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रायपुर .
छत्तीसगढ़ किसान सभा ने कहा है कि चुनाव बाद मोदी सरकार ने अपना किसान विरोधी चेहरा दिखा दिया है.
खरीफ फसलों के लिए, विशेषकर छत्तीसगढ़ के संदर्भ में, धान की फसल के लिए जो समर्थन मूल्य घोषित किया गया है, वह स्वामीनाथन आयोग के सी-2 फार्मूले के अनुसार लागत तो दूर, महंगाई में हुई वृद्धि की भी भरपाई नहीं करती.
आज यहां जारी एक बयान में छग किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा है कि देश के विभिन्न राज्यों ने धान उत्पादन का जो अनुमानित लागत बताया है, उसका औसत 2100 रूपये प्रति क्विंटल बैठता है.
सी-2 फार्मूले के अनुसार धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 3150 रूपये प्रति क्विंटल होना चाहिए, जबकि केंद्र सरकार ने उत्पादन लागत 1208 रूपये बताते हुए समर्थन मूल्य 1815 रूपये ही घोषित किया है. मोदी सरकार का यह रवैया सरासर धोखाधड़ीपूर्ण और किसानों को बर्बाद करने वाला है.
किसान नेताओं ने कहा कि धान के इस वर्ष घोषित समर्थन मूल्य में पिछले वर्ष की तुलना में केवल 3.7% की ही वृद्धि की गई है, जबकि महंगाई वृद्धि की औसत दर ही 5% से अधिक है.
अतः किसानों को तो वास्तव में पिछले वर्ष घोषित समर्थन मूल्य तक देने से इंकार किया जा रहा है, जो महंगाई के मद्देनजर 1850 रूपये बैठता है.
इस प्रकार किसानों को धान के वास्तविक लागत मूल्य से 1430 रूपये और 45% कम दिए जा रहे हैं. यही कारण है कि खेती घाटे का सौदा हो गई है और किसान क़र्ज़ में फंसकर आत्महत्या करने के लिए बाध्य हो रहे हैं.
किसान सभा ने कहा है कि इसी प्रकार की धोखाधड़ी दलहन और तिलहन फसलों के मामलों में की गई है और मोदी सरकार का किसानों को लागत से डेढ़ गुना समर्थन मूल्य देने का दावा थोथा है.
किसान सभा नेताओं ने अपने बयान में रेखांकित किया है कि केंद्र सरकार की किसान विरोधी नीतियों के कारण किसानों की आय में मात्र 0.44% की दर से वृद्धि हो रही है और इस दर से किसानों की आय दुगुनी करने में कम-से-कम 150 साल लग जायेंगे.
छत्तीसगढ़ किसान सभा ने आम जनता और किसान संगठनों से अपील की है कि भाजपा सरकार की किसानों से की जा रही धोखाधड़ी को समझें.
इसके खिलाफ साझा आंदोलन विकसित करे. भाजपा की किसानविरोधी नीतियों के खिलाफ एकजुट संघर्ष ही देश और किसानों को बचा सकता है.