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रायपुर.
ऋतुएं बदली, मौसम बदले, साल बदले और प्रदेश में सरकार भी बदल गई . . . लेकिन नहीं बदली तो योगेश साहू से लेकर हरदेव सिन्हा जैसे बेरोजगार युवाओं की किस्मत. पुलिस भर्ती के लिए 48 हजार 761 युवा व शिक्षक बनने की चाह रखने वाले 14 हजार 580 युवाओं में से कोई भी, कभी भी योगेश-हरदेव की राह पर निकल जाए तो क्या करिएगा ?
प्रदेश के युवा रमन सरकार के समय जिस स्थिति में थे तकरीबन वही स्थिति उनकी भूपेश सरकार के समय है.
भाजपा सरकार के समय बेरोजगारी से तंग आकर योगेश साहू ने तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह के सरकारी आवास से निकल कर 21 जुलाई 2016 को खुद पर आग लगा ली थी. अंततः 27 जुलाई 2016 के तड़के 3.40 बजे उसने दम तोड़ दिया.
तब कहा था होते रहती हैं ऐसी घटनाएं
हरदेव सिन्हा के मामले में पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने ट्वीट करते हुए लिखा कि इसे प्रदेश की जनता सरकार की विफलता माने या सफलता?
याद करिए तब इन्हीं डा. रमन सिंह ने योगेश साहू की आत्महत्या के बाद क्या कहा था?
तत्कालीन मुख्यमंत्री सिंह ने तब बेहद आपत्तिजनक व गैर जिम्मेदारी भरा यह बयान दिया था कि मुख्यमंत्री निवास के सामने कोई पहले नहीं मरा है क्या . . . होते रहती हैं ऐसी घटनाएं.
खैर, अपने इन्हीं कर्मों की सजा डाक्टर साहब भुगत रहे हैं.
क्या गरीबी से तंग आ गया था हरदेव ?
अब बात कांग्रेस सरकार के समय आत्महत्या के प्रयास में गंभीर रुप से जल चुके उस हरदेव सिन्हा की जिसे ग्राम पंचायत तेलीनसत्ती जिला धमतरी का निवासी बताया जाता है.
हरदेव ने 29 जून की दोपहर में मुख्यमंत्री से मुलाकात का प्रयास सफल नहीं हो पाने के बाद सीएम हाउस के बाहर खुद पर आग लगा ली. उसे किसी तरह बचाकर उपचारार्थ भर्ती कराया गया है.
. . . तो क्या हरदेव वाकई अपनी गरीबी से तंग आ गया था ? लगता तो ऐसा ही है क्यूं कि उसकी पत्नी ने कहा है कि घर पर अनाज नहीं है.
खैर, वो तो भला हो भूपेश बघेल की राजनीतिक समझ का, कि उन्होंने अपने पूर्ववर्ती की तरह कोई उटपुटांग बयान देने की जगह हरदेव के परिजनों से बात कर उनकी मानसिक व आर्थिक स्थिति को समझने का प्रयास किया.
तब भाजपा थी अब कांग्रेस है
योगेश के समय भाजपा की प्रदेश में सरकार थी जबकि हरदेव के समय कांग्रेस, राज्य की सत्ता पर काबिज है. लेकिन जिस स्थिति में उस समय राज्य के युवा थे तकरीबन वही हाल अभी भी उनका है.
आज से एक साल पहले वीआईपी जिला दुर्ग बेरोजगारी के मामले में प्रदेश में अव्वल था. जिस दुर्ग से मुख्यमंत्री, गृहमंत्री, कृषि मंत्री, ग्रामोद्योग मंत्री आते हैं वहां के 2 लाख 88 हजार 962 युवा बेरोजगार थे.
रायगढ में एक लाख 79 हजार, राजनांदगांव में एक लाख 72 हजार, बालोद में डेढ़ लाख, जांजगीर चांपा में एक लाख 31 हजार, रायपुर व बलौदाबाजार जिले एक-एक लाख युवा उस समय शिक्षित बेरोजगार थे.
मतलब पूरे प्रदेश की युवा शक्ति को बेरोजगारी ने घेर लिया है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इंडियन इकॉनमी की रिपोर्ट्स के अनुसार जनवरी से अप्रैल 2019 के बीच छत्तीसगढ़ में लेबर पार्टिसिपेशन रेट 42. 98 फीसदी था.
उस वक्त राज्य में बेरोजगारी की दर 5. 52 प्रतिशत रही थी. इसी दौरान स्नातक या उससे अधिक शिक्षा प्राप्त लोगों में बेरोजगारी की दर 10.90 फीसदी थी. 20 से 24 आयु वर्ग के युवाओं में बेरोजगारी की दर 26.64 फीसद जबकि 25 से 29 आयु वर्ग के युवाओं में बेरोजगारी की दर 9.23 थी.
वायदे हैं, वायदों का क्या ?
याद करिए कांग्रेस ने विपक्ष में रहते हुए बेरोजगारी के विषय पर तत्कालीन भाजपा सरकार को घेरने ” मैं भी बेरोजगार ” अभियान चलाया था.
इस अभियान को सफलता भी मिली. साथ ही साथ कांग्रेस द्वारा राज्य में किए गए चुनावी वायदे ने भी अपना असर दिखाया. उसी के फलस्वरूप 15 साल प्रदेश में राज करने वाली पार्टी को महज 15 सीटें ही मिली थी.
तब पुलिस भर्ती, शिक्षक भर्ती, पुलिसकर्मियों को साप्ताहिक अवकाश देने सहित प्रदेश के बेरोजगारों को 25 सौ रुपए बेरोजगारी भत्ता जैसी लोक लुभावन घोषणाएं की गई थी.
. . . तो क्या प्रदेश की जनता जिसमें ज्यादातर युवा इन चुनावी घोषणाओं के भंवरजाल में फंस गए ? ऐसा मानने का कारण भी है क्यूं कि राज्य में कांग्रेस को सरकार बनाए डेढ़ वर्ष बीत चुके हैं जबकि अधिकांश घोषणा, कांग्रेस के घोषणापत्र से बाहर नहीं निकल पाई.
प्रदेश का ऐसा कोई विभाग नहीं है जिसने बेरोजगार युवाओं को ठगा न हो. फिर वह चाहे शिक्षा हो या फिर पुलिस विभाग ही क्यूं न हो. छत्तीसगढ़ में शिक्षकों के तकरीबन 60 हजार पद रिक्त बताए जाते हैं. यही हाल पुलिस का है.
इन दोनों ही विभागों में बडे़ पैमाने में भर्ती की प्रक्रिया शुरु हुई थी लेकिन अपने अंत तक नहीं पहुंच पाई. अकेले शिक्षाकर्मी भर्ती की आधी अधूरी प्रक्रिया को देखिए जिसका विज्ञापन पिछले साल 9 मार्च को जारी हुआ था.
कुल 14 हजार 580 पदों पर यह भर्ती होनी है.
व्याख्याता, शिक्षक सहायक, शिक्षक विज्ञान सहायक, शिक्षक विज्ञान प्रयोगशाला जैसे पदों पर चुने जाने के लिए अभी भी छत्तीसगढ़ का बेरोजगार युवा बाट जोह रहा है. परीक्षा और परिणाम के बाद अब सत्यापन की धीमी रफ्तार ने उसे बेचैन कर रखा है.
न्यायालय तक पहुंची लडा़ई लेकिन . . .
यही हाल पुलिस भर्ती का है. रमन सरकार ने इस भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला था. 48 हजार 761 युवाओं ने रिक्त पदों के लिए आवेदन किए थे जिन्हें आज कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं.
दरअसल, लिखित परीक्षा होने के बावजूद राज्य की कांग्रेस सरकार ने इस भर्ती को यह कहते हुए निरस्त कर दिया था कि इसमें भ्रष्टाचार हुआ था. मामला हाईकोर्ट बिलासपुर तक पहुंचा.
24 फरवरी को हाईकोर्ट ने पुलिस भर्ती के अभ्यर्थियों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए समय सीमा के भीतर चयन सूची जारी करने का आदेश दिया था . . . लेकिन हुआ क्या ?
अब यह विषय राजनीतिक रंग लेने लगा है. जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ – जे ने इस पर पहल की है. उसने शिक्षा मंत्री व गृहमंत्री द्वारा परेशान युवाओं से अब तक मुलाकात नहीं करने की ओर मुख्यमंत्री का ध्यान आकृष्ट किया है.
जोगी कांग्रेस के नाम से प्रसिद्ध इस दल के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी, विधायक दल के नेता धर्मजीत सिंह व उप नेता श्रीमती रेणु जोगी ने तो मेल मुलाकात कर बेरोजगार युवाओं की समस्या को समझने मुख्यमंत्री को पत्र भी लिखा है. इसमें उन्होंने हरदेव सिन्हा प्रकरण की न्यायिक जांच कराने की भी मांग की थी.
बहरहाल, छत्तीसगढ़ का युवा रमन राज में बेरोजगार था और भूपेश राज में भी बेरोजगार ही है. स्वास्थ्य मंत्री इस पर स्वयं के शर्मिंदा होने की बात कह कर एक और प्रश्न पैदा कर देते हैं कि :
क्या छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार शर्मिंदा है ?