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रायपुर .
छत्तीसगढ़ आज अपनी स्थापना की वर्षगांठ मना रहा है. पौराणिक कथाओं में इसका नाम कौशल राज्य हुआ करता था जो कि भगवान श्रीराम की ननिहाल हुआ करती थी.
छत्तीसगढ़ शब्द का पहली बार सरकारी दस्तावेजों में उपयोग वर्ष 1820 में देखने को मिला है. अंग्रेज अधिकारी एग्न्यू ने क्षेत्र को छत्तीसगढ़ प्रोविन्स लिखकर अपनी रपट दी थी.
कालांतर में यही छत्तीसगढ़ प्रोविन्स छत्तीसगढ़ प्रांत कहलाने लगा. एग्न्यू ने जो रपट दी थी वह पारिवारिक जनगणना से संबंधित थी. तब छत्तीसगढ़ में तकरीबन एक लाख 653 परिवार रहा करते थे.
कैसे पड़ा छत्तीसगढ़ नाम ?
दरअसल यहां तीन सौ साल पहले गोंड़ जनजाति के शासक हुआ करते थे. उस समय छत्तीस किले हुआ करते थे इसकारण क्षेत्र को छत्तीसगढ़ के नाम से जाना जाने लगा.
पांच सौ साल पहले चौदहवीं शताब्दी में साहित्यकार छत्तीसगढ़ शब्द का प्रयोग करते रहे थे. 1447 में पहली मर्तबा खैरागढ़ के कवि दलराम राव ने छत्तीसगढ़ शब्द का उपयोग किया था.
इसी तरह कवि गोपाल मिश्र जो कि रतनपुर से संबंधित हैं ने 1686 में छत्तीसगढ़ शब्द का उपयोग किया था. इसके डेढ़ सौ साल बाद विक्रम विलास नामक ग्रंथ में रतनपुर के ही बाबू रेवाराम ने छत्तीसगढ़ शब्द का उपयोग किया है.
शिवनाथ के उत्तर – दक्षिण में थे गढ़
शिवनाथ नदी को छत्तीसगढ़ की प्रमुख नदी माना जाता है. इस नदी के उत्तर व दक्षिण इलाके में 18-18 गढ़ हुआ करते थे.
इन गढ़ों पर कल्चुरी राजाओं का कब्जा हुआ करता था. कल्चुरी राजाओं ने छत्तीस किले व कई गांवों को मिलाकर गढ़ बनाया था.
रामायणकाल से लेकर सत्रहवीं शताब्दी तक इस क्षेत्र को दक्षिण कोसल अथवा कोसल के नाम से जाना जाता था. पूर्व में कल्चुरी राजाओं की राजधानी रतनपुर हुआ करती थी.
तब रतनपुर शाखा के अंतर्गत 18 गढ़ और रायपुर शाखा के अंतर्गत 18 गढ़ बनाए गए थे. चैतुरगढ़, रतनपुर में किलों के साक्ष्य भले ही मौजूद हैं लेकिन शेष स्थानों पर गढ़ के अवशेष नजर नहीं आए हैं.
रतनपुर राज्य के अधीन सेमरिया, नवागढ, मारो, करकट्टी-कंड्री, मातिमगढ़, उपरोड़ागढ़, चेतुरगढ़ अथवा लाफागढ़, छुरी अथवा कोसगई, कोठगढ़, चांपा अथवा मदनपुर, खरौद, बिलासपुर, केंदा, पेंड्रा, पंडरभट्टा, विजयपुर व रतनपुर आते थे.
इसी तरह रायपुर के अधीन सिंगनगढ़, टेंगनागढ़, सिंगारपुर, सुअरमार, सिरपुर, खल्लारी, मोहंदी, अकलबाड़ा, सिरसा, सारधा, दुर्ग, पाटन, लवन, फिंगेश्वर, राजिम, ओमेरा, सिमगा व रतनपुर आया करते थे.