नज़रिया/आशीष शर्मा.
महेेंद्र सिंह धोनी… एक ऐसा नाम जो क्रिकेट खेलता नहीं बल्कि उसे जीता है. टी-20, वनडे वर्ल्ड कप सहित चैंपियंस ट्रॉफी जैसे प्रतिष्ठित क्रिकेट टूर्नामेंट भारत की झोली में लाकर डाल देने वाले धोनी क्या इस हद तक बूढे़ हो गए हैं कि उन्हें विराट कोहली-रवि शास्त्री की साजिशों का शिकार होना पड़ रहा है?
यहां विराट-शास्त्री के साथ साजिश शब्द का इस्तमाल जानबूझ कर किया गया है. दरअसल विराट कोहली ने टीम के कोच रवि शास्त्री के साथ मिलकर धोनी को नीचा दिखाकर टीम से बाहर करने की जो साजिश रची थी वह खुद ब खुद बेनकाब हो गई है.
इस बार के विश्वकप में भारतीय टीम चयन के मामले में शुरू से पाक साफ नहीं रही है. किसी खिलाड़ी के चुने जाने अथवा नहीं चुने जाने पर अमूमन कई तरह की बातें होती रहती हैं लेकिन वह खिलाड़ी यदि महेंद्र सिंह धोनी के खिलाफ रची गई साजिश का हिस्सा हो तो बात दूर तलक जाएगी.
विश्वकप के पहले से हिंदूस्तान से लेकर धरती पर रहने वाले क्रिकेट प्रेमी यह जान रहे थे कि भारत की कमजोरी नंबर 4 का बल्लेबाज है. वही नंबर 4 धोनी के खिलाफ रची गई साजिश का भी हिस्सा हो गया है.
दरअसल नंबर 4 पर पहले अंबाती रायुडू नहीं चुने गए थे. उनके स्थान पर विजयशंकर का चुनाव किया गया था. विजयशंकर को बल्लेबाजी, गेंदबाजी सहित अच्छा क्षेत्ररक्षक बनाकर चुना गया था.
बात तब बिगड़ी जब भारतीय ओपनर शिखर धवन चोटिल होने के चलते विश्वकप से बाहर हो गए. तब तक नंबर 4 पर बल्लेबाजी कर रहे केएल राहुल को ओपनर की जिम्मेदारी निभाने आना पड़ा.
अब शिखर धवन की जगह एक मूल रूप से बल्लेबाज चुना जाना चाहिए था लेकिन यहां कोहली-शास्त्री का दिमागी दिवालियापन देखिए कि उन्होंने रिषभ पंत का चुनाव कर लिया.
पंत ने भले ही कुछ एक अच्छी पारियां आईपीएल जैसे टूर्नामेंट में खेली हो लेकिन वह मूल रूप से बल्लेबाज नहीं है बल्कि विकेट कीपर हुआ करते हैं. पंत जैसे युवा को विदेशी धरती पर उतारकर भारत ने सोचा कि सब कुछ ठीक हो गया.
यहीं पर फिर गलती हो गई. अब विजयशंकर चोटिल हो गए तो उनके स्थान को भरने के लिए मयंक अग्रवाल लाए गए. जिन्होंने एक भी मैच नहीं खेला. दिनेश कार्तिक ने जरूर कुछ मैच खेले लेकिन वह स्पेशलिस्ट बैट्समैन नहीं बन पाए. मतलब हिंदुस्तान की टीम को देखिए कि यहां तीन तीन विकेटकीपर बल्लेबाज (धोनी-पंत-कार्तिक) न केवल टीम में थे बल्कि खेले भी.
यहां साजिश शब्द का उपयोग इसलिए किया गया है क्योंकि ये सब कुछ प्रीप्लान तरीके से कोहली-शास्त्री की जोड़ी ने किया था. उनकी सोच यह रही होगी कि धोनी को यदि टीम से बाहर करना है तो एक ऐसा विकेटकीपर खिलाया जाए जो न केवल अच्छी बल्लेबाजी कर ले बल्कि धोनी के कमजोर प्रदर्शन पर उसे वह विकल्प के तौर पर प्रस्तुत कर सकें.
पंत कोई चमत्कार नहीं दिखा पाए और कार्तिक चला हुआ कारतूस साबित हुए. ऊपर से धोनी ने निचले क्रम पर आकर कुछ एक अच्छी पारियां खेली है. इसके चलते यह योजना सफल नहीं हो पाई.
कायदे से नंबर 4 के लिए पहले से ही अंबाती रायुडू की दावेदारी बनती थी. उन्होंने 2015 के बाद से विश्वकप तक 14 मैच खेलकर 464 रन बनाए थे. लेकिन उन्हें सिर्फ इसकारण नहीं चुना गया कि वह चेन्नई सुपर किंग्स की ओर से खेल चुके हैं.यह धोनी की टीम मानी जाती रही है.
9 मैच में अंजिक्य रहाणे ने 375 रन इस स्थान पर खेलकर अर्जित किए थे. उनके चुनाव में भी कई तरह के किंतु परंतु का इस्तमाल कर उन्हें रोक दिया गया. अकेले महेंद्र सिंह धोनी ने ही इस स्थान पर उक्त अवधि में 12 मैच खेलकर 448 रन बनाए थे.
कायदे से यदि धवन के स्थान पर राहुल ओपनर की जगह पर खिलाए गए तो यह स्थान या तो रायुडू को दिया जाना चाहिए था या फिर धोनी को. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. इस स्थान पर ऐसा प्रयोग हुआ कि टीम का भट्टा ही बैठ गया.
नंबर 4 के क्रम पर भारत की ओर से चार बल्लेबाज खेले लेकिन किसी ने भी अर्धशतक की दहलीज तक पार नहीं की. यदि नंबर 4 पर धोनी को लाया जाता तो वह टीम को आगे ले जा सकते थे.
लेकिन यहां कोहली-शास्त्री द्वारा रची गई साजिश का वे शिकार हो गए. बहरहाल अब चिडिय़ा खेत चुग गई है. इसकारण हम सिर्फ बातें ही कर सकते हैं.
एक प्रमुख हिंदी दैनिक (दैनिक जागरण) के मुताबिक खिलाड़ी इस बात से नाराज़ हैं कि कोच रवि शास्त्री और कप्तान विराट कोहली अकेले फैसला लेते हैं.
ये दोनों कभी भी टीम के बाकी सदस्यों के साथ सलाह मशविरा नहीं करते हैं. अखबार ने दावा किया है कि डर की वजह से कोच रवि शास्त्री और कप्तान कोहली का विरोध कोई नहीं करता.
कुछ खिलाड़ियों का मानना है कि अगर भारतीय टीम वर्ल्ड कप से बाहर हुई तो उसकी सबसे बड़ी वजह शास्त्री और विराट कोहली की एकतरफा सोच है जो वे टीम पर थोपते हैं.