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नज़रिया / प्रकाशपुंज पांडेय.
पूर्व मीडियाकर्मी, समाजसेवी और राजनीतिक विश्लेषक प्रकाशपुंज पांडेय ने मीडिया के माध्यम से एक बड़ी ही दिलचस्प बात की ओर जनता का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा है कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और लोकसभा सांसद राहुल गांधी के लिए आखिर “पप्पू” नाम का उपयोग करने का असली कारण क्या है?
आखिर “पप्पू” शब्द का अर्थ क्या होता है? क्या किसी खास उद्देश्य के लिए सुनियोजित तरीके से “पप्पू” शब्द का प्रयोग किया गया है? आखिर क्या है इसके पीछे का कारण?
प्रकाशपुंज पांडेय ने कहा कि गूगल से प्राप्त जानकारी के अनुसार “पप्पू” शब्द अंग्रेजी के “Father” शब्द से ही निकला है क्योंकि अंग्रेजी में “Father” (फादर) को “Papa” (पापा) भी कहते हैं.
कुछ बच्चे अपनी मासूम बोलचाल की भाषा में अपने पिता को प्यार से पापा, पप्पा, पप्पो, पप्पू तक कह देते हैं.
“पप्पू” शब्द का एक और अर्थ ‘मासूम या सीधा’ होता है. कई जगह “पप्पू” शब्द का उच्चारण “पपु” से भी किया जाता है जिसका अर्थ होता है ‘पालन करने वाला या रक्षक.’ इसीलिए लोग, प्यार से अपने बच्चों का नाम “पप्पू” रखने लगे.
लेकिन तकरीबन 10 साल पहले से काँग्रेस नेता राहुल गांधी की छवि धूमिल करने के लिए योजनाबद्ध तरीके व सुनियोजित रूप से भाजपा और संघ द्वारा उनके लिए “पप्पू” शब्द का प्रयोग किया गया.
लेकिन इस संदर्भ में “पप्पू” नाम का तात्पर्य ‘मूर्ख या अपरिपक्व’ प्रस्तुत किया गया, जिसमें वे बहुत हद तक सफल भी हुए क्योंकि भाजपा का सोशल मीडिया पर अच्छा खासा कब्ज़ा है.
प्रकाशपुंज पांडेय कहते हैं कि संसद में असंसदीय शब्दों की एक लंबी-चौड़ी सूची है. हर साल सूची में नए शब्द जोड़े जाते हैं. हाल ही में पप्पू, बहनोई, दामाद जैसे शब्द भी जोड़े गए.
इसी प्रकार सोशल मीडिया पर भी, एक अप्रैल के दिन #केजरीदिवस से लेकर #मोदीयापा तक, एक दूसरे के नेताओं पर निशाना साधने का सिलसिला चलते रहता है. असलियत में ये बात ‘फेंकू’, ‘पप्पू’ और ‘पल्टू’ से काफ़ी आगे निकल चुकी है.
राजनीतिक हैशटैग्स को ट्विटर ट्रेंड बनाना बहुत आसान है
उदाहरण के तौर पर एक पक्ष लिखेगा “पप्पू” और दूसरा लिखेगा “फेंकू” और फिर इसे समर्थकों के बीच फैला दिया जाएगा.
इस तरह से ये हैशटैग तीन-चार लोगों के गुट से निकलकर समूहों और फिर आम जनता तक पहुंच जाता है.
एक तरह से, चुने गए हैशटैग्स से विस्फोट हो जाता है. जितने लोग ऐसे #हैशटैग का प्रयोग करेंगे उतना ही ऊपर ट्रेंड दिखेगा.
प्रकाशपुंज पांडेय ने अपने लेख के अंत में कहा कि अब यह सोचनीय है कि क्या वाकई “पप्पू” नाम का “अर्थ” मूर्ख होता है? क्योंकि अगर ऐसा है तो क्या देश में जितने लोगों का नाम “पप्पू” है वो मूर्ख हैं?
क्या राजनेता पप्पू यादव भी मूर्ख हैं? तो क्या भारतीय जनता पार्टी और स्वयं सेवक संघ तथा अन्य राजनीतिक दलों में जिनके नाम या जिनके बच्चों, परिजनों, नाते-रिश्तेदारों के नाम “पप्पू” हैं वे सब मूर्ख हैं?
कोरोना काल में शुरूआत से अभी तक राहुल गांधी ने जितने भी बयान दिए हैं और जितने भी प्रसिद्ध लोगों, अर्थशास्त्रियों, नोबेल पुरस्कार विजेताओं से बातचीत की है उससे वे क्या लगते हैं ?
कोविड-19 से पहले से ही उन्होंने जितनी बातें कही है वह सब बातें सही साबित हो रही हैं. अगर राहुल गांधी तथाकथित “पप्पू” होते, तो क्या ये प्रसिद्ध लोग राहुल गांधी से बात करते? ये सवाल मैं जानता पर छोड़ता हूँ.
( यह लेखक के अपने निजी विचार हैं. )