नज़रिया / नेशन अलर्ट
अंततः वही हुआ जिसकी उम्मीद की जा रही थी. कांग्रेस ने तमाम तरह के आरोप प्रत्यारोप के बीच दंतेवाडा़ का चुनावी समर फतह कर लिया.
इस जीत के बहुत से मायने हैं. कल तक जो बस्तर भाजपा का था ये बताने दंतेवाडा़ का उदाहरण दिया जाता था. लेकिन अब वह भी हाथ से निकल गया.
कांग्रेस की देवती कर्मा ने कुलजमा 11 हजार 319 मतों से भाजपा की ओजस्वी मंडावी को हराकर पूरे बस्तर को कांग्रेसमय कर दिया है.
भीमा मंडावी की शहादत पर बस्तर टाइगर कहे जाने वाले महेन्द्र कर्मा की शहादत भारी पड़ गई.
ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्यूं कि दो चक्र छोड़ कर हर चक्र में कांग्रेस , देवती कर्मा , सीएम भूपेश बघेल व प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम की जीत व जिंदाबाद के नारे लगते रहे.
बहरहाल , दंतेवाडा़ में जीत से प्रदेश में मुख्यमंत्री और मजबूत हुए हैं. साथ ही साथ उनकी नीतियों पर जनता ने मुहर लगा दी है.
इसके अलावा प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम के भी हाथ और मजबूत हुए हैं. अब वह अपनी मर्जी से फैसले ले सकेंगे. चूंकि वह स्वयं बस्तर से आते हैं इस कारण यह जीत उनके लिए बेहद जरुरी थी.
एक बात और . . . यह जीत मुख्यमंत्री भूपेश बघेल व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम की जोडी़ को और मजबूती प्रदान करेगी.
साथ ही साथ इस जीत से चित्रकोट जीतने का भी रास्ता निकालने में भूपेश – मरकाम के साथ कांग्रेस को मदद मिलेगी.
रही बात भाजपा की हार कि तो यह ओजस्वी मंडावी अथवा संगठन से कहीं ज्यादा उस डा. रमन सिंह की हार है जिसने 15 सालों तक प्रदेश में अपना एक सौम्य चेहरा बनाकर रखा था.
. . . तो क्या छत्तीसगढ़ में भाजपा को किसी नए चेहरे की दरकार है?