही गिलहरे सहायक संचालक कृषि लेखा स्थापना बन सकते हैं. लेकिन इसमें भी विभागीय प्रक्रिया का पालन करना होगा.
सूत्र बताते हैं कि प्रदेश में एक हजार से ज्यादा कर्मचारी ऐसे होंगे जोकि इस पद के दावेदार हैं. वैसे भी यह पद विभागीय है लेकिन सोनवानी वित्त विभाग का बताकर इसे विभागीय प्रक्रिया से भरना चाहते हैं. उन्होंने भर्ती नियमों में संशोधन करवाते हुए गिलहरे की फाइल चलवा दी.
कौन दो आईएएस विरोध में
ऐसा नहीं है कि प्रदेश में सारे अधिकारी नियमों से परे जाकर काम करते हों. यदि ऐसा होता तो गिलहरे प्रकरण विवाद में ही नहीं आ पाता. न ही पीएससी चेयरमैन की नीयत पर सवाल-जवाब किए जा सकते.
अब देखिए न राज्य के ही दो आईएएस ऐसे हैं जिन्होंने इस पूरे मसले को नियमसंगत तरीके से लेने का प्रयास किया है. इन आईएएस में कृषि उत्पाद आयुक्त एम.गीता तथा संचालक कृषि नीलेश कुमार क्षीरसागर का लिपिक संघ आभार जता रहा है.
उसके मुताबिक इन दोनों आईएएस ने प्रक्रिया को अवैधानिक बताते हुए नोटशीट पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया. और तो और जांच के आदेश दे दिए. लिपिक संघ इस बात से निराश है कि इन दोनों अधिकारियों के होम क्वारंटीन होने बाद एबी आसना को अपर संचालक कृषि बनाते हुए डीपीसी करवाई गई.
इसे भी वह गलत बताते हैं. इसमें भी वह पीएससी चेयरमैन को ही जिम्मेदार मानते हैं.लिपिक संघ ने अब जीएडी कृषि को ज्ञापन देकर मांग की है कि तथ्यों का परीक्षण कराए बगैर पूरी प्रक्रिया हो रही है, जिसका विरोध किया जायेगा.