रायपुर।
बस्तर अब अपनी पहचान बदल रहा है। वह दिन लद गए जब इसे सिर्फ प्राकृतिक खूबसुरती या फिर नक्सलियों के कारण जाना जाता था। अब यहां विकास के पहिए आगे बढ़ने लगे हैं और इसी बीच यहां से एक दिलचस्प खबर निकल कर सामने आई है।
यह अजब इत्तेफाक है कि एक ही परिवार के पिता और पुत्र दोनों ही बस्तर विकास के सहभागी बने हो। करीब इकचालिस साल पहले जब बस्तर साधन, सुविधा और परिवहन से अछूता था तो यहां एक पैसेंजर ट्रेन का संचालन शुरू हुआ था। यह दिन था एक सितम्बर 1976 इस दिन पूरा शहर ट्रेन की सुविधा मिलने से झूम उठा था। इस समय किरन्दुल- कोत्तावलसा पैसेंजर के स्वागत के लिए शहर के नामी और राजनीतिक दल से जुड़े जयकिशोर जायसवाल भी जगदलपुर स्टेशन पर मौजूद थे।
हालांकि इस ट्रेन का नारियल फोड़कर स्वागत स्थानीय एक समाचार पत्र के संपादक तुषारकांति बोस ने किया, इस दौरान जयकिशोर जायसवाल भी मौजूद रहे। शहर के गणमान्यों के साथ विभिन्न संगठन के लोग भी उपस्थित थे। उस दिन भी स्टेशन में मिठाईयां बंटी थी। कहा जाता है समय अपने आप को दोहराता है, ऐसा ही कुछ एक अप्रेल 2017 को हुआ जब बस्तर को ट्रेन सुविधाओं के नाम पर विस्तार के तहत ऐसी एक्सप्रेस मिली जिसने न सिर्फ बस्तर को दक्षिण भारत से जोड़ दिया अपितु पूरे भारत के लिए रास्ता खुल गया।
इस ट्रेन के यहां से चलने से जनता को जितनी खुशी थी वो स्टेशन में मौजूद भीड़ में देखते ही बनती थी। सभी का चेहरा खिला था और हो भी क्यों न। खास बात यह थी कि इस ट्रेन के परिचालन को लेकर जो समय दिया गया है उसे लेकर व्यापारी वर्ग से लेकर अधिकारी वर्ग और हर वो वर्ग प्रसन्न है जिसे भारत के कोने- कोने में जाना है। ऐसी ओव्हरनाइट एक्सप्रेस की सौगात जब बस्तर को मिली तो इसे जगदलपुर स्टेशन से प्रदेश के सीएम डाक्टर. रमन सिंह ने रवाना किया। इस दौरान उनके साथ अन्य गणमान्य जनप्रतिनिधियों के बीच शहर के महापौर जतीन जायसवाल भी थे। जिन्होंने एक्सप्रेस को हरी झण्डी दिखाई। यह अजब ही संयोग है कि पिता जयकिशोर जायसवाल ने 41 साल पहले पैसेंजर ट्रेन का स्वागत किया और पुत्र जतीन जायसवाल ने एक्सप्रेस ट्रेन को इसी मार्ग पर हरी झण्डी दिखाकर रवाना किया।
बस्तर विकास को लेकर हमेशा से तत्पर रहने वाले यदि कुछ नाम सामने आएं तो उसमें पुखराज बोथरा और संतोष जैन का नाम किसी से अछूता नहीं है। ये शहर के ऐसे नागरिक हैं जिन्होंने बस्तर विकास के लिए हर स्तर से उपर उठकर पहल की है। नि: स्वार्थ भाव से जिस तरह से इन्होंने गत पैंतालिस साल से बस्तर के लिए काम किया है और बस्तर के विकास के साक्षी बनें हैं, वे बताते हैं कि जब पहली बार बस्तर में 41 साल पैसेंजर ट्रेन आई थी तो उस दौरान हम मौजूद थे, उस दिन जयकिशोर जायसवाल भी स्टेशन में थे और नई ट्रेन का उन्होंने स्वागत किया था। आज चार दशक बाद जब बस्तर नए आयाम को छूने जा रहा है तो इसे संयोग ही कहेंगे कि उनके पुत्र जतीन जायसवाल को यह अवसर मिल रहा है कि वो बस्तर से रवाना होने वाली ट्रेन को हरी झण्डी दिखा रहे हैं।