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रायपुर.
कांग्रेस का अंतरद्वंद खुलकर सामने आ गया है. राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद अब अंतरिम अध्यक्ष बैठाने की तैयारी की खबर है. इस पद के लिए नब्बे साल के बुजुर्ग मोतीलाल वोरा का नाम प्रमुखता से उभरा है. यदि वोरा की ताजपोशी होती है तो इसका व्यापक असर छत्तीसगढ़ की राजनीति में नजर आएगा.
हालांकि अब तक आंतरिक अध्यक्ष पद पर वोरा अथवा किसी अन्य की नियुक्ति नहीं हुई है. माना जा रहा है कि इस पद के लिए वोरा के अतिरिक्त एके एंटोनी, अशोक गहलोत जैसे और भी बहुत सारे नेता कांग्रेस के पास है.
छ: साल का प्रभाव घटेगा
फिर भी यदि मोतीलाल वोरा को कांग्रेस अपना आंतरिक अध्यक्ष नियुक्त कर देती है तो इसका क्या कुछ असर होगा? राष्ट्रीय राजनीति से पृथक उस छत्तीसगढ़ में वोरा की नियुक्ति क्या गुल खिलाएगी जहां के वह हैं?
दरअसल छत्तीसगढ़ की राजनीति में इन दिनों भूपेश बघेल एक बड़ी ताकत बनकर उभरे हैं. कांग्रेस से पृथक पूरे छत्तीसगढ़ की राजनीति उनके इर्द गिर्द घूम रही है.
पहले उन्होंने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए भाजपा से सीधी लड़ाई लड़ी. साथ ही साथ कांग्रेस के भीतर भी उन्हें उन लोगों से दो चार होना पड़ा जो अजीत जोगी के समर्थक हुआ करते थे.
अजीत जोगी ने जब पृथक से अपना एक दल गठित किया तो माना जा रहा था कि वह छत्तीसगढ़ की राजनीति में बहुत बड़ा असर डालेंगे लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो पाया.
इतना जरूर हुआ कि भारी भरकम बहुमत के साथ भाजपा को हराकर कांग्रेस पन्द्रह साल के बाद प्रदेश की सत्ता में लौट आई.इसे भूपेश की काबिलियत के साथ साहसी निर्णय से जोड़ कर देखा जाते रहा है.
एक मर्तबा मुख्यमंत्री चयन के समय लगा था कि भूपेश बघेल इस बाजी को हार जाएंगे लेकिन तमाम तरह के किंतु परंतु के बावजूद वह प्रदेश के मुखिया चुन लिए गए.
टीएस सिंहदेव से लेकर ताम्रध्वज साहू के मुख्यमंत्री बनने का सपना चूरचूर हो गया. आज की तारीख में दोनों भूपेश के अधीन प्रदेश मंत्रिमंडल में महज मंत्री बनकर काम कर रहे हैं.
इसके बाद भूपेश ने अपनी ताकत का जबतब अहसास कराया है. इतना जरूर है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर वह अपनी पसंद के अमरजीत भगत को बैठा नहीं पाए.
लेकिन उन्होंने अमरजीत भगत को अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर अपने विरोधियों को संदेश दे दिया है. भगत के स्थान पर कांकेर विधायक मोहन मरकाम प्रदेश अध्यक्ष पद पर बैठा दिए गए जो कि टीएस सिंहदेव की पहली पसंद बताए जाते हैं.
अब यदि मोतीलाल वोरा कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में आंतरिक अध्यक्ष पद पर ही सही लेकिन लौट आते हैं तो इसका सीधा सा असर उस छत्तीसगढ़ प्रदेश पर पड़ेगा जहां की राजनीति बीते छ: साल से भूपेश बघेल के दाएं बाएं हो रही है.
छ: सालों में भूपेश बघेल ने अपनी ताकत में चौतरफा इजाफा किया है. इस ताकत पर सीधे तौर पर असर पड़ेगा. वोरा व बघेल एक ही जिले दुर्ग से आते हैं. वोरा जहां सवर्ण समाज के नेता माने जाते हैं वही बघेल को ओबीसी वर्ग का चेहरा माना जाता है.
वोरा के आंतरिक अध्यक्ष बनने से छग की राजनीति में सामान्य वर्ग के सारे नेता उनके इर्द गिर्द जुट जाएंगे जो कि इन दिनों भूपेश से किन्ही कारणोंवश नाराज बताए जाते हैं.
इसमें फिर चाहे सत्यनारायण शर्मा का नाम हो या फिर अमितेष शुक्ल का नाम… अथवा वोरा के सुपुत्र अरूण वोरा का नाम ही क्यों न हो. वोरा को आंतरिक ताकत उन नेताओं से भी मिलेगी जो कि भूपेश की सरकार में कहीं से भी पीडि़त प्रताडि़त नजर आते हैं.
इसमें बहुत से नाम हैं. बस्तर संभाग से मनोज मंडावी के नाम से लेकर रायपुर संभाग से धनेंद्र साहू का नाम शामिल किया जा सकता है. ये सारे लोग भूपेश बघेल के खिलाफ मोतीलाल वोरा से जुड़ सकते हैं.
मतलब साफ है कि वोरा यदि किसी भी कारणवश कांग्रेस के राष्ट्रीय आंतरिक अध्यक्ष बनते हैं तो छत्तीसगढ़ प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल का गणित गड़बड़ाएगा ही क्योंकि ओबीसी के एक बड़े नेता ताम्रध्वज साहू भी वोरा के साथ उस समय हो जाएंगे.