नांदगांव, बालको के मजदूर साथियों ने प्रशासन को किया मजबूर

शेयर करें...

“कर्ज़ नहीं, कैश दो; कॉर्पोरेट भगाओ — किसानी बचाओ” के नारे के साथ किसानों ने किया प्रदर्शन

नेशन अलर्ट / 97706 56789

रायपुर.

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति, भूमि अधिकार आंदोलन और केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के देशव्यापी आह्वान पर आज यहां छत्तीसगढ़ में जोरदार प्रदर्शन किया गया. राजनांदगांव, बालको के मजदूर साथियों ने खुद को गिरफ्तार किए जाने प्रशासन को मजबूर कर दिया.

छत्तीसगढ़ के बस्तर, धमतरी, बिलासपुर, दुर्ग, कोरबा, सरगुजा, बलरामपुर, रायपुर, महासमुंद, रायगढ़, चांपा-जांजगीर, सूरजपुर, मरवाही, कांकेर और गरियाबंद जिलों के अनेकों गांवों, खेत-खलिहानों और मनरेगा स्थलों में आज केंद्र में मोदी सरकार की मजदूर-किसान विरोधी और कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों के खिलाफ जबरदस्त विरोध प्रदर्शन आयोजित किए गए.

आयोजकों के अनुसार प्रदेश में हो रही भारी बारिश के बावजूद 50000 लोगों ने इस आंदोलन में हिस्सा लिया. राजनांदगांव और बालको में सैकड़ों मजदूरों और किसानों ने अपनी गिरफ्तारियां दर्ज करने प्रशासन को मजबूर किया है.

आंदोलनकारी संगठनों से जुड़े संजय पराते, विजय भाई, आईके वर्मा, सुदेश टीकम, आलोक शुक्ला, केशव सोरी, ऋषि गुप्ता, राजकुमार गुप्ता, प्रशांत झा, कृष्णकुमार, संतोष यादव, पारसनाथ साहू, हरकेश दुबे, लंबोदर साव, बालसिंह, अयोध्या प्रसाद रजवाड़े, सुखरंजन नंदी, जवाहर सिंह कंवर, राजिम केतवास, अनिल शर्मा, नरोत्तम शर्मा, तेजराम विद्रोही, सुरेश यादव, कपिल पैकरा, पवित्र घोष, सोनकुंवर और नंद किशोर बिस्वाल आदि शामिल थे.

इन किसान नेताओं ने कहा कि कृषि क्षेत्र में जो परिवर्तन किए गए हैं, उसने कृषि व्यापार करने वाली देशी-विदेशी कॉर्पोरेट कंपनियों और बड़े आढ़तियों द्वारा किसानों को लूटे जाने का रास्ता साफ कर दिया है और वे समर्थन मूल्य की व्यवस्था से भी बाहर हो जाएंगे. बीज और खाद्यान्न सुरक्षा व आत्मनिर्भरता भी खत्म हो जाएगी.

उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार आत्मनिर्भरता के नाम पर देश के प्राकृतिक संसाधनों और धरोहरों को चंद कारपोरेट घरानों को बेच रही है. उनका कहना है कि ग्राम सभा के अधिकारों की पूरी नज़रअंदाजी से देश में और विस्थापन बढ़ेगा, स्वास्थ्य पर गहरा असर होगा और पर्यावरण और जंगलों की क्षति भी होगी.

कोरोना संकट की आड़ में केंद्र की मोदी सरकार द्वारा आम जनता के जनवादी अधिकारों और खास तौर से मजदूरों और किसानों के अधिकारों पर बड़े पैमाने पर और निर्ममतापूर्वक हमले किए जाने के खिलाफ भी यह देशव्यापी आंदोलन आयोजित किया गया था.

कृषि विरोधी इन अध्यादेशों को वापस लिए जाने की मांग करते हुए छत्तीसगढ़ के उक्त सभी संगठनों द्वारा प्रधानमंत्री को किसान संघर्ष समन्वय समिति के माध्यम से ज्ञापन भी सौंपा गया है.

किसान आंदोलन के नेताओं ने प्रदेश में बढ़ती भुखमरी की समस्या पर भी अपनी आवाज़ बुलंद की है. उनका आरोप है कि प्रवासी मजदूरों मुफ्त चावल वितरण के लिए केंद्र द्वारा आबंटित अपर्याप्त आबंटन का भी उठाव राज्य सरकार ने नहीं किया है.

कोरोना बहुत तेजी से फैल रहा है, लेकिन इसी अनुपात में स्वास्थ्य सुविधाएं लोगों तक नहीं पहुंच रही है. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस सरकार भी बोधघाट परियोजना और कोयला खदानों के व्यावसायिक खनन की स्वकृति देकर आदिवासियों के विस्थापन की राह खोल रही है.

पिछले चार माह में प्रदेश के किसान संगठनों का यह चौथा बड़ा आंदोलन है. इन संगठनों का कहना है कि यदि केंद्र और राज्य की सरकार अपनी मजदूर-किसान विरोधी और कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों में बदलाव नहीं लाती, तो और बड़ा आंदोलन संगठित किया जाएगा.

Comments (0)
Add Comment