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रायपुर.
क्या वाकई छत्तीसगढ़ सरकार किसान अथवा आदिवासी हितैषी है ? यह सवाल इसलिए किया जा रहा है क्योंकि महीनों से आदिवासी धरने पर बैठे हैं लेकिन उनकी समस्या का निराकरण आज दिनांक तक नहीं हो पाया है.
मामला सरगुजा संभाग का है. यहां पर फतेहपुर में अडानी खनन परियोजना के खिलाफ तकरीबन 82 दिनों से आदिवासी धरने पर बैठे हैं. इनका यह आंदोलन अनवरत जारी है.
20 कोयला खदान प्रस्तावित
इस जगह पर तकरीबन 20 कोयला खदान प्रस्तावित है. यह क्षेत्र हसदेव अरण्य के नाम से जाना जाता है. यहां पर पांच कोयला खदान आबंटित हो चुकी है.
अब 20 गांव ऐसे हैं जहां कि तकरीबन डेढ़ लाख हेक्टेयर जंगल जमीन खत्म होने की कगार पर है. पर्यावरण की चिंता हो रही है. एक खदान के चालू होने मात्र से गांव का जल स्त्रोत सूखने लगा है.
एमडीओ के तहत होगा खनन
एमडीओ जिसे माइन डेवलपर कम ऑपरेटर के तौर पर जाना जाता है से कोयला खनन का काम अडानी की कंपनी करेगी. इसमें उसकी सहायता कुछ और कंपनियां कर सकती हैं.
छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने सूरजपुर सहित कोरबा जिले में गिधमुड़ी व पतुरिया कोयला खदान को गौतम अडानी की कंपनी को सौंपने का फैसला लिया था.
यह वही कांग्रेस सरकार है जो कि विपक्ष में रहते हुए एमडीओ के तौर पर कोयला खनन का विरोध करते रहती थी. तब उसे इसमें बड़ा भ्रष्टाचार नजर आता था.
लेकिन जैसे ही वह सरकार में आई उसने न केवल एमडीओ का रास्ता चुना बल्कि उस अडानी की कंपनी को भी चुना जिसकी खिलाफत उसके राष्ट्रीय नेता राहुल गांधी विभिन्न सभाओं में करते रहे हैं.
अब छत्तीसगढ़ स्टेट पावर होल्डिंग कंपनी लिमिटेड के निर्देशक कहते हैं कि मामले में निविदा आमंत्रित की गई थी. सारी प्रक्रिया अडानी और उसकी सहयोगी कंपनियों द्वारा पूरी की गई. इसकारण उसे इस योग्य पाया गया.
उधर दूसरी ओर हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति का आरोप है कि ग्राम सभाओं को नजर अंदाज करके कोयला खदान आबंटित की गई है. वन अधिकार मान्यता कानून 2006 और पेसा कानून के तहत ग्राम सभाएं आयोजित की जानी चाहिए.
उसका कहना है कि ग्राम सभाओं में विरोध के बावजूद केंद्र और राज्य सरकार कोल ब्लाक आबंटित किए जा रही है. हसदेव अरण्य नो गो जोन में कोयला खदान इसी तरह का एक मामला है.
हसदेव अरण्य के इस क्षेत्र में तकरीबन तीन हजार किस्म के पेड़ पौधे पाए जाते हैं. धीरे धीरे यह हरी भरी जंगल की जमीन खनन के चलते न केवल उजाड़ हो जाएगी बल्कि प्रदूषित भी होगी.
खदानों के खुलने से हसदेव व चोरनई नदी का अस्तित्व भी संकट में आएगा. अभी हसदेव पर बने मिनी माता बांगो बांध से तकरीबन 4 लाख 53 हजार हेक्टेयर खेती की जमीन सिंचित होती है. यह जमीन आगे चलकर प्यासी रह जाएगी.
ग्रामीण इसके अलावा वन जीवों के प्राकृतिक निवास के खत्म होने की ओर भी इशारा करते हैं. उनका कहना है कि वन क्षेत्र कम होने से वन जीवों पर संकट दोहरा हो जाएगा. इन्हीं बिंदुओं पर उनका धरना तीसरे महीने भी जारी है.