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रायपुर.
अंततः वही हुआ जिसकी उम्मीद की जा रही थी. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की कमान पुन: विष्णुदेव साय के हाथों में सौंपने की घोषणा आज नईदिल्ली में की गई.
इस घोषणा के बाद जहांं एक ओर विष्णुदेव को बधाईयों का सिलसिला प्रारंभ हो गया है वही एक सवाल पार्टी के भीतार-बाहर तैर रहा है. क्या विष्णुदेव भाजपा की नैया प्रदेश में पार लगा पाएंगे ऐसा राजनीतिक विश्लेषक पूछ रहे हैं.
इसके पहले विक्रम उसेंडी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष थे. उसेंडी व निवृतमान मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के नेतृत्व में लडे़ गए बीते विधानसभा चुनाव में पार्टी को मुंह की खानी पडी़.
भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व द्वारा निर्धारित किए गए लक्ष्य 65 प्लस तो छोडिए भाजपा राज्य में अपना बहुमत भी नहीं ला पाई. दो-चार सीट कम होती तो जोड़ जुगाड़ हो सकता था लेकिन छत्तीसगढ़ में भाजपा को महज 15 सीट ही मिल पाईं.
उसमें भी दंतेवाडा़ विधायक रहे भीमा मंडावी के नक्सली हमले में मारे जाने के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस की देवती कर्मा ने जीत हासिल कर भाजपा की एक सीट और कम करवा दी.
तब से ही इतना तो तय था कि उसेंडी नहीं चलेंगे लेकिन डा. रमन सिंह की पसंद एक बार फिर लौट आएगी इस पर भी भरोसा नहीं था. भाजपा के भीतर जैसे जैसे दावेदार बढते गए वैसे वैसे रमन सिंह की पसंद विष्णुदेव पर बात बनते गई.
एससी-एसटी से रिस्पांस नहीं
भाजपा की बीते विधानसभा चुनाव में हुई करारी हार का पोष्ट मार्टम करने पर जो तथ्य निकल कर सामने आए थे वह चौंकाने वाले रहे हैं.
छत्तीसगढ़ 90 विधानसभा सीट वाला राज्य है. इन 90 में 29 सीटें अनुसूचित जनजाति ( एसटी ) वर्ग के लिए आरक्षित है. जबकि 10 सीट अनुसूचित जाति ( एससी ) के लिए तय है.
आरक्षित सीटों में भाजपा का प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा था. ननकीराम कंवर, पुन्नूलाल मोहिले, कृष्णमूर्ति बांधी, भीमा मंडावी जैसों को छोड़ दिया जाए तो भाजपा इस वर्ग के बीच अपने तीन पंचवर्षीय कार्यकाल के बाद अलोकप्रिय हुई.
एससी-एसटी वर्ग में भाजपा का जनाधार बडी़ तेजी से घट रहा है. ऐसे में पार्टी को इन वर्गों के लोगों को हर हाल में आगे बढाना पड़ रहा है क्यूं कि यह पार्टी की मजबूरी भी है.
तभी तो उसने रेणुका सिंह को लोकसभा निर्वाचित होने के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल में लिया.अनुसूइया उइके को राज्यपाल बनाकर छत्तीसगढ़ में पदस्थ किया.
राज्य के पूर्व गृहमंत्री रामविचार नेताम पार्टी के भीतर अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए.
अब जबकि पार्टी को नया प्रदेश अध्यक्ष देना था तो भाजपा को आरक्षित वर्ग को ही तव्वजो देनी थी. भाजपा आज की तारीख में एससी-एसटी वर्ग को छत्तीसगढ़ में और नाराज़ नहीं करना चाहती है.
तभी तो जिस पद के लिए सांसद विजय बघेल, राज्यसभा सदस्य सरोज पांडेय, पूर्व नौकरशाह ओपी चौधरी जैसे नए पुराने नाम सुनाई देते रहे वहीं विष्णुदेव के नाम पर सहमति बनी.
यह वही विष्णुदेव हैं जिन पर डा. रमन का भी भरोसा है तो उनके विरोधियों का भी. विष्णुदेव को संघ का भी आशीर्वाद मिलते रहा है.
इन्हीं तथ्यों को दृष्टिगोचर रखते हुए उनकी आज प्रदेश अध्यक्ष पद पर ताजपोशी हो गई. अब देखना यह है वह छत्तीसगढ़ में तकरीबन मृतप्राय पडी भाजपा में तीन साल के भीतर कितनी जान फूंक पाते हैं.