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रायपुर .
प्रदेश के इक्का दुक्का ईमानदार अधिकारियों में शामिल जीपी सिंह की वह विशिष्ट कार्यशैली ही है जिसने आईपीएस मुकेश गुप्ता को अपने कुनबे सहित दर दर भटकने को मजबूर कर दिया है. फरारी कटवाने में माहिर जीपी से मुकेश आखिर कब तक बच पाते हैं देखना यह होगा.
गुरजिंदर पाल सिंह . . . जिन्हें आम छत्तीसगढिया जीपी सिंह के नाम से पुकारता है 1994 बैच के आईपीएस अफसर हैं. इक्का दुक्का अवसरों को छोड़ दिया जाए तो जीपी का कैरियर बेदाग रहा है , निर्विवाद रहा है.
क्या मैदानी इलाका . . . और क्या नक्सल प्रभावित क्षेत्र . . . सभी में जीपी ने अपनी छाप छोडी है. सिंह प्रदेश के ऐसे अफसर हैं जिन्हें अपने काम में दखलअंदाजी बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं है. कहा जाए तो निर्देश कुछ भी हो लेकिन जीपी करते अपनी मर्जी से ही हैं.
बेहद ईमानदार . . . कर्त्तव्यनिष्ठ . . . जांबाज . . . दिलेर अधिकारी के रुप में जीपी सिंह अपनी तरह से ही कार्य करना पसंद करते हैं. मतलब साफ है कि इसमें उन्हें न तो अधिकारिक और न ही राजनैतिक टोका टाकी रास आती है.
तलवार लटकवाने पर भरोसा, गिराने पर नहीं
इस बार जीपी का सामना उन अधिकारियों को करना पड़ रहा है जिन्हें कभी बडे़ बडे़ सूरमा के रुप में गिना जाता था. कोई पाठ्यपुस्तक निगम में रहते हुए भ्रष्टाचार की किताबों को तैयार करने वाला अशोक चतुर्वेदी है . . . तो कोई आईपीएस मुकेश गुप्ता . . . ये सभी जीपी के निशाने पर हैं.
यह जलवा नहीं है तो और क्या है कि उस मुकेश गुप्ता को भी फरारी काटने मजबूर कर दिया जिन्हें कभी जीपी सिंह का “गुरु” माना जाते रहा है. कभी मुकेश गुप्ता की धाकड़ छवि प्रदेश में हुआ करती थी. रमन सरकार अमन-मुकेश ही चलाया करते थे ऐसा कांग्रेसियों का मानना रहा है.
वही मुकेश अब इन दिनों अपने वयोवृद्ध पिताश्री जयदेव गुप्ता के साथ फरारी काटने मजबूर हैं. आखिर ऐसा हुआ कैसे ? क्यूं कर मुकेश गुप्ता को उस पुलिस का डर सताने लगा है जिसका एक अंग होते हुए प्रदेश के भ्रष्टाचारी अधिकारी से लेकर नक्सलियों और उनके मददगार कभी आईपीएस मुकेश गुप्ता से धर धर कांपते थे.
ज्यादा सोचिए मत . . . यह सबकुछ आईपीएस जीपी सिंह की कुशल रणनीति के चलते संभव हुआ है जिस पर इन दिनों सभी की निगाहें लगी हुई हैं. जीपी तो ठहरे धुन के पक्के . . . उन्होंने एमजीएम हास्पिटल केस में ऐसा तानाबाना बुना कि मुकेश , उनके पिता जयदेव गुप्ता सहित एमजीएम की कर्ताधर्ता रहीं दीपशिखा अग्रवाल पुलिस से बचते हुए . . . गिरफ्तारी के डर से सहमे हुए मारे मारे फिर रहे हैं.
ऐसा नहीं हो सकता कि जीपी सिंह को मुकेश गुप्ता की खबर नहीं मिल रही हो लेकिन वह अपनी एक विशिष्टि तरह की कार्यशैली के लिए जाने जाते रहे हैं. इसी शैली के चलते पहले तो उन्होंने लाकडाउन के दौरान जुर्म दर्ज किया और बाद में जानते बूझते हुए भी मुकेश गुप्ता को गिरफ्तार नहीं किया.
जीपी को इस मामले में आप और हम भले ही भला बुरा कहें . . . भले ही सोशल मीडिया के कुछेक तीरंदाज उन्हें डरपोक . . . भट्टू जैसे शब्दों से संबोधित करने लगें लेकिन जीपी का भरोसा इस बात पर ज्यादा रहा है कि किसी भी आरोपी अथवा अपराधी को गिरफ्त में लेने से पहले उसे मानसिक , शारीरिक , आर्थिक रूप से तोड़ दिया जाए.
संभवत: इसी के मद्देनज़र इन दिनों जीपी सिंह की छूट के चलते मुकेश और उनका कुनबा फरार है. जिस दिन भी जीपी सिंह को शायद यह लगा कि अब शारीरिक , मानसिक और आर्थिक रुप से मुकेश गुप्ता व उनके पिता जयदेव गुप्ता थक गए हैं . . . टूट गए हैं उस दिन उन तक जीपी सिंह और उनकी पुलिस के हाथ संभवत पहुंच ही जाएंगे.
अब देखना यह है कि वह दिन कब आएगा ? आता भी है कि नहीं ? . . . लेकिन तब तक . . . जीपी का जलवा . . . फरार हुआ मुकेश कुनबा !