जनचर्चा / नेशन अलर्ट
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वायनाड़ से कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी क्या एक बार फिर कांग्रेस में स्थापित किए जा रहे हैं ? भारत बचाओ रैली कर कांग्रेस ने जिस तरीके से भाजपा और प्रधानमंत्री-गृहमंत्री को ललकारा है उससे यह सवाल उठा है.
जनचर्चा बताती है कि राहुल गांधी ने उस समय कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष पद छोड़ दिया था जिस समय उनकी पार्टी को इसकी बेहद जरूरत थी.
राहुल पिछला लोकसभा चुनाव उस अमेठी से हार गए थे जिस अमेठी को गांधी परिवार की पारंपरिक सीट माना जाता है. इसी सीट से उनके पिता राजीव गांधी व मां श्रीमति सोनिया गांधी सांसद चुनी गई थी.
जनचर्चा अनुसार राहुल ने अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में चाही अनचाही बहुत सी गलतियां की थी. हालांकि उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ का विधानसभा चुनाव जीता था लेकिन नेतृत्व चयन के मामले में वह पार्टी को साध नहीं पाए थे.
अब देखिए न राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच खींचतान की खबर आए दिन आती है. दरअसल, राजस्थान जीतने का श्रेय उस सचिन पायलट को जाता है जिसने विपरीत परिस्थिति में अध्यक्ष पद का दायित्व संभाला था.
इसके बावजूद राजस्थान में अशोक गहलोत की ताजपोशी हुई. पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता के नाते सचिन पायलट ने चुप्पी साध ली और उप मुख्यमंत्री की कुर्सी पर मन मसोस कर बैठे.
यही हाल मध्यप्रदेश का है. यहां पर ज्योतिरादित्य सिंधिया व कमलनाथ के बीच तब से शुरू हुई खींचतान आज दिनांक तक चल रही है. कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते मुख्यमंत्री का पद मिला लेकिन जीत का श्रेय ज्योतिरादित्य सिंधिया को जाता है.
ज्योतिरादित्य सिंधिया अब प्रदेश अध्यक्ष बनने की जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल पा रही है. कहीं ऐसा न हो कि ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाता कांग्रेस से ही खत्म हो जाए.
हालांकि, इसकी संभावना नहीं के बराबर है लेकिन राजनीति संभावनाओं का ही खेल है. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गत दिनों ही अपने ट्विटर एकाउंट के अपने परिचय में परिवर्तन कर एक तरह से संकेत दिया है.
अब बात छत्तीसगढ़ की. हालांकि यहां नेतृत्व को लेकर किसी तरह की आवाज नहीं उठ रही है लेकिन अंदर खाने में सबकुछ ठीक नहीं है यह भी बताया जाता है.
ऊपर से जिस किसानी के मुद्दे पर कांग्रेस ने इतनी भारी भरकम जीत हासिल की थी वही किसान सरकार से बेहद खफा है. यही हाल उन महिला मतदाताओं का है जिन्होंने कांग्रेस को यह सोचकर वोट दिया था कि उसकी सरकार आने पर पूर्ण शराबबंदी हो जाएगी.
छत्तीसगढ़ में पूर्ण शराबबंदी तो छोडि़ए बल्कि इस सरकार ने शराब के क्षेत्र में ऐसा कार्य किया है कि तकरीबन 28 सौ करोड़ रूपए के कथित घोटाले की गूंज विधानसभा में सुनाई दी.
छत्तीसगढ़ की राजनीति में प्रशासनिक पकड़ का भी मसला गंभीर हुए जा रहा है. सिर्फ दो चार अधिकारियों की पूछ परख हो रही है जबकि बाकी अधिकारी मन मसोस कर बैठे हुए हैं.
इन सबका दोष कहीं न कहीं राहुल गांधी पर जाएगा. इसके बावजूद उन्हें फिर से कांग्रेस में रिस्टेबलिश करने का प्रयास हो रहा है. राहुल ने भी हाल के बयानों से अपने परिपक्व होने का संकेत किया है.
उन्होंने भारत बचाओ रैली में खुलकर कहा कि उनका नाम राहुल गांधी है न कि सावरकर. देश को रेप इन इंडिया बताए जाने पर उनसे माफी की मांग की जा रही है जिस पर उन्होंने कहा कि वह कतई माफी नहीं मांगेंगे.
इधर जनचर्चा बताती है कि राहुल गांधी को धीरे धीरे कांग्रेस में मुख्य धारा में लाने का प्रयास शुरू हो गया है. हाल के दिनों में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री का वह बयान भी इसी दिशा में दिया गया प्रतीत होता है जिसमें उन्होंने राहुल से कांग्रेस अध्यक्ष पद शीघ्र संभालने की बात कही गई थी.
जनचर्चा एक सवाल भी करती है कि क्या कांग्रेस के पास राहुल के अलावा और कोई विकल्प नहीं है ? क्या सोनिया गांधी इतनी कमजोर हो गई हैं कि उनसे काम लेने में कांग्रेस को परेशानी महसूस हो रही हो ?
क्या प्रियंका गांधी कांग्रेस का दायित्व नहीं संभाल सकती हैं ? ये चंद ऐसे सवाल हैं जो कि कांग्रेस के भीतर बाहर उठते रहेंगे. भारत बचाओ रैली में भी इस तरह के सवाल उठते रहे.
सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने एक बार फिर से सत्ता में वापसी की राह पकड़ी है. उसने येनकेन प्रकारेन महाराष्ट्र में अपनी सरकार बना ली. हरियाणा में उसने मोदी मैजिक को जमकर धोया है.
तो क्या फिर भी राहुल गांधी कांग्रेस में पुनर्स्थापित होने के प्रयास में लगे हुए हैं ? क्या उन्हें पुन: अध्यक्ष पद का दावेदार बताया जा रहा है ? इन सवालों का जवाब तो आने वाले दिनों में ही मिलेगा लेकिन इतना तय है कि राहुल को अभी बहुत लंबी दूरी तय करनी है.
यक्ष प्रश्र..
छत्तीसगढ़ कांग्रेस के किस नेता ने 10 जनपथ में झीरम कांड के दागी अफसर को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दिए जाने की शिकायत की ?