पल-पल खबरों की होड़ में आगे निकलने के प्रतियोगी पत्रकार श्रेय लेने इस हद तक जाने लगे हैं कि वे अब खबरों का फर्जीवाड़ा करने लगे हैं। शासकीय स्वीकृतियों और योजनाओं से जुड़ी खबर को अपने तरीके से तोड़-मरोड़ कर पेश कर ऐसे पत्रकार अपनी खबर का इंपैक्ट कुछ ही घंटों में होने का दावा कर रहे हैं.. जिसमें कि रत्तीभर भी सच्चाई नजर नहीं आती।
प्रदेश के प्रतिष्ठित अखबार में काम करने वाले ऐसे पत्रकार अपने पैंतरों से लोगों को हड़का रहे हैं कि उनकी खबर का असर राज्य स्तर पर महज 10 घंटे में ही देखने को मिलता है। जब हकीकत का खुलासा होगा तो आप श्रेय लेने की भूख बनाम खबरों का फर्जीवाड़ा.. भलीभांति समझ जाएंगे।
21 मार्च 2017.. प्रतिष्ठित अखबार के मुख्य संस्करण में प्रथम पृष्ठ पर फ्लायर स्टोरी..। अपनी रिपोर्ट में राजनांदगांव जिले के वनांचल के 27 गांवों के ग्रामीणों की पीड़ा को ‘बखूबी’ सामने रखा गया है। इस स्टोरी के शीर्षक का लब्बोलुआब यही है कि महाराष्ट्र के सहारे उन 27 गांवों के लोग जीवन यापन करने मजबूर हैं जो कि एक पुल के अभाव में इस हाल में पहुंचे हैं। राजनांदगांव जिले के मोहला विकासखंड में अंदरुनी इलाकों के गांव तक बदहाल सड़क मार्ग और उससे उपजी समस्याओं से दो चार हो रहे आदिवासी ग्रामीणों से इस खबर का सरोकार है।
22 मार्च 2017.. प्रतिष्ठित अखबार के मुख्य संस्करण में प्रथम पृष्ठ पर फिर एक फ्लायर फॉलोअप स्टोरी..। इसमें उक्त खबर पर ‘जबरदस्त इंपैक्ट’ को सामने रखा गया है। दावा किया गया है कि इस खबर के प्रकाशन के तत्काल बाद ही राज्य सरकार ने 12 करोड़ रुपए के पुल की न सिर्फ स्वीकृति दे दी बल्कि पुल निर्माण के लिए प्रारंभिक तैयारियां भी शुरु कर दी गई है।
अब इन दोनों ही खबरों से जुड़ी सच्चाई समझिए.. दरअसल मोहला के भोजटोला-वासड़ी के बीच पुल निर्माण को मंजूरी बजट सत्र के दौरान ही मिल गई थी। इससे संबंधित आदेश लोक निर्माण विभाग, रायपुर से 21 मार्च 2017 को ही जारी कर दिया गया था। इससे यह स्पष्ट है कि जिस खबर के इंपैक्ट को अखबार ने अपनी खबर का असर बताया है दरअसल वो प्रायोजित प्रतीत होता है।