छत्तीसगढ़ और कांग्रेस में हालात इन दिनों कुछ ठीक नजर नहीं आते हैं. जनचर्चा बताती है कि यदि यही हाल रहा तो साल खत्म होते तक कोई बड़ा भूचाल आ सकता है.
जनचर्चा के मुताबिक यह स्थिति महज पांच-छ: महीनों के भीतर निर्मित हुई है. अब तो कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने खुद होकर कहना शुरू कर दिया है कि सरकार बदली लेकिन उनके दिन नहीं बदले.
इस बारे में उदाहरण भी दिए जाने लगे हैं. इसी सप्ताह शुक्रवार को प्रदेश कार्यालय राजीव भवन में प्रभारी सचिव की बैठक में कार्यकर्ताओं ने जमकर आक्रोश जाहिर किया था.
बताया तो यहां तक जाता है कि कार्यकर्ता इस बात से आक्रोशित थे कि उनकी कोई पूछ परख नहीं हो रही है. इसी आक्रोश के दौरान कुछ एक कार्यकर्ताओं ने यह तक कह दिया कि मंत्रियों के दाएं बाएं रहने वालों के काम जरूर होते हैं लेकिन उनके काम आज तक नहीं हुए.
जनचर्चा अनुसार एक कार्यकर्ता ने एक महिला अधिकारी पर यह सवाल उठाया कि आखिर यह है कौन? कार्यकर्ता का आक्रोश यहां तक था कि उसने पूछ लिया कि क्या यह महिला अधिकारी सरकार चला रही है?
जनचर्चा तो यहां तक है कि मंत्री खुद अपने कार्यकर्ताओं की पूछ परख नहीं करना चाह रहे हैं. शुक्रवार को हुई बैठक का नतीजा शनिवार को नजर भी आया.
शनिवार को पत्रकारों के समक्ष प्रदेश प्रभारी ने दो टूक शब्दों में कहा कि मंत्री यह न समझे कि उन्हें कुर्सी पांच साल के लिए मिली है. यदि आशानुरूप अथवा कार्यकर्ताओं की उम्मीद पर मंत्री खरे नहीं उतरे तो उनकी कुर्सी जा भी सकती है.
यदि यही सब होता रहा तो माना जा रहा है कि नगरी निकाय चुनाव में कांग्रेस को कार्यकर्ताओं की नाराजगी महंगी पड़ेगी. हर दम कार्यकर्ता पार्टी का झंडा उठाता है लेकिन वक्त आने पर मलाई और कोई खा जाता है.
कार्यकर्ताओं की बढ़ती दूरी अथवा बढ़ती नाराजगी कांग्रेस को स्थानीय सरकार से दूर कर सकती है. इस बात का अहसास होते ही पार्टी में कुछ परिवर्तन किए जाने की खबर सुनाई देने लगी है.
यक्ष प्रश्न
राज्य मंत्रालय में किस अधिकारी को भाभीजी कहकर संबोधित किया जाने लगा है?