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रायपुर.
छत्तीसगढ़ की प्रशासनिक राजनीति में जो स्थान कभी अमन सिंह का हुआ करता था उस स्थान तक बड़ी तेजी से जीपी सिंह पहुंचते नजर आ रहे हैं. अंतर सिर्फ इतना है कि अमन सिंह ने अपनी सेवा से ऐच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी जबकि जीपी सिंह अभी भी अखिल भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी हैं.
प्रदेश की तत्कालीन भाजपा सरकार के समय अमन सिंह के नाम का डंका बजा करता था. डा. रमन सिंह तीन बार के मुख्यमंत्री यदि बने थे तो उसके पीछे अमन सिंह जैसे अधिकारियों की ही मेहनत थी.
15 में से 5 साल सिर्फ अमन के
उल्लेखनीय है कि अमन सिंह का छत्तीसगढ़ में पदार्पण 2004 में हुआ था. दिसंबर 2018 तक वह छत्तीसगढ़ में रहे. इन 15 सालों में 5 साल तो सिर्फ अमन सिंह की “तूती” बोला करती थी.
डॉ. रमन सिंह जब पहली मर्तबा मुख्यमंत्री बने थे तब उन्हें विवेक ढांढ व विक्रम सिसोदिया से काफी कुछ सलाह मिला करती थी. तब अमन सिंह की उतनी “प्रशासनिक पकड़” छत्तीसगढ़ में नहीं बनी थी.
2006 के आते आते ढांढ व सिसोदिया की प्रशासनिक पकड़ कमजोर होती चली गई. उस वक्त शिवराज सिंह त्यागी का कार्यकाल शुरू हुआ था. शिवराज सिंह ने 2009 तक छत्तीसगढ़ में तकरीबन “एक छत्र राज” जैसा किया था.
2010 के आते आते शिवराज सिंह के साथ अमन सिंह की जोड़ी बन गई. इस जोड़ी ने पूरे प्रदेश में इतना अच्छा कार्य किया कि 2013 के विधानसभा चुनाव में विपरित परिस्थितियों के बावजूद भाजपा ने एक बार फिर विजयश्री हासिल की.
उस वक्त जिस रमन सिंह को झीरम घाटी कांड के बाद चूका हुआ नेता माना जा रहा था वही एक बार फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हुए. इसके बाद 2014 से 2018 तक का समय अमन सिंह की एकतरफा प्रशासनिक राजनीति का “स्वर्णिम युग” रहा होगा.
चूंकि 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को करारी हार मिली और कांग्रेस सत्ता में लौट आई इसकारण अमन सिंह राज्य से विदा हो गए. अब अमन सिंह के स्थान पर बैठने कई आईएएस-आईपीएस अधिकारी प्रयास करते नजर आते हैं लेकिन इसमें आईपीएस जीपी सिंह का नाम बड़ी तेजी से लिया जाने लगा है.
आईपीएस जीपी सिंह डॉ. रमन सिंह के कार्यकाल के अंतिम दिनों में पूर्व व वर्तमान मुख्यमंत्री की रेंज दुर्ग के पुलिस महानिरीक्षक हुआ करते थे. उस वक्त लगा था कि जीपी सिंह अब चूक गए हैं लेकिन उन्होंने अब लोगों को सोचने समझने मजबूर कर दिया है.
फरवरी 2019 में जीपी सिंह ने पहली महत्वपूर्ण पद स्थापना ईओडब्ल्यू-एसीबी में प्राप्त की थी. साल का अंत आते आते उन्होंने एक बार फिर लोक अभियोजन-राज्य वैज्ञानिक अनुसंधान प्रयोगशाला का अतिरिक्त दायित्व संभालकर लगता है अमन सिंह को चुनौती दी है.
आने वाले दिनों में यदि जीपी सिंह का “रूतबा और प्रभाव” अमन सिंह से ज्यादा हो गया तो इसमें अतिश्योक्ति नहीं हो सकती.
दरअसल, आईपीएस जीपी सिंह अपनी ईमानदार छवि के साथ ही “दबंगई व कर्तव्यनिष्ठा” को लेकर इस हद तक जाने जाते हैं कि लोग उनके चर्चे करते रहते हैं. देखते हैं कि वह कब तक “अमन” होते हैं ?