आशीष शर्मा/रायपुर।
क्या प्रदेश की प्यास वाकई पाटन बुझाएगा? दरअसल यह सवाल इसलिए लाजिमी हो जाता है कि पाटन से भूपेश बघेल ने न केवल जीत हासिल की है बल्कि मुख्मयंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी भी मजबूत कर दी है।
पाटन के किनारे से बहने वाली खारुन राजधानी रायपुर पहुंच कर वहां की प्यास बुझाती है। तो क्या इस बार भूपेश बघेल पूरे प्रदेश की जन आकांक्षाओं की प्यास बुझाएंगे? क्या भूपेश बघेल प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री होंगे?
इस सवाल का जवाब हम नहीं जानते हैं लेकिन यदि कारण गिनाएं जाएं तो ऐसे बहुत से कारण हैं जिस आधार पर कहा जा सकता है कि भूपेश बघेल को नेतृत्व मिल सकता है।
कांग्रेस को लडऩा और जीतना सिखाया
भूपेश बघेल जब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने थे तब कांग्रेस के पास कोई दमदार नेतृत्व नहीं बचा था। झीरम घाटी की घटना ने नंदकुमार पटेल सहित कई अन्य दिग्गज कांग्रेसियों को हमसे छिन लिया था।
डॉ. चरणदास महंत के नेतृत्व में 2013 का चुनाव लड़ा गया लेकिन उसमें कांग्रेस को सफलता नहीं मिली। और भी कई अन्य नेता थे जिन्हें या तो आजमा लिया गया था अथवा जो इस लायक नहीं थे।
बचे, भूपेश बघेल… कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने किंतु-परंतु से परे हटकर भूपेश को कमान सौंपी। इधर, अजीत जोगी और उनके सुपुत्र अमित जोगी कांग्रेस में रहते हुए भी फूल छाप कांग्रेसी बने हुए थे।
अंतागढ़ विधानसभा उप चुनाव में भूपेश बघेल की परीक्षा ऐसी हुई कि कांग्रेस को कुछ समझ भी नहीं आया। दरअसल, मंतूराम पवार ने ऐन समय में नाम वापस लेकर भाजपा को एक तरह से वाकओवर दे दिया था।
अब असल लड़ाई भूपेश बघेल की भाजपा से ज्यादा जोगी व उनके कुनबे से थी। इसी दौरान प्रदेश स्तर पर एक राजनीतिक धमाका हुआ। यह धमाका भूपेश बघेल के लिए संजीवनी लेकर आया।
भूपेश बघेल ने अपने राष्ट्रीय नेतृत्व को समझाकर अंतागढ़ उपचुनाव में सौदेबाजी कर कांग्रेस की हार सुनिश्चित करने वाले अमित जोगी को निकाल बाहर करवाया। अमित जोगी का निष्कासन इस हद तक काम आया कि अजीत जोगी खुद होकर कांग्रेस से अलग हो गए।
दो मोर्चे पर सफल हुए
भूपेश व उनकी कांग्रेस के पास अब दो मोर्चे थे। अंतत: दोनों ही मोर्चों पर कांग्रेस ने भूपेश बघेल के नेतृत्व में सफलता अर्जित की है। एक मोर्चा प्रदेश की भाजपा सरकार का था तो दूसरा मोर्चा जोगी और उनके आगे पीछे चलने वाले लोगों का था।
जब जोगी कांग्रेस से अलग हुए तो लगा कि कांग्रेस दो फाड़ हो जाएगी। लेकिन, ऐसा नहीं हो पाया। यह भूपेश बघेल की ही काबिलियत थी कि उन्होंने उन विधायकों को भी बांधकर रखा जो विधायक जोगी खेमे के माने जाते रहे थे।
इसके अलावा भूपेश कांग्रेस से बाहर हुए लोगों को भी समझाकर कांग्रेस में लाते रहे। कुछ लोगों ने तो स्वयं होकर अमित जोगी के दुव्र्यव्यवहार से किनारा करते हुए कांग्रेस का दामन वापस थाम लिया। तो कुछ ने अपनी राजनीति को जिंदा रखने पुन: कांग्रेस का रुख किया।
व्यक्तिगत प्रहार भी झेले
इधर, भूपेश बघेल पर सरकार की नजर टेढ़ी थी। इस दौरान भूपेश ने कई मर्तबा सरकार के व्यक्तिगत प्रहार भी झेले। फिर वह चाहे कथित जमीन घोटाला हो अथवा मंत्री रहे राजेश मूणत की कथित तौर पर सेक्स सीडी का मामला हो, कहीं न कहीं भूपेश चर्चा में थे।
इन सबके बावजूद भूपेश ने न हिम्मत हारी और न ही उनका आत्मविश्वास डिगा। उन्होंने बार-बार रमन सिंह को अपना मित्र बताते हुए उन पर और उनकी सरकार के काले कारनामे उजागर करने का क्रम जारी रखा।
इसी क्रम में विधानसभा चुनाव आ गए। जिस भूपेश बघेल को प्रदेश के कुछेक पत्रकार आजकल का अध्यक्ष बता रहे थे वह न केवल अब विजयी दल का अध्यक्ष है बल्कि मुख्यमंत्री पद का तगड़ा दावेदार है।
अब सवाल फिर इस बात का उठता है कि क्या बुधवार भूपेश बघेल कांग्रेस के नवनिर्वाचित विधायकों की पहली पसंद बन पाएंगे? इसका जवाब तो विधायक ही दे सकते हैं लेकिन इतना तय है कि भूपेश ने न केवल कांग्रेस को खड़ा किया बल्कि उसे लड़कर जीत हासिल करने के लायक भी बना दिया।
तो क्या… भूपेश अगले मुख्यमंत्री हो रहे हैं?