विशेष टिप्पणी/रवि वर्मा
आज इस आलेख को लिखते समय आंखें बार बार भीग रही हैं और दिल गुस्से से भरा हुआ है। अपने वीर रणबांकुरों की शहादत को शत शत नमन और अश्रुपूरित श्रद्धांजलि।
अब चर्चा आज के छत्तीसगढ़ की।भूपेश बघेल की नई सरकार के 60 दिन बस होने ही वाले हैं और सरकार हर रोज़ ‘काम’ कर रही है। अच्छी बात है। तेज़ दौड़ती इस नई सरकार को, धीमे चलने की नसीहत देने की ( हिमाकत करने की) शायद ज़रूरत नहीं पड़ती, अगर इसके कुछ हालिया फ़ैसले माथे पर शिकन न लाते। पत्रकारिता के अपने 40 साल के कॅरियर में मैंने ढेरों चुनाव देखे हैं और सरकारों को उठते-गिरते, बदलते-सम्भलते देखा है। इसलिए कह सकता हूँ कि भूपेश को मुख्यमंत्री के रूप में थोड़ा धीर गम्भीर होने की ज़रूरत है।
विरोधी उन्हें बदलापुर बदलापुर बोल बोलकर चिढ़ा रहे हैं और सरकार क्रोध में आकर और तेज़ कार्यवाही कर रही है।
यह ठीक है कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है, लेकिन अगर प्रतिक्रिया की रफ़्तार पर सही नियंत्रण न हो पाया तो कभी कभी यह भारी भी पड़ सकती है और इसका असर चौतरफ़ा भी हो सकता है। इससे सरकार की प्रतिष्ठा पर चोट पहुंच सकती है।
राज्य की नई सरकार को यह ध्यान रखना चाहिए कि अभी केंद्र में उसी दल की सरकार है जो छत्तीसगढ़ में विपक्ष की भूमिका में है। इसलिए सम्बन्ध खराब और तनावपूर्ण रखने से राज्य को नुकसान होगा और फंड लाने में तकलीफ बढ़ेगी। इससे विकास योजनाएं रुकेंगी और सरकार को जनता से किए गए अपने वायदे निभाने में दिक्कतें आएंगी। इसका असर अगले चुनाव पर भी पड़ेगा। इसलिए अभी से सम्भलना बेहतर है।
यह ठीक है कि पूर्ववर्ती रमन सरकार ने भूपेश को बहुत सताया और अपमानित किया और कुछ ब्यूरोक्रेट्स ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि रमन सिंह इसी वजह से हारे। सरकार की जनता से दूरी, मंत्रियों का घमंड और भयानक भ्रष्टाचार रमन सरकार को ले डूबा। बावज़ूद इसके भूपेश को अगर लम्बा चलना है तो थोड़े संयम से काम लेना होगा। राज्य में सिर्फ़ राजनीतिक सत्ता बदली है, ब्यूरोक्रेसी तो अब भी वही है जो 15 साल से थी।
नई सरकार जिस तरह से हर मामले की जांच के लिए एसआईटी बना रही है, ताबड़तोड़ एफआईआर दर्ज की जा रही हैं उससे ब्यूरोक्रेसी का मॉरल डाउन होना तय है। नौकरशाही के गलियारों में चर्चा बेहद गर्म है कि ऐसे में काम कैसे करेंगे। क्योंकि इस सरकार की इच्छानुसार काम करेंगे तो आने वाले समय में अगर सरकार बदल गई तो वह इससे दुगनी गति से बदले की कार्यवाही करेगी। अभी अगर बदलापुर एक्सप्रेस चल रही है तो बाद में बदलापुर मेल और बुलेट ट्रेन भी चल सकती है। ऐसे में ब्यूरोक्रेट्स पिस जाएंगे। इस बात का ध्यान मुख्यमंत्री को रखना चाहिए। उनको काम तो इनके सहारे और इनके साथ ही करना है।
एक और सावधानी सरकार को रखनी होगी कि कहीं ब्यूरोक्रेसी में बैठे अलग अलग खेमों के मठाधीश, सरकार की इस तेज़ी का फ़ायदा उठाकर अपने विरोधियों को ही निबटाने न लग जाएं। वरना इसका खामियाजा नई सरकार को ही भुगतना पड़ेगा। अभी कुछ मामलों में ऐसा दिख भी रहा है। इसलिए भूपेश को अपने सलाहकारों ( रिटायर्ड अफ़सर भी शामिल) की सलाह को देखना, परखना और राजनीतिक नफ़ा नुकसान के तराजू में तोलना होगा। लम्बा राज करने की यही नीति है।
चूंकि भूपेश साइंस कॉलेज रायपुर में मेरे स्टूडेंट रहे हैं, इसलिए एक सीनियर जर्नलिस्ट, एक बड़े भाई और शुभचिंतक के रूप में उनसे कह रहा हूँ कि ठोंक बजाकर, देख समझकर, धैर्य के साथ फ़ैसले करें। अभी उन्हें बहुत लंबा चलना है।