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जयपुर/नागौर.
राजस्थान के 196 गांव ऐसे हैं जहां सरकार के राजस्व विभाग की पंचायती नहीं चलती है. मतलब साफ है कि इन गांवों में बाहरी व्यक्तियों को जमीन खरीदने की अनुमति नहीं मिलती है.
बताया जाता है कि इन गांवों का जन्म संत विनोबा भावे द्वारा 1991 में शुरू किए गए भूदान आंदोलन के समय हुआ था. तभी से यह गांव अस्तित्व में आए हैं.
24 मई 1952 को संत विनोबा भावे ने स्वैच्छिक भूमि सुधार आंदोलन किया था. तब उत्तरप्रदेश के हमीरपुर जिले के मंगरोठ गांव के लोगों ने पूरा का पूरा गांव उन्हें दान में दे दिया था.
इस तरह ग्राम दान की शुरूआत हुई. 1969 आते आते लगभग सवा लाख गांव देशभर में ग्रामदानी गांव बन चुके थे. राजस्थान में ग्राम दान अधिनियम 1971 भी पारित कर दिया गया.
इसके बाद जयपुर सहित नागौर, बांरा, सिरोही, सीकर, भीलवाड़ा, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, टोंक, जैसलमेर, चित्तौडग़ढ़, उदयपुर जैसे जिलों को मिलाकर 196 गांव ग्रामदानी गांव बने.
इनमें अकेले नागौर जिले में कालवा छोटा, बांसड़ा, मकराना के चांवडिय़ा, सुखवासी, पिथोलाव, रायसिंहपुरा, श्रीरघुनाथपुरा, डिडवाना, त्रिलोकपुरा, भामास, श्रीकृष्णपुरा जैसे गांव इसी तरह की सूची में शामिल हैं.
इन गांवों में बाहरी व्यक्ति चाहकर भी जमीन नहीं खरीद सकते हैं. गांव के लोग अपनी व्यवस्था को खुद संभालें इसका मुख्य उद्देश्य है. जो भी गरीब व्यक्ति गांव में रहता है उसे गांव की जमीन दी जाती है.
इस जमीन के नामांकन व हस्तांतरण के लिए ग्रामीणों को कोर्ट कचहरी की दौड़ नहीं लगानी पड़ती है. रजिस्ट्री में भी आर्थिक नुकसान नहीं उठाना पड़ता है. इन गांवों में भूमि संबंधी विवाद शायद ही कभी सामने आया हो.