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रांची.
झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) के संस्थापक अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी भरोसा तोडऩे वालों से बच नहीं पाए हैं. इसके बावजूद बाबूलाल को इसका कोई मलाल नहीं है.
उल्लेखनीय है कि बाबूलाल मरांडी भाजपा में रहते हुए राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बने थे. बाद में उन्होंने भाजपा से पृथक होकर झाविमो नाम का दल बनाया.
वर्ष 2009 में इस दल ने विधानसभा चुनाव लड़ा था. पहली बार उतरी चुनाव में उतरी झाविमो के 11 प्रत्याशी चुन लिए गए थे.
वर्ष 2014 के चुनाव आते तक इन 11 में से 7 विधायक पार्टी छोड़कर चले गए. इस चुनाव में पहली बार जीतने अथवा खड़े होने वाले कई प्रत्याशियों ने बाबूलाल से किनारा कर लिया.
इनमें अमित मेहतो व कुणाल षड़ंगी जैसे नाम शामिल हैं. ये सब झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की नाव पर सवार हो गए थे. इस सूरत में 2009 में 11 विधायक देने वाले झाविमो की संख्या घटकर 8 रह गई.
इस बार लातेहर से विधायक चुने गए प्रकाश राम व चतरा से विधायक चुने गए सत्यानंद भोक्ता ने बाबूलाल मरांडी का साथ छोड़ा है.
इसके पहले वर्ष 2014 में सिमरिया से गणेश गंझू, डाल्टनगंज से आलोक चौरसिया, सारठ से रणवीर सिंह, बरकट्टा से जानकी यादव, चंदनक्यारी से अमर बाहूरी व हटिया से नवीन जायसवाल साथ छोड़ गए थे.
इसी तरह प्रोफेसर स्टीफन मरांडी जो कि महेशपुर से चुने गए थे ने साथ छोड़ दिया था. सिंदरी से फूलचंद मंडल, गिरीडीह से निर्भय शाहबादी, बाघमारा से ढुलू मेहतो, गढ़वा से सत्येंद्रनाथ तिवारी, लिटीपाड़ा से डॉ. अनिल मुर्मू का नाम बाबूलाल का साथ छोडऩे वालों में लिया जाता है.
इन सबके बीच बाबूलाल मरांडी ने कभी इस बात का रंज नहीं किया पर इतना जरूर है कि बदकिस्मती ने बाबूलाल का पीछा कभी नहीं छोड़ा. पहली बार मुख्यमंत्री बने बाबूलाल को पद भी पार्टी में हुई बगावत के चलते छोडऩा पड़ा था.