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रायपुर.
नर्सिंग प्रशिक्षण के लिए चयनित आदिवासी छात्राओं को प्रशिक्षण शुल्क का भुगतान आज दिनांक तक नहीं हो पाया है. दरअसल यूरोपियन यूनियन ने जो राशि 1.666 करोड़ रूपए स्वीकृत की थी वह राशि स्वास्थ्य संचालनालय के बैंक खाते में पड़ी हुई है.
इसी मुद्दे को लेकर मार्क्सवादी कम्यूनिष्ट पार्टी के सांसद जितेंद्र चौधरी ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पत्र लिखा था. उनके द्वारा लिखे गए पत्र पर अब हलचल मची है.
कालेजों के प्रबंधन ने हड़प ली राशि
शुक्ला के पत्र की जानकारी देते हुए माकपा के छत्तीसगढ़ सचिव संजय पराते बताते हैं कि कालेजों के प्रबंधन द्वारा छात्राओं से राशि हड़प ली गई है. उन्होंने मांग की है कि पूरी राशि छात्राओं के खातों में अंतरित की जाए.
प्रशिक्षण बाद इन छात्राओं को ग्रामीण क्षेत्रों में स्टाफ नर्स के रूप में पदस्थ किया जाना चाहिए. छात्राएं प्रशिक्षण शुल्क प्राप्त न हो पाने से न केवल परेशान हो रही हैं बल्कि भटकने भी मजबूर हैं.
दो साल में नहीं मिली अनुमति
बताया जाता है कि ईयूएसपीपी प्रोजेक्ट के बंद होने के बाद भी संबंधित छात्राओं के प्रशिक्षण शुल्क की राशि स्वास्थ्य संचालनालय के पास बैंक खाते में पड़ी हुई है.
पराते बताते हैं कि गत दो साल से वित्त विभाग से अनुमति नहीं मिल पाई है. और तो और भाजपा शासनकाल में छात्राओं ने प्रयास भी बहुत किया लेकिन तब के वित्त मंत्री जो कि प्रदेश के मुख्यमंत्री भी थे कोई ध्यान नहीं दिया.
अब जबकि वित्त मंत्रालय मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के अधीन ही है तो वित्त सचिव कमलप्रीत सिंह ने स्वास्थ्य सचिव निहारिका बारिक को तत्काल भुगतान कराने कहा है क्योंकि वित्त विभाग को कोई आपत्ति नहीं है.
दो पाटन के बीच छात्राएं पिस रही थी. एक तरफ उन्हें कहा जाता था कि आदिवासी उपयोजना से पैसे दिए जाएंगे.
तो दूसरी तरफ उनसे यह भी कहा जाता था कि खनिज न्यास निधि से पैसे दिए जाएंगे. इन सब में दो साल बगैर भुगतान के बीत गए.
किसी ने जमीन जायदाद अपनी लड़की को पढ़ाने बेची तो किसी को गिरवी रखनी पड़ी. एक हस्ताक्षर की कीमत इतनी ज्यादा है कि अनुमति लंबित रही.
अब जबकि मामले का पटाक्षेप संभव नजर आ रहा है तो राज्य सरकार के वायदे के मुताबिक स्टाफ नर्स के रूप में नौकरी दिलाने की लड़ाई माकपा लड़ेगी.