कांग्रेस के संचार विभाग के अध्यक्ष त्रिवेणी का गंभीर आरोप
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रायपुर.
क्या देश के प्रधानमंत्री व रेल मंत्री गलतबयानी के दोषी हैं ? क्या इन दोनों ने देश में चलाई गई श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में आने जाने वाले मजदूरों को टिकट पर सब्सिडी दिए जाने को लेकर झूठ बोला है ? दरअसल, यह सवाल इसलिए किया जा रहा है क्यूं कि कांग्रेस के संचार विभाग के प्रदेश अध्यक्ष शैलेशनितिन त्रिवेणी ने कुछ इसी तरह का गंभीर आरोप दोनों पर मढा़ है.
श्रमिक स्पेशल ट्रेन में अव्यवस्था, कुप्रबंधन, मजदूरों से ज्यादा किराया लेने के आरोप लगाते हुए प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष त्रिवेदी ने कहा है कि सब्सिडी तो दूर की बात है, मोदी सरकार ने वास्तव में श्रमिक ट्रेनों के लिए अतिरिक्त शुल्क वसूला है.
करोना आपदा के समय केंद्र की मोदी सरकार का रवैया पूरी तरह से गलत, आपत्तिजनक एवं जनविरोधी रहा है. मोदी सरकार के कुप्रबंधन और गलत फैसलों का खामियाजा पूरे देश ने और खासकर गरीब, मजदूर, किसान, मध्यम वर्ग, निजी नौकरी करने वालों, व्यापार जगत और उद्योग जगत ने भुगता है.
दावा पूरी तरह से गलत
प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष त्रिवेदी ने कहा है कि केंद्र सरकार का दावा पूरी तरह से गलत है कि वह श्रमिक ट्रेनों के किराए में 85 प्रतिशत सब्सिडी दे रही है.
राज्य सरकारों और मजूदरो से भी श्रमिक ट्रेनों के किराए के लिए प्रति श्रमिक अतिरिक्त शुल्क लिया गया है. भाजपा सरकार और संगठन द्वारा किया जा रहा रेल किराए में 85 प्रतिशत सब्सिडी का आंकड़ा बिल्कुल गलत और निराधार है.
सवाल पूछते हुए वे कहते हैं “केंद्र सरकार अब यह स्पष्ट करे कि किस आधार पर 85 प्रतिशत किराया कम लेने का दावा किया जा रहा है?”
छत्तीसगढ़ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को दिए गए शपथ पत्र में कहा है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने 40 श्रमिक ट्रेनों के लिए 38,331,330 रूपए भारतीय रेल को दिए हैं. केंद्र सरकार ने तो मजदूरों को न केवल पूरा किराया बल्कि सामान्य किराए से भी ज्यादा किराया देने के लिए मजबूर किया.
इस तरह समझिए आंकडे़ को
अपनी बात के समर्थन में त्रिवेदी आंकड़ा भी प्रस्तुत करते हैं. वे बताते हैं कि केरल की राजधानी तिरुअनंतपुरम से अंबिकापुर तक के लिए चलाई गई ट्रेन का कुल किराया 13 लाख रूपए लिया गया.
इस ट्रेन में 12 सौ यात्रियों को यात्रा की अनुमति थी. इस हिसाब से 1083 रूपए प्रति पैसेंजर लिए गए जबकि मेल/एक्सप्रेस ट्रेन की स्लीपर क्लास का 2675 किलोमीटर का किराया 813 रूपए निर्धारित है.
त्रिवेदी ने कहा है कि सरकार द्वारा निशुल्क भोजन पानी दिए जाने का दावा भी झूठ है. 50 से 100 रूपए अतिरिक्त सामान्य किराए से अधिक वसूले गए हैं. इसके बावजूद भोजन पानी की समुचित व्यवस्था नहीं हो पाई. अनेक मजदूरों से ट्रेनों में खाना बासी होने की शिकायतें मिली. भूखे मजदूरों को खाना फेंकना पड़ा. जिन मजूदरों को ट्रेनों में खाना दिया गया वह भी अपर्याप्त था.
अतिरिक्त किराए और भोजन की अव्यवस्थाओं के अलावा श्रमिक स्पेशल ट्रेनें कई बार मार्ग से भटकी भी. वसई (मुंबई) से गोरखपुर के लिए चली ट्रेन, 700 किलोमीटर दूर पूर्वोत्तर में राउरकेला पहुंच गई थी.
अहमदाबाद से चांपा के लिए चली ट्रेन 27 मई को छत्तीसगढ़ पहुंची. श्रमिकों की शिकायत थी कि, 26 घंटे के सफर में उन्हें केवल एक बार भोजन दिया गया.
केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल ने गलत दावा किया है कि ट्रेनें भटकी नहीं थी बल्कि रेल लाइनों की व्यस्तता के कारण उन्हें डायवर्ट किया गया था. यह दावा इसलिए भी गलत है क्योंकि लॉकडाउन से पहले सामान्य दिनों में रेल लाइनें अधिक व्यस्त होती थी.
सामान्य दिनों में भारतीय रेल 13,000 पैसेंजर ट्रेन चलाती है, जबकि पिछले महीने केवल 4000 श्रमिक ट्रेनें ही चलाई गईं. आर्थिक गतिविधियों में कमी के कारण मालवाहक ट्रेनें भी पहले की तुलना में बहुत कम चलाई जा रही हैं. इसलिए रेल्वे लाईनों की व्यवस्तता की बात पूरी तरह से गलत है.