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नईदिल्ली / रायपुर .
अखिल भारतीय पुलिस सेवा ( आईपीएस ) के निलंबित अधिकारी मुकेश गुप्ता द्वारा उच्चतम न्यायालय ( सुप्रीम कोर्ट ) में दायर की गई याचिका ने छत्तीसगढ़ में नया सवाल पैदा कर दिया है. राजनीतिक व प्रशासनिक हल्कों में यह सवाल तैर रहा है कि छत्तीसगढ़ में आखिर किसका राज है ?
दरअसल, सारे फसाद की जड़ में वह एक आदेश है जोकि फोन टैपिंग से जुडा़ हुआ है . यह आदेश उस कांग्रेस सरकार के समय का है जिसके मुखिया भूपेश बघेल ने शपथ ग्रहण के बाद एक कार्यक्रम में फोन टैपिंग को अवैधानिक बताते हुए किसी के भी फोन टेप किए जाने से इंकार किया था .
मुकेश की सुपुत्री के फोन हो रहे टेप
राजनीतिक व प्रशासनिक हल्कों में मुकेश गुप्ता की उक्त याचिका ने इन दिनों सनसनी मचा दी है . सस्पेंडेड आईपीएस मुकेश गुप्ता की सुपुत्री के फोन टेप किए जाने के आदेश से यह सनसनी जुडी़ हुई है . मुकेश गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट में इसे ही चुनौती दी है .
अव्वल तो सामान्य परिस्थितियों में फोन टेप नहीं किए जा सकते और यदि करने भी पडे़ं तो इससे जुडा़ आदेश सर्वथा गोपनीय रहता है .
लेकिन आईपीएस मुकेश गुप्ता व उनके परिजनों के मामले में ऐसा नहीं हुआ . इसकी पुष्टि स्वयं मुकेश गुप्ता द्वारा दायर कर रही वह याचिका कर रही है जिसकी सुनवाई शुक्रवार को होनी है .
मुकेश गुप्ता ने अपनी याचिका में वह आदेश भी लगाए हैं जोकि 5 व 10 अक्टूबर को जारी किए गए थे . अब सवाल इस बात का उठ रहा है कि ये आदेश मुकेश गुप्ता तक पहुंचे कैसे ?
आईपीएस गुप्ता को फोन टैपिंग के संबंध में जारी किए गए आदेश किन माध्यमों के मार्फत प्राप्त हुए हैं यह सवाल भी बेहद महत्वपूर्ण है . इससे भी ज्यादा सवाल इनके समय को लेकर हो रहे है.
उल्लेखनीय है कि 5 व 10 अक्टूबर को इस आशय के आदेश होते हैं . सर्वथा गोपनीय श्रेणी के उक्त आदेश दो – चार दिनों के भीतर ही उस मुकेश गुप्ता तक पहुंचे जाते हैं जिनकी सुपुत्री के फोन टेप किए जाने हैं.
आनन फानन में मुकेश गुप्ता याचिका तैयार कराने में जुट जाते हैं . 17 अक्तूबर को उनके द्वारा सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया भी जाता है . और तो और याचिका दाखिल की जाती है जिसकी सुनवाई 25 अक्तूबर को होनी है .
मतलब महज 15 दिनों के भीतर यह सारा घटनाक्रम घटित हो जाता है . इससे यह भी साबित होता है कि आईपीएस गुप्ता के पीछे भले ही छग की सरकार लगी हो लेकिन आज भी पुलिस महकमे में मुकेश गुप्ता की पकड़ से इनकार नहीं किया जा सकता है.
संदेह के दायरे में तीन आईपीएस
आईपीएस मुकेश गुप्ता तक उक्त गोपनीय आदेश पहुंचाने का संदेह भी तीन आईपीएस पर किया जा रहा है. इनमें से एक इन दिनों ईओडब्ल्यू में पदस्थ बताए जाते हैं .
दूसरे आईपीएस उस दुर्ग रेंज में पदस्थ बताए जाते हैं जोकि मुख्यमंत्री – गृहमंत्री की “होमरेंज” है. तीसरे आईपीएस वो हो सकते हैं जिन्हें रिकार्ड बनाने का बेहद शौक है. इन्हें फिलहाल विदेश प्रवास पर बताया जाता है .
बहरहाल , इन आईपीएस की सस्पेंडेड आईपीएस मुकेश गुप्ता के साथ जुगलबंदी वर्षों पुरानी बताई जाती है . मुकेश गुप्ता ने ही इन्हें पूर्ववर्ती सरकार के दिनों में उस समय प्रश्रय दिया था जिस समय ये गंभीर आरोपों में या तो जेल चले जाते या फिर निलंबित कर दिए जाते .
लगता है अब ये मुकेश गुप्ता की गोपनीय मदद कर पुराने अहसानों का कर्ज उतार रहे हैं . लेकिन इस बार कर्ज उतारने के क्रम में इनसे इतनी बडी़ गलती हो गई है कि छत्तीसगढ़ की जनता सवाल कर रही है कि प्रदेश में राज किसका . . . भूपेश का या मुकेश का ?