बस्तर दशहरा : 75 की जगह इस साल 102 दिनों का

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जगदलपुर.

देश विदेश के सैलानियों के आकर्षण का केंद्र बस्तर दशहरा इस साल 75 नहीं बल्कि 102 दिनों तक चलेगा. 1408 ई से जारी बस्तर दशहरा की शुरुआत हरेली अमावश्या को होने वाली पाट जात्रा से सोमवार को हो चुकी है.

उल्लेखनीय है कि तकरीबन छह सौ सालों से बस्तर दशहरा का आयोजन देखने बडी़ संख्या में विदेशी नागरिक भी आते हैं.

चूंकि कोरोना का कहर इस वर्ष टूटा पडा है इस कारण इसमें कमीबेशी देखी जा सकती है लेकिन आयोजन परंपरा अनुसार होगा.

नहीं जलाया जाता रावण, खींचा जाता है रथ

प्रायः 75 दिनों तक चलने वाले बस्तर दशहरा में रावण के पुतले का दहन नहीं होता है बल्कि रथ खींचा जाता है. बस्तर के आदिवासियों के द्वारा अपनी सांस्कृतिक व धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दो मंजिला रथ को खींचा जाता है.

रथ पर बस्तर के साथ साथ पूरे हिंदुस्तान की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी का छत्र रहता है. दंतेवाड़ा से प्रत्येक वर्ष माईजी की डोली दशहरा में सम्मिलित होने के लिए आती है.

प्रथम रस्म के तौर पर पाटजात्रा का विधान हरेली अमावश्या के दिन पूरा हुआ. इस दिन बस्तर दशहरा निर्माण की पहली लकड़ी को जिसे स्थानीय बोली में टूरलु खोटला एवं टीका पाटा कहते हैं लाई गई. यह लकड़ी दंतेश्वरी मंदिर के सामने ग्राम बिलौरी से लाई गई.

रथ निर्माण करने वाले कारीगरों एवं ग्रामीणों के द्वारा माँझी चालकी मेंबरीन के साथ स्थानीय जनप्रतिनिधियो की मौजूदगी में पूजा विधान एवं बकरे की बलि के साथ पाट जात्रा की रस्म संपन्न हुई.

पाट जात्रा पूजा में मोंगरी मछली एवं बकरे की बलि के साथ उमरगांव बेडा़ के कारीगरों ने अपने साथ लाए औजारों की पूजा रथ बनाने के काम में प्रयुक्त होने वाली लकड़ी के साथ सोमवार को की.

क्या है यह अवधि बढ़ने का कारण

शास्त्रों के जानकार बताते हैं कि हिंदू तिथियों-महीनों में हेरफेर के कारण बस्तर दशहरा की अवधि भी प्रभावित होती है. इस साल पुरुषोत्तम मास है जोकि हर तीसरे साल में आता है इस कारण 75 के स्थान पर 102 दिनों का बस्तर दशहरा होगा.

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