नेशन अलर्ट.
97706-56789
नईदिल्ली/भोपाल/रायपुर .
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार का साइड इफेक्ट राज्यों में नजर आने लगा है. मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ ही छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की कुर्सी पर भी खतरे के बादल मंडरा रहे हैं.
कांग्रेस को ऐसी हार झेलनी पड़ी है कि उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी परंपरागत सीट अमेठी भी गंवा चुके हैं.
अमेठी की हार का दर्द राहुल पर इस कदर हावी है कि उन्होंने केंद्रीय कार्य समिति की बैठक में अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया है.
हालांकि राहुल की मान मनोवल का दौर कांग्रेसी स्तर पर लगातार जारी है लेकिन राहुल ने कार्यकारी अध्यक्ष सहित उपाध्यक्षों की नियुक्ति का एक सुझाव पार्टी को दिया है.
इस पर क्या कुछ होता है यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन उन राज्यों की इकाईयों के पोस्टमार्टम की तैयारी है जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकार है.
कमलनाथ नहीं रहेंगे अध्यक्ष
इसमें सबसे पहले मध्यप्रदेश की बात की जा सकती है. प्रदेश में अभी मुख्यमंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद कमलनाथ के पास है.
लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद कमलनाथ के हाथ से प्रदेश अध्यक्ष का पद निकलना तय है.
चूंकि कमलनाथ सोनिया गांधी के बेहद करीबी हैं इसकारण वह मुख्यमंत्री पद बचा ले जाएंगे.
हालांकि उनके मुख्यमंत्री रहने के दौरान भी मध्यप्रदेश की सरकार पर संकट के बादल मंडराते रहे हैं.
कमलनाथ के स्थान पर या तो ज्योतिरादित्य सिंधिया को या फिर अरूण यादव जैसे किसी युवा चेहरे को प्रदेश की कमान सौंपी जा सकती है.
इसमें सिंधिया का नाम बड़ी तेजी से उभरा है. राहुल गांधी ने उन्हें दिल्ली में रोककर रखा है.
सचिन समर्थकों ने बनाया दबाव
उधर राजस्थान में अपने बेटे वैभव गहलोत को तमाम तरह के प्रयास के बावजूद नहीं जीता पाने का खामियाजा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को उठाना पड़ सकता है.
गहलोत से राहुल गांधी इस हद तक नाराज हैं कि उन्होंने उनसे मेल मुलाकात भी इन दिनों टाल दी है.
चूंकि राजस्थान विधानसभा का चुनाव सचिन पायलट के नेतृत्व में लड़ा गया था इसकारण उनके समर्थक उन्हें बतौर मुख्यमंत्री देख रहे थे.
लेकिन कांग्रेस ने अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाते हुए पायलट को उपमुख्यमंत्री बना दिया था. अब लोकसभा चुनाव में हुई करारी हार के बाद गहलोत व पार्टी आलाकमान पर पायलट समर्थक दबाव बनाने लगे हैं.
कहा तो यह तक जाता है कि सचिन पायलट ने एक तरह से आरपार की लड़ाई लडऩे का निर्णय ले लिया है. उनके समर्थक नई पार्टी बनाने की भी धमकी दे रहे हैं.
गहलोत को हटाकर वहां सचिन पायलट को राजस्थान की सरकार की कमान सौंपी जा सकती है.
नप सकते हैं भूपेश भी
इधर छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में विधानसभा चुनाव में भारी भरकम सीट जीतकर भूपेश बघेल ताकतवर बनकर उभरे थे.
उनकी पहली जीत तब हुई थी जब ताम्रध्वज साहू व टीएस सिंहदेव पर तरजीह देते हुए उन्हें मुख्यमंत्री चुना गया था.
चूंकि लोकसभा चुनाव नजदीक था इसकारण मुख्यमंत्री होने के बावजूद भूपेश बघेल ही प्रदेश कांग्रेस पद का दायित्व संभालते आ रहे थे.
अब चूंकि सरकार की अपनी रपट के विरूद्ध लोकसभा चुनाव के नतीजे आए हैं तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की कुर्सी भी हिलती डूलती नजर आ रही है.
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सहित चार मंत्रियों से जुड़ी रही दुर्ग लोकसभा की सीट भी कांग्रेस बेतरतीब तरीके से हारी है.
इसका खामियाजा भूपेश बघेल को आज नहीं तो कल उठाना पड़ेगा. पार्टी में उनके विरोधी बड़ी तेजी से सक्रिय हुए हैं.
मंत्री नहीं बनाए जाने से पहले से नाराज चल रहे सत्यनारायण शर्मा, अरूण वोरा, धनेंद्र साहू, मनोज मंडावी ये कुछ एक ऐसे नाम हैं जो कि वक्त का इंतजार कर रहे हैं.
सारे घटनाक्रम पर कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष रह चुके मोतीलाल वोरा की निगाहें टिकी हुई बताई जाती है.
अभी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का फैसला होना बाकी है इसकारण राज्यों पर निगाह नहीं पड़ी है.
लेकिन आज नहीं तो कल मध्यप्रदेश, राजस्थान के साथ ही छत्तीसगढ़ में नए चेहरे उभरकर सामने आयेंगे जरूर.
मतलब साफ है कि कमलनाथ मध्यप्रदेश कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नहीं रह पाएंगे. इसी तरह राजस्थान व छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री पद का दायित्व क्रमश: अशोक गहलोत व भूपेश बघेल के हाथों से लिया जा सकता है.