नेशन अलर्ट / 97706 56789
उमेश त्रिवेदी
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सियासी-लड़ाई में राजभवन की दखलंदाजी इस बात का खुलासा है कि राजस्थान में कांग्रेस से सत्ता झपटने के लिए आतुर असली किरदार कौन हैं?
सियासी साजिशों की यह स्क्रिप्ट कहां और कौन लिख रहा है? इस राजनीतिक तमाशे में सचिन पायलट और उनके साथ मौजूद 18 विधायकों की हैसियत कठपुलियों की मानिन्द हैं, जिनकी डोर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के कारिंदों के हाथों में हैं।
सत्ता के सियासी संग्राम में राज्यपाल कलराज मिश्र का हस्तक्षेप गहलोत सरकार को उखाड़ने के लिए भाजपा का खुला उदघोष है। बदनामी के डर से पहले भाजपा मामले को कांग्रेस का अंदरूनी संघर्ष कहकर सीधे संषर्घ से बचना चाह रही थी।
लेकिन अशोक गहलोत के खिलाफ रणनीतिक तौर पर कमजोर साबित होने के बाद सचिन पायलट के स्थान पर अब राज्यपाल कलराज मिश्र ने मोर्चा संभाल लिया है। राजनीति के फलक पर अशोक गहलोत के मुकाबले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के चेहरे उभरने लगे हैं।
भाजपा की रणनीति का खुलासा होने के बाद कांग्रेस ने भी अपनी रणनीति में परिवर्तन किया है। सर्वोच्च न्यायालय के सामने दाखिल स्पीकर की फरियाद की वापसी रणनीतिक-बदलाव का हिस्सा है।
न्यायालयों में कानूनी पेचीदगियों में उलझने के बजाय अब कांग्रेस राजनीतिक तौर पर इसका मुकाबला करने की रणनीति पर काम कर रही है।
सत्ता की इस शतरंज में भाजपा की सारी रणनीति विधायकों को नंबर गेम पर टिकी है। बगावत के नाम पर तीस कांग्रेसी विधायकों का समर्थन हासिल करना भाजपा की सर्वोच्च प्राथमिकता है।
सचिन पायलट के पास 18 विधायकों की राजनीतिक पूंजी है, जो भाजपा-सरकार का दरबार सजाने के लिए नाकाफी है। तीस का आंकड़ा हासिल करने के लिए भाजपा के रणनीतिकारों को वक्त चाहिए। राज्यपाल संविधान और नियम-कायदों की घंटी बजाकर भाजपा के लिए यह समय कमाना चाहते हैं।
जबकि, अशोक गहलोत ने विधानसभा सत्र बुलाने की मांग करके समय की खरीद फरोख्त में संवैधानिक बाधाएं खड़ी कर दी हैं। मुख्यमंत्री गहलोत लगातार विधानसभा सत्र आहूत करने की मांग करके राज्यपाल की संवैधानिक घेराबंदी कर रहे हैं।
वैसे निर्वाचित सरकार की सिफारिश के बाद राज्यपाल को विधानसभा सत्र आहूत करना ही होता है। संवैधानिक व्यवस्थाओं के मद्देनजर राज्यपाल किसी भी वजह से सिर्फ दो बार ही सत्र बुलाने से इंकार कर सकते हैं। तीसरी बार कैबिनेट की सिफारिश पर वो सत्र बुलाने के लिए बाध्य होंगे।
अशोक गहलोत ने पहली बार 27 जुलाई और दूसरी बार 31 जुलाई को सत्र आहूत करने की मांग की थी। राज्यपाल कलराज मिश्र अभी कर सत्र आहूत करने के लिए तैयार नहीं हुए हैं।
वैसे देश में संविधान लागू होने के बाद पहली बार कोई राज्यपाल कैबिनेट की अनुशंसा के बाद सरकार की सलाह नहीं मानते हुए विधानसभा सत्र बुलाने से इंकार कर रहा है।
गहलोत सरकार के शिकार के लिए संविधान को दरकिनार करने के इन साजिशों में लोकतंत्र की सारी मर्यादाएं पिघल रही हैं।
भाजपा के मुकुटधारी नेताओं की दलील है कि इसके पहले कांग्रेस की सरकारें भी संविधान को लजाने वाले अशालीन ’आयटम डांस’ कर चुकी हैं, इसलिए उनकी सरकार को भी संविधान के आंगन में वैसे ही आयटम डांस करने का अधिकार हासिल है।
सियासी घमासान में राज्यपाल कलराज मिश्र के रवैये पर सवाल उठने लगे हैं। राजभवन की भूमिका सवालों के घेरे में है। कांग्रेस का कहना है कि राज्यपाल केंद्र के इशारे पर नाच रहे हैं। वो न तो संविधान की बातें सुन रहे हैं , ना ही उन्हें लोकतंत्र का आर्तनाद सुनाई पड़ रहा है।
बकौल अभिषेक मनु सिंघवी राज्यपाल सिर्फ दिल्ली में विराजमान अपने मास्टर की आवाज ही सुन रहे हैं। राज्यपाल सत्र को टालने के लिए जो सवाल उठा रहे हैं, वो उनके अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन है।
राज्यपाल ने कोरोना संकट के दौरान विधायकों की देखभाल, उनके स्वास्थ्य और आवागमन को लेकर जो चिंताएं जाहिर की हैं, वो सब विधानसभा अध्यक्ष के कार्य-क्षेत्र में आता ही है।
जब पुडुचेरी में विधानसभा सत्र बुलाया जा सकता है, बिहार और महाराष्ट्र में कोई परेशानी नहीं होती है, तो राजस्थान के विधानसभा सत्र को लेकर राज्यपाल इतने परेशान क्यों हैं?
वो दिल्ली मे बैठे ’हिज मास्टर्स वॉइस’ के अलावा संविधान का आह्वान भी सुने, तो देश मे लोकतंत्र शक्तिशाली हो सकेगा।
( लेखक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक हैं. )